एक पतित विवाह के फुटकर नोट्स- 2
वैसे भी विवाह का नाम सुनते ही मन में बीस तरह की बेचैनियां शुरू हो जाती हैं कि भूले से भी अगर किसी को न्योतना भूल गए तो चार गांव चालीस किस्सा बनाएगा और गाएगा। विवाह पूरा एक देश होता है जिसे आज तक किसने संभाला हुआ है, ये पता ही नहीं चलता और ये बनता जाता है।
पतित विवाह से पूर्व होने वाले इस पाठ में प्रसाद की पंजीरी की जगह पंपलेट बंटवाऊं। साथ में दो चार गाय बैल कुत्ता बिल्ली भी रखे रहूं कि जिसकी नहीं हुई है या कतिपय कारणों से जिनकी न हो पा रही है, मन न मसोसें, मन होने पर पूरे मनोयोग से इन्हीं की पीठ सहला लिया करें, कोई नहीं देखेगा।
जितने कवि हैं, उन सबकी पूर्व और अपूर्व, दोनों तरह की प्रेमिकाओं का आना अनिवार्य कर दूं और श्रोताओं की पहली पंक्ति में उन्हीं को बैठाऊं। मेकअप का सारा सामान पतित विवाह में पूर्णतया फ्री ही रहेगा, जितना मर्जी उतना करें, कोई नहीं टोकेगा। जो टोकेगा, उसे उसी विवाह में पुरुषविरोधी करार दिया जाएगा।
गंगा-गोमती तट पर इस विवाह को घटित होने की सारी संभावनाओं को इतना पतित कर दूं कि सरयूतीरे के अलावा कोई दूसरा ऑप्शन रह ही न जाए। वहां भी पंडों को तैनात कर दूं कि एक भी कवि या कहानीकार बगैर बछिया की पूंछ पकड़े न पुल पार कर पाए न सड़क और न घाट। हर घाट पर खाट लगाकर नावों पर वो नंगा नाच कराऊं कि मेरे घरवाले आने वाले सैकड़ों साल तक मुझे अपना मानने से ही मना कर दें।
शेखर की जीवनी की जितनी मरी दबी इच्छाएं आकांक्षाएं रही होंगी, जितने भी शेखर इस विवाह में आएं, सारी की सारी ऐसी पूरी करूं कि पूरा फैजाबाद देखे और कहे कि ठीक ही किया कि इसे फैजाबाद का न होने दिया। हो जाता तो आज यही कालिख पूरे शहर पर मल रहा होता।
उदय जी, आपको तो आना ही आना है। सारे महंतों से आपका सम्मान उसी शादी में समारोह के साथ करना है।
(एक पतित विवाह के फुटकर नोट्स- 2)
पतित विवाह से पूर्व होने वाले इस पाठ में प्रसाद की पंजीरी की जगह पंपलेट बंटवाऊं। साथ में दो चार गाय बैल कुत्ता बिल्ली भी रखे रहूं कि जिसकी नहीं हुई है या कतिपय कारणों से जिनकी न हो पा रही है, मन न मसोसें, मन होने पर पूरे मनोयोग से इन्हीं की पीठ सहला लिया करें, कोई नहीं देखेगा।
जितने कवि हैं, उन सबकी पूर्व और अपूर्व, दोनों तरह की प्रेमिकाओं का आना अनिवार्य कर दूं और श्रोताओं की पहली पंक्ति में उन्हीं को बैठाऊं। मेकअप का सारा सामान पतित विवाह में पूर्णतया फ्री ही रहेगा, जितना मर्जी उतना करें, कोई नहीं टोकेगा। जो टोकेगा, उसे उसी विवाह में पुरुषविरोधी करार दिया जाएगा।
गंगा-गोमती तट पर इस विवाह को घटित होने की सारी संभावनाओं को इतना पतित कर दूं कि सरयूतीरे के अलावा कोई दूसरा ऑप्शन रह ही न जाए। वहां भी पंडों को तैनात कर दूं कि एक भी कवि या कहानीकार बगैर बछिया की पूंछ पकड़े न पुल पार कर पाए न सड़क और न घाट। हर घाट पर खाट लगाकर नावों पर वो नंगा नाच कराऊं कि मेरे घरवाले आने वाले सैकड़ों साल तक मुझे अपना मानने से ही मना कर दें।
शेखर की जीवनी की जितनी मरी दबी इच्छाएं आकांक्षाएं रही होंगी, जितने भी शेखर इस विवाह में आएं, सारी की सारी ऐसी पूरी करूं कि पूरा फैजाबाद देखे और कहे कि ठीक ही किया कि इसे फैजाबाद का न होने दिया। हो जाता तो आज यही कालिख पूरे शहर पर मल रहा होता।
उदय जी, आपको तो आना ही आना है। सारे महंतों से आपका सम्मान उसी शादी में समारोह के साथ करना है।
(एक पतित विवाह के फुटकर नोट्स- 2)
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