Friday, November 15, 2013

"हंस में आप बेहद घटिया कहानियां छाप रहे हैं"

एक बनारसी यादव हैं, शायद पत्रकार भी..कहानीकार तो वो जरूर हैं। मुंबई में रहने वाले कनपुरि‍या लेखक रूप सिंह चंदेल ने अपनी फेसबुक प्रोफाइल में उक्‍त यादव जी की खूब खबर ली है। आप भी पढ़ें... 

राजेन्द्र यादव पर लिखे मेरे लंबे संस्मरण ( दस हजार शब्दों से अधिक) का एक अंश- रूप सिंह चंदेल

एक घटना याद आ रही है.

यह बात २००४ या २००५ की है. उस दिन राजेन्द्र जी के साथ मैं और तेज सिंह ही थे. तेज सिंह की पत्रिका ’अपेक्षा’ पर चर्चा हो रही थी. कुछ देर बाद एक चालीस पार रचनाकार आए. हंस में उनकी कई वर्ष पहले एक कहानी मैंने पढ़ी थी. उनके आते ही राजेन्द्र जी, जो हंस-बतिया रहे थे अकस्मात गंभीर हो गए. हमे लगा कि उस व्यक्ति का आना राजेन्द्र जी को पसंद नहीं आया. लेकिन उसके बावजूद उन्होंने उसके हाल पूछे और चुप होकर पाइप सुलगाने लगे. कमरे में सन्नाटा छाया रहा. कुछ देर की चुप्पी के बाद मूंछों पर हल्की मुस्कान लाकर उस व्यक्ति ने पूछा, “मेरी कहानी का क्या कर रहे हैं?” पूछने का ढंग इतना अशिष्ट था कि कोई सामान्य व्यक्ति भी आपा खो देता. राजेन्द्र जी ने पाइप सुलगाते हुए बिना किसी उत्तेजना के कहा, “उसे नहीं छाप रहे.”

“क्यों नहीं छाप रहे?”

“यह भी पूछने की बात है!” राजेन्द्र जी अब गंभीर हो उठे थे.

“फिर भी मैं जानना चाहता हूं कि आपको उस कहानी में क्या कमी दिखाई दी?” उस व्यक्ति का चेहरा लाल हो रहा था. उसके चौड़े मुंह पर अस्वाभाविकता उभर आयी थी.

“क्योंकि वह हंस के योग्य नहीं है.”

हंस में आप बेहद घटिया कहानियां छाप रहे हैं और मेरी कहानी आपको पत्रिका के योग्य नहीं लगी.”

राजेन्द्र जी चुप रहे.

कुछ देर चुप रहने के बाद वह व्यक्ति बोला, “आप क्यों छापेगें मेरी कहानी! वह कहानी आपको केन्द्र में रखकर जो लिखी गई है---इसलिए---!”

राजेन्द्र जी का चेहरा लाल हो उठा था. स्पष्ट था कि वह अपने क्रोध को किसी प्रकार जज्ब कर रहे थे. वह तत्काल चोट करते भी न थे. उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया.

“वापस कर दीजिए मेरी कहानी. कहीं भी छप जाएगी.”

’बीना से ले लो.” राजेन्द्र जी ने केवल इतना ही कहा, लेकिन चेहरा तब भी उनका लाल ही था.

“आप मेरी कहानी क्यों छापेगें---छापेगें इन जैसे चमचों की..” उसने मेरी ओर इशारा किया. मैं चुप रहा उसके उस मूर्खतापूर्ण प्रलाप पर. डॉ. तेज सिंह हत्प्रभ थे. आखिर उसकी धृष्टता के कारण तेज सिंह अपने को रोक नहीं पाए और बोले, “यादव जी, छाप दीजिए न इनकी कहानी---आखिर यह भी यादव हैं ---जाति का कुछ तो लिहाज कीजिए---.”

लेकिन राजेन्द्र जी ने जो चुप्पी साधी तो उस व्यक्ति के जाने के बहुत देर बाद ही तोड़ी.

दो-तीन वर्षों बाद मैंने उस व्यक्ति की एक रचना (वह कहानी थी या आलेख याद नहीं) हंस में देखी थी. शायद उस दिन की उस व्यक्ति की धृष्टता को राजेन्द्र जी ने क्षमा कर दिया था.

