Tuesday, June 17, 2008

कहीं मेरा नाम ...

क्या होते होंगे अनगढ़ कविता के मायने? क्या वो अपना संवाद नