एक पतित विवाह के फुटकर नोट्स- 1
अकवि का पतित विवाह है तो ऐसा हो कि सुप्रीम कोर्ट तक बिलबिला उठे और मार हथौड़ा हवनकुंड को इतना चौड़ा कर दे, जिसमें से हिंदी साहित्य की सारी सेवाकातर संस्थाएं नाच नाच के निकलें।
अगर वो पंडित है तो मैं एक बैनर भी बनवाने जा रहा हूं जिसपर लिखा होगा ''पंडित की शादी है, हमारी नंगई का प्लीज़ कहीं किसी तरफ से कतई बुरा न मानें।'' दो पंडितों को इसी ठंड में डिजायनर धोती और जनेऊ पहनाकर बैनकर पकड़ाकर बारात में सबसे आगे चलाउंगा। धोती भी ऐसी धोती होगी कि भगाया गया कवि अंपनी लंगोट देखकर शर्मा जाएगा कि उनकी लंगोट पर वो डिजाइन बनाना उसे पुराने वाले घर में पहले काहे नहीं सूझा। एक तरफ तुलसीदास की चौपाइयां लिखाउंगा तो दूसरी तरफ काम के सत्तावन सूत्र। अड़सठ जिन्हें लिखना था वो लिखते रहें मेरी बला से।
अकवि का पतित विवाह है तो कार्ड की जगह खाली डिब्बा भेज दूंगा कि जब जब इसे बजाया जाएगा, विद्यामाई की कसम, इसमें से मेरे देस की धरती नागिन डांस करते सोना उगलते हुए ही निकलेगी। अगर निकली वो चांदी फांदी उगलते हुए तो मार चप्पल मुंह लाल कर दूंगा कि इस कंगाली में सोना हीरा न सही मोती ही उगल सकती रही या नहीं।
देश के सेवाकातरों को समझना चाहिए कि वैवाहिक गर्मी ही उनके साहित्य को वो नई दिशा दे सकती है, जिसकी दरकार उनको अपने हर किए और पड़े से है। बारात में कवियों का अलग स्टाल होगा और कहानीकारों का अलग। एक विवाह समारोह में कम से कम बीस मंच दिए जाएंगे और ऐसा करके मैं मर चुकी हिंदी साहित्य की सरस धारा को एक बार फिर से खोदकर निकालने की तुच्छ कोशिश करूंगा।
शेखर का वैसे भी मेरे जीवन में सुख से लेशमात्र भी संबंध नहीं रहा तो उनको भी अलग से चिट्ठी लिख रहा हूं कि बहुत सही गुरु, तुम तो हमसे बहुत तेज निकले कि हम तो निकलते निकलते रह गए और तुम निकल लिए अपना साजो सामान लेकर। वैसे जब तुम नहीं निकले थे तो भी निकले निकले ही लगते थे।
रही बात न्योते वाला झोला रजिस्टर संभालने की तो हमको शशिभूषण पे पूरा भरोसा है। संभाल तो वो खुद को भी नहीं पाते जब तीन चार गटागट अंदर चले जाते हैं और इसी भरोसे और डकैती के सुविचार के चलते न्योता संभालने का काम पूरी तरह से शशि भैया ही करेंगे।
जब सब लुटा रहे हैं तो कोई लूटने वाला भी होना चाहिए, ये सुविचार मन में बैठाकर मैं हर कवि की जेब काटने की इसी विवाह में करूंगा और ये पूरी तरह से विवाह को पतित बनाने के लिए सम्यक मन से किया गया सत्कर्म ही माना जाएगा, इसके लिए सभी साहित्यकार आइपीसी में परिवर्तन करने की समवेत मांगपत्र जारी करेंगे, मांग न पूरी होने पर सब इस बार पुरस्कार वापसी अभियान की तर्ज पर वापस किए गए पुरस्कार वापस मागेंगे।
मेरा भरसक प्रयास है कि समस्त वैवाहिक कार्यक्रम सुपतित हो और इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए देश के कोने अतरे से आने वाले साहित्यकार और पत्रकार जब यहां से जाएं तो उनके सामने सिर्फ और सिर्फ पतन की राह हो, बहुत दिन हो गए जतन की राह पर चलते चलते।