एक और घटना…

एक दिन मैं और राजेन्द्र जी ही थे. तेज सिंह हमारे साथ न थे और जब मैं अकेले उनके कार्यालय पहुंचता तो हंसते हुए वह पूछते, “आज आग अकेले---धुंआ को कहां छोड़ आए..!”

उस दिन किसी बात पर चर्चा करते हुए राजेन्द्र जी ने कहा कि ईमानदारी यदि शेष है तो केवल कम्युनिस्टों में. मैंने कहा, “कुछ कम्युनिस्ट भी भ्रष्ट हैं…आप सभी को ईमानदार होने का प्रमाणपत्र नहीं दे सकते.”

“मैं ठीक कह रहा हूं” राजेन्द्र जी अड़ गए थे अपनी बात पर.

मैंने कहा, “मेरे पास एक व्यक्ति का उदाहरण है जो अपने को मार्क्सवादी (सीपीएमएल का) कहता है लेकिन महाधूर्त है---उसका मार्क्सवाद एक छद्म है और उस जैसे अनेक हैं.”

“कौन है?” राजेन्द्र जी ने पूछा.

“उस दिन तेज सिंह और मेरे सामने जो बनारसी यादव अपनी कहानी के लिए आपसे बक-झक कर रहा था---वह उसे अपना गुरू कहता है. वह दिल्ली के एक सांध्य कॉलेज में हिन्दी प्राध्यापक है. उसने कानपुर में अपने ससुर को बरगलाकर उनके करोड़ों रुपयों के मकान की वसीयत करवा ली. गृहकलह हुई और ससुर जी समय से पहले दुनिया छोड़ गए. उनकी असमय मृत्यु का जिम्मेदार वह व्यक्ति अपने को पुराना नक्सलाइट कहता है---क्रान्तिकारी कहता है---उसके बारे में और अधिक जानेगें तो अपने विचार बदलने के लिए आप स्वयं विवश हो जाएगें.

राजेन्द्र जी चुप हो गए थे. मैं जानता था कि वे मेरी बात से सहमत भले ही न रहे हों लेकिन उसे काटने की बात भी वह सोच नहीं पा रहे थे. विश्वविद्यालय के लोगों के वह कटु आलोचक थे और मानते थे कि प्राध्यापन में ऎसे लोगों की कमी नहीं जिन्होंने छद्म मार्क्सवाद का लबादा ओढ़ रखा है जबकि वे अंदर से वह नहीं हैं जो दिखाने का प्रयास करते हैं. वे उतने ही बड़े शोषक-लंपट हैं जितने कि सामन्तवादी-पूंजीवादी होते हैं. 

Tuesday, November 5, 2013

तीन दिन की शेव में हर लड़का हॉट लगता है

शुभम श्री की नई कविताएं. 

कॉमरेड

(1)
पूरी शाम समोसों पर टूटे लोग
दबाए पकौड़े, ब्रेड रोल
गटकी चाय पर चाय
और तुमने किया मेस की घंटी का इंतजार
अट्ठाइस की उम्र में आईना देखती
सूजी हुई आंखें
कुछ सफेद बाल, बीमार पिता और रिश्ते
स्टूडियो की तस्वीर के लिए मां का पागलपन
घर
एक बंद दरवाजा
---
हमारी आंखों में
तुम हंसी हो
एक तनी हुई मुट्ठी
एक जोशीला नारा
एक पोस्टर बदरंग दीवार पर
एक सिलाई उधड़ा कुर्ता
चप्पल के खुले हुए फीते की कील
पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम
भी हो तुम चुपके से
---
यूं ही गुजरती है ज़िंदगी
पोलित ब्यूरो का सपना
महिला मोर्चे का काम
सेमिनारों में मेनिफेस्टो बेचते
या लाठियां खाते सड़कों पर
रिमांड में कभी कभी
अखबारों में छपते 
पर जो तकिया गीला रह जाता है कमरे में
बदबू भरा
उसे कहां दर्ज करें कॉमरेड?

(2)
टेप से नापकर 20 सेंटीमीटर का पोल और उसका शरीर
बराबर हैं
तिस पर एक झलंगी शर्ट 90 के शुरुआती दिनों की
और जींस पुरातत्व विभाग का तोहफ़ा
पैंचे की सिगरेट के आखिरी कश के बाद भी
पराठे का जुगाड़ नहीं
तो ठहाके ही सही
सेकेंड डिवीजन एम.ए, होलटाइमर
मानसिक रोगी हुआ करता था
पिछले महीने तक
दिवंगत पिता से विरासत में पार्टी की सदस्यता लेकर
निफिक्र खिलखिलाता
ये कॉमरेड
दुनिया की खबर है इसे
सिवाय इसके कि 
रात बाढ़ आ गई है घर में
पंद्रह दिनों से बैलेंस जीरो है !

भाकपा (माले)

पापा का मर्डर
चाचा लापता
ड्राइंग बेरंग
निकर बड़ी
नंबर कम
डांट ज्यादा
पेंसिल छोटी
अंगूठा बड़ा
---
इससे पहले कि ग्रेनाइट चुभ जाए
गोलू ने लगाई रेनॉल्ड्स की ठेपी पेंसिल के पीछे
सो पेंसिल भी गिरी कहीं बैग के छेद से
अब जो जोर-जोर से रो रहा है गोलुआ
इसको अपना पेंसिल दे दें?

मोजे में रबर

वन क्लास के गोलू सेकेंड ने
क्लास की मॉनीटर से
सुबह सुबह अकेले में
शर्माते हुए
प्रस्ताव रखा-
अपनी चोटी का रबर दोगी खोल कर?
‘सर मारेंगे’
‘दे दो ना
सर लड़की को नहीं मारेंगे
मेरा मोजा ससर रहा है !’

मेरा बॉयफ्रेंड

(छठी कक्षा के नैतिक शिक्षा पाट्यक्रम के लिए प्रस्तावित निबंध)

मेरा बॉयफ्रेंड एक दोपाया लड़का इंसान है
उसके दो हाथ, दो पैर और एक पूंछ है
(नोट- पूंछ सिर्फ मुझे दिखती है)
मेरे बॉयफ्रेंड का नाम हनी है
घर में बबलू और किताब-कॉपी पर उमाशंकर
उसका नाम बेबी, शोना और डार्लिंग भी है
मैं अपने बॉयफ्रेंड को बाबू बोलती हूं
बाबू भी मुझे बाबू बोलता है
बाबू के बालों में डैंड्रफ है
बाबू चप चप खाता है
घट घट पानी पीता है
चिढ़ाने पर 440 वोल्ट के झटके मारता है
उसकी बांहों में दो आधे कटे नीबू बने हैं
जिसमें उंगली भोंकने पर वो चीखता है
मेरा बाबू रोता भी है
हिटिक हिटिक कर
और आंखें बंद कर के हंसता है
उसे नमकीन खाना भौत पसंद है
वो सोते वक्त नाक मुंह दोनों से खर्राटे लेता है
मैं एक अच्छी गर्लफ्रेंड हूं
मैं उसके मुंह में घुस रही मक्खियां भगा देती हूं
मैंने उसके पेट पर मच्छर भी मारा है
मुझे उसे देख कर हमेशा हंसी आती है
उसके गाल बहुत अच्छे हैं
खींचने पर 5 सेंटीमीटर फैल जाते हैं
उसने मुझे एक बिल्लू नाम का टेडी दिया है
हम दुनिया के बेस्ट कपल हैं
हमारी एनिवर्सरी 15 मई को होती है
आप हमें विश करना
*मेरा बॉयफ्रेंड से ये शिक्षा मिलती है कि 
बॉयफ्रेंड के पेट पर मच्छर मारना चाहिए
और उसके मुंह से मक्खी भगानी चाहिए ।

बूबू

दूदू पिएगी बूबू
ना
बिकिट खाएगी
डॉगी देखेगी
ना
अच्छा बूबू गुड गर्ल है
निन्नी निन्नी करेगी
ना
रोना बंद कर शैतान, क्या करेगी फिर ?
मम्मा पास

