Monday, January 16, 2012

हम देखेंगे.

उन दिनों

जब जमीन से उठती सफेदी
कर देगी तर आसमान,
और ढँक जायेगा पीला सूरज
जमीन की उसी सफेदी से,
हम देखेंगे.

उन दिनों
जब घने लहरिया पेड़ों से
उड़ जाएँगी बौराई चिड़ियाँ
काटेंगी, चीरेंगी, बनायेंगी रास्ता
असमान मे छाई सफ़ेद धरती मे
हम देखंगे

उन दिनों
जब असमान से बरसता लोहा
पत्तों को कर देगा हरा
जमीन पे फूटेंगी गेंहू की कोपलें
बिरवे लेंगे मदमस्त अंगडाई
हम देखेंगे

उन दिनों
जब सारे बच्चे होने अपने पिताओं की गोद मे
माएं ओखली मे कूटेंगी बरसते लोहे की धार
पिसेगा पिसान और जलेंगे चूल्हे
हम देखेंगे

तब तक साथी, हम चलेंगे
चलते रहेंगे, करते रहेंगे तलाश
हमें पता है-जरूर मिलेंगे वो दिन
भले ही मिले वो उन दिनों
हम देखेंगे

Friday, January 13, 2012

मन न रंगायो...


सेना के जवानों को सामाजिक होने से रोका गया है। सही भी है। अगर सेना के जवान सामाजिक हो गए तो समाज की वह सारी गंदगी सेना की गंदगी में मिलकर एक नई तरह की जुगलबंदी कायम करेगी। इस जुगलबंदी का कारण और निवारण हमारे दिल्ली-मुंबई में बैठे सुपर एटीकेटधारी समाजशास्त्री खोज पाएंगे या नहीं, अलबत्ता चैनल के स्टूडियो के बाहर निकलकर यह जरूर कहेंगे कि भई, जवानों को सेक्स की जरूरत तो है ही।

बहरहाल, खबर यह है कि सेना के जवानों पर फेसबुक और ऑरकुट जैसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर अपना एकाउंट बनाने पर रोक लगा दी गई है। इसके लिए बाकायदा एक सर्कुलर भी जारी किया गया है। सेना के शीर्ष अधिकारियों, जहां पर गर्म गोश्त की पहुंच है, जैसा कि पिछले कुछ एक स्टिंग ऑपरेशन में साबित भी हुआ है, उन्होंने ही यह सर्कुलर जारी किया है। मेरे लिखने का मकसद सेना के जवान, जवानों की मनोवैज्ञानिकता, शीर्ष अधिकारियों में फैला भ्रष्टाचार, कुचार आदि नहीं है। दरअसल इस समाचार में छपे एक शद ने मेरा ध्यान खींचा। यह था हनीट्रैप्स। हनीट्रैप्स वह होते हैं, जिनकी या तो फेक आईडी होती है और वह लड़की बनकर लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। और जो लोग उनकी ओर आकर्षित होते हैं, उनसे ये हनीट्रैप्स वह सारी चीजें कराते हैं जो हनीट्रैप की तरफ आकर्षित होने वाले मन ही मन करना तो चाहते थे, पर भारतीय समाज की परम भारतीय जकड़न में फंसकर नहीं कर पा रहे थे। जरूरी नहीं कि हनीट्रैप्स पुरुष ही हों, यह महिला भी हो सकती हैं। जरूरी नहीं कि ये हनीट्रैप हमेशा किसी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर ही मिलें। यह असल जिंदगी में आमने सामने भी मिल सकते हैं, आपके घर के बगल वाली गली में भी मिल सकते हैं और यहां तक कि ये वो भी हो सकते हैं जिन्हें आप समझते हैं कि आप उन्हें तहे दिल से चाहते हैं। वह ट्रैप करते हैं और बड़े ही प्यार भरी स्टाइल से ट्रैप करते हैं। आप उनसे जिंदगी भर साथ निभाने का वादा ले सकते हैं, उनसे आप हर कदम पर साथ चलने का मजबूत इरादा बाकायदा लिखित में ले सकते हैं। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में आप जो ले रहे हैं, वह सिर्फ आप ही समझ रहे हैं कि आप ले रहे हैं। हनीट्रैप दे रहा है या नहीं, ये उसपर निर्भर है कि वह कितना ईमानदार है। सेना ने रोक लगाई है तो जाहिर है कि जो हनीट्रैप है, वो ईमानदार नहीं है। वैसे ये हनीट्रैप अपना शरीर भी आपके हवाले कर सकते हैं जिसकी दुनिया में चंद सिकों की कीमत होती है, माफ करें यदि पूरी तरह से प्रैटिकल होकर या सीधे सीधे कहें तो बनिया बनकर सोचें तो।
अभी कहीं पढ़ा था कि मारना जुर्म है तो पैदा करना यों नहीं? सही बात है, पैदा करना जुर्म यों नहीं है? मुझे लगता है कि पैदा करना भी जुर्म ही है। क्योंकि यहां से एक मोलभाव की शुरुआत होती है। हनीट्रैप मोलभाव तो करता ही है, भारतीय सामाजिक जकड़न तो उससे भी ज्यादा मोलभाव करने लगती है। हत्या के साथ कम से कम यह बात तो साफ हो जाती है कि हत्या हुई और किसी ने हत्या की। भले उसे सजा आज मिलेगी या कल या फिर वह सजा मिलने से बच जाएगा, पर रहेगा तो वह हत्यारा ही। अपनी ही नजर में रहेगा पर रहेगा। पर पैदा करने के बाद का दंभ उस हत्या से कहां बचाता है जो मोलभाव से हर रोज, हर पल होती है।
हनीट्रैप यही करता है। वह आपसे प्रेम करता है, आपको अपने पाश में जकड़ता है और उसके बाद शुरू होता है मोलभाव। सेना की खुफिया जानकारियों से लेकर आपके अंतरमन की खुफिया जानकारियों तक का मोलभाव। जिंदगी का मोलभाव, जीने का मोलभाव और जो कुछ भी आपके पास है, उन सभी चीजों का मोलभाव। कीमत है भावनाएं, जो दर्शाई तो जाती हैं, लेकिन वह कितनी सच हैं या कितनी झूठ, यह कोई पता नहीं लगा सकता है सिवाय हनीट्रैप के।
पंजाबी कवि अवतार सिंह संधू पाश ने कहा था
प्यार करना
और लड़ सकना
जीने पर ईमान ले आना मेरी दोस्त, यही होता है
धूप की तरह धरती पर फैल जाना
और फिर आलिंगन में सिमट जाना
बारूद की तरह भड़क उठना
चारों दिशाओं में गूंज जाना
जीने का यही सलीका होता है मेरी दोस्त
प्यार करना और जीना उन्हें कभी न आएगा
जिन्हें जिंदगी ने बनिए बना दिया।
पर हनीट्रैप का पाश से रत्ती भर का मतलब नहीं है। उसे न तो धूप बनना है और न ही बारूद। उसे प्यार तो करना है पर कितना करना है और कब करना है, यह उसे पता है। बनिया भरी जिंदगी से बचने के लिए हनीट्रैप्स से बचना जरूरी है। सेना के शीर्ष अधिकारी सुपरमॉडलों के साथ अभिसाररत होते हुए भी यह सच्चाई जानते हैं कि जीवन में एक सीधी रेखा का होना बहुत जरूरी है। बीच का रास्ता नहीं होता। इसलिए सेना के जवान हनीट्रैप्स से बचें। चाहे वह असल जिंदगी में मिलें या फिर इंटरनेट की आभासी दुनिया में मिलें। हनीट्रैप्स से बचें। अब आप सोचिए, हनीट्रैप्स कहीं आपके आसपास तो नहीं?