Thursday, June 5, 2014

मंटू की डायरी के नोट्स

मंटू की डायरी के नोट्स

1 जुलाई-
संझा को हमारे पापा हमको बजार साथे लेकर गए अउर दुई जोड़ी इस्‍कूल की ड्रि‍रेस खरि‍दवाए। एक ठो नीली चड्ढी है अउर एक सुफेद। लेकि‍न हमका सुफेद वाली जादा अच्‍छी लगती है काहे कि ओकरे साथे सुफेद जूता अउर सुफेद बुश्‍शर्ट भी है। हम लउट के आए तो देखे कि संजुआ सार टइयो लाया है नीली काली रंग की। मार गुस्‍सा के हम वहीं जमीने पे ओलर गए अउर लोटने लगे। मम्‍मी लाख समझाईं, बोलीं कि बोलबो नहीं करेंगी, तौ भी हम आज  शाम के टाई लइन के माने।

2 जुलाई-
मारे खुसी के हमरी आंख भि‍नौखै मा ही खुल गई। लेकि‍न हम आज मम्‍मी से गुस्‍सा हैं। ऊ सफेद चड्ढी अउर बुश्‍शर्ट तौ पहनाईं, मुला टाई नहीं पहने दीं। हम जि‍दि‍याने तौ बरज के हमको चुप करा दीं कि तुम्‍हरा इस्‍कूल में चलता नहीं है टाई फाई। टाट पट्टी ल्‍यो अउर भागो जल्‍दी। अउर सुनौ, आज तौ तहरी मि‍ले ना, ई ल्‍यो, कगदे मा अचार बांध दि‍ए हैं। अब बताओ भगवान जी, ऊ लोग तहरी देते हैं जेहमन कक्षा नौ वाली दूरबीनौ लेके खोजौ, तब्‍बौ सबजी का एक्‍को टुकड़ा देखा जाए तौ गलीमत समझौ।

3 जुलाई-
आज तौ सुबह से शाम ले सब बेनीकै रहा। कुच्‍छौ मजा नै आवा। भिंसारे उठे तौ देखे कि मम्‍मी रसोई की जमीन पै वइसेन लोट रही हैं, जइसे हम टाई के लि‍ए लोटे थे। पप्‍पा कहत रहे कि अब दै दि‍ए वोट तौ दै दि‍ए, हमका का पता रहा कि हम लोगन का कीचड़ मि‍ले, वहू ऐतना महंग... बाबूजी रक्षा करैं, पर ऐतना बड़ा अहसान फरामोशी...उधर मम्‍मी कहत रहीं कि तुम्‍हरा तनखाह तौ बढ़ी नहीं, ई सब बढ़ गया। ऊ तौ मंटुआ का एक टैम इस्‍कूल में खाना मि‍ल जाता था, अब कइसे चले। लाओ ओरदावन, हम खतम होए जात हैं। हम जइसे ही ई रूप देखे, चुप्‍पेचाप अपना कपड़ा लत्‍ता पहि‍ने अउर पतली गली से इस्‍कूल नि‍कल लि‍ए।

4 जुलाई-
आज शाम का पापा के दुई तीन दोस्‍त आय रहे। लाला अंकल तो अइसा बोले कि हमरी वहीं पे खीस नि‍कल गई। बोलत रहे कि तौ का हुआ जउन गइस के दाम बढ़ गवा, अरे एक रुपय्या के काला नमक ल्‍यो, पि‍छवाड़े पे पैप लगाओ औ दे ढुसुर ढुसुर... ही ही ही। लाला अंकलो बहुत मजा लावत हैं।