बूबू-2

खिलौने सीज़ हो गए तो
पेन के ढक्कन से सीटी बजाई
डांट पड़ी
तो कॉलबेल ही सही
ड्राइंग बनाई दो चार
और कपड़े रंग डाले
अखबार देखा तो प्रधानमंत्री का श्रृंगार कर दिया
मूंछे बना दी हीरोइनों की
मन हुआ तो
जूतों के जोड़े बिखेरे
नोचा एक खिला हुआ फूल
चबाई कोंपल नई करी पत्ते की
हैंडवॉश के डब्बे में पानी डाला
पिचकारी चलाई थोड़ी देर
रसना घोला आइसक्रीम के लिए
तो शीशी गिराई चीनी की
चॉकलेट नेस्तनाबूद किए फ्रिज से
रिमोट की जासूसी की
शोर मचाया जरा हौले हौले
कूदा इधर उधर कमरे में
खेलती रही चुपचाप
पापा जाने क्या लिख रहे थे सिर झुकाए
बैठी देखती रही 
फिर सो गई बूबू
सपने में रोया
पलंग से गिरी अचानक
तो बुक्का फाड़ के रोया
अभी पापा की गोद में
कैसी निश्चिंत सोयी है छोटी बूबू

उस लड़के की याद

तीन दिन की शेव में
हर लड़का हॉट लगता है
(ऐसा मेरा मानना है)
और जिम के बदले 
अस्पताल में पड़ा हो हफ्ते भर
तो आंखें दार्शनिक हो जाती हैं
पीली और उदास
जलती हुई और निस्तेज
बिना नमक की हंसी और सूखी मुस्कुराहटें
चले तो थक जाए
भरी शाम शॉल ओढ़ कर शून्य में ताके
एक बार खाए, तीन बार उल्टी करे
दुबक जाए इंजेक्शन के डर से
उस लड़के के उदास चेहरे पर हाथ फेरती लड़की
मन ही मन सोचती है
मैं मर जाउं पर इसे कुछ न हो
बीमार लड़के प्रेमिकाओं पर शक करने लगते हैं
मन नहीं पढ़ पाते बीमार लड़के

सफल कवि बनने की कोशिशें

ऐसा नइ कि अपन ने कोशिश नइ की
सूर्योदय देखा मुंह फाड़े
हाथ जोड़े
जब तक रुक सका सूसू
चांद को निहारा
मच्छरों के काट खाने तक
हंसध्वनि सुना किशोरी अमोनकर का
थोड़ी देर बाद लगावेलू जब लीपीस्टिक भी सुना
कला फिल्में देखीं
कला पर हावी रहा हॉल का एसी
वार एंड पीस पढ़ा
अंतर्वासना पर शालू की जवानी भी पढ़ी
बहुत कोशिश की
मुनीरका से अमेरिका तक
कोई बात बने
अंत में लंबी गरीबी के बाद अकाउंट हरा हुआ
बिस्तर का आखिरी खटमल
मच्छरदानी का अंतिम मच्छर मारने के बाद
लेटे हुए
याद आई बूबू की
दो बूंदें पोंछते पोंछते भी चली ही गईं कानों में 
तय करना मुश्किल था
रात एक बजे कविता लिखने में बिजली बर्बाद की जाए
या तकिया भिगोने में
अपन ने तकिया भिगोया
आलोचक दें न दें
अलमारी पर से निराला
और बाईं दीवार से मुक्तिबोध
रोज आशीर्वाद देते हैं
कला की चौखट पर
बीड़ी पिएं कि सुट्टा
व्हिस्की में डूब जाएं कि
पॉकेट मारी करें
सबकी जगह है ।

औरतें

उन्हें एशिया का धैर्य लेना था
अफ्रीका की सहनशीलता
यूरोप का फैशन
अमेरिका का आडंबर
लेकिन वे दिशाहीन हो गईं
उन्होंने एशिया से प्रेम लिया
यूरोप से दर्शन
अफ्रीका से दृढ़ता ली
अमेरिका से विद्रोह
खो दी अच्छी पत्नियों की योग्यता
बुरी प्रेमिकाएं कहलाईं वे आखिरकार
जब तक भाषा देती रहेगी शब्द

साथ देगा मन

असंख्य कल्पनाएं करूंगी
अपनी क्षमता को
आखिरी बूंद तक निचोड़ कर
प्यार करूंगी तुमसे
कोई भी बंधन हो
भाषा है जब तक
पूरी आजादी है ।

प्यार

गंगा का
सूरज का
फसलों का
फूलों का
बोलियों का अपनी
और
तुम्हारा
मोह नहीं छूटेगा
जैसा भी हो जीवन
जब तक रहेगी गंध तुम्हारे सीने की जेहन में
मन नहीं टूटेगा।