ओम जी, सुन रहे हैं न आप। आपको जरूर आना है। पतनशीलता पर डिबेट है।
(एक पतित विवाह के फुटकर नोट्स- 1)
अगर वो पंडित है तो मैं एक बैनर भी बनवाने जा रहा हूं जिसपर लिखा होगा ''पंडित की शादी है, हमारी नंगई का प्लीज़ कहीं किसी तरफ से कतई बुरा न मानें।'' दो पंडितों को इसी ठंड में डिजायनर धोती और जनेऊ पहनाकर बैनकर पकड़ाकर बारात में सबसे आगे चलाउंगा। धोती भी ऐसी धोती होगी कि भगाया गया कवि अंपनी लंगोट देखकर शर्मा जाएगा कि उनकी लंगोट पर वो डिजाइन बनाना उसे पुराने वाले घर में पहले काहे नहीं सूझा। एक तरफ तुलसीदास की चौपाइयां लिखाउंगा तो दूसरी तरफ काम के सत्तावन सूत्र। अड़सठ जिन्हें लिखना था वो लिखते रहें मेरी बला से।
अकवि का पतित विवाह है तो कार्ड की जगह खाली डिब्बा भेज दूंगा कि जब जब इसे बजाया जाएगा, विद्यामाई की कसम, इसमें से मेरे देस की धरती नागिन डांस करते सोना उगलते हुए ही निकलेगी। अगर निकली वो चांदी फांदी उगलते हुए तो मार चप्पल मुंह लाल कर दूंगा कि इस कंगाली में सोना हीरा न सही मोती ही उगल सकती रही या नहीं।
देश के सेवाकातरों को समझना चाहिए कि वैवाहिक गर्मी ही उनके साहित्य को वो नई दिशा दे सकती है, जिसकी दरकार उनको अपने हर किए और पड़े से है। बारात में कवियों का अलग स्टाल होगा और कहानीकारों का अलग। एक विवाह समारोह में कम से कम बीस मंच दिए जाएंगे और ऐसा करके मैं मर चुकी हिंदी साहित्य की सरस धारा को एक बार फिर से खोदकर निकालने की तुच्छ कोशिश करूंगा।
शेखर का वैसे भी मेरे जीवन में सुख से लेशमात्र भी संबंध नहीं रहा तो उनको भी अलग से चिट्ठी लिख रहा हूं कि बहुत सही गुरु, तुम तो हमसे बहुत तेज निकले कि हम तो निकलते निकलते रह गए और तुम निकल लिए अपना साजो सामान लेकर। वैसे जब तुम नहीं निकले थे तो भी निकले निकले ही लगते थे।
रही बात न्योते वाला झोला रजिस्टर संभालने की तो हमको शशिभूषण पे पूरा भरोसा है। संभाल तो वो खुद को भी नहीं पाते जब तीन चार गटागट अंदर चले जाते हैं और इसी भरोसे और डकैती के सुविचार के चलते न्योता संभालने का काम पूरी तरह से शशि भैया ही करेंगे।
जब सब लुटा रहे हैं तो कोई लूटने वाला भी होना चाहिए, ये सुविचार मन में बैठाकर मैं हर कवि की जेब काटने की इसी विवाह में करूंगा और ये पूरी तरह से विवाह को पतित बनाने के लिए सम्यक मन से किया गया सत्कर्म ही माना जाएगा, इसके लिए सभी साहित्यकार आइपीसी में परिवर्तन करने की समवेत मांगपत्र जारी करेंगे, मांग न पूरी होने पर सब इस बार पुरस्कार वापसी अभियान की तर्ज पर वापस किए गए पुरस्कार वापस मागेंगे।
मेरा भरसक प्रयास है कि समस्त वैवाहिक कार्यक्रम सुपतित हो और इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए देश के कोने अतरे से आने वाले साहित्यकार और पत्रकार जब यहां से जाएं तो उनके सामने सिर्फ और सिर्फ पतन की राह हो, बहुत दिन हो गए जतन की राह पर चलते चलते।
ओम जी, सुन रहे हैं न आप। आपको जरूर आना है। पतनशीलता पर डिबेट है।
(एक पतित विवाह के फुटकर नोट्स- 1)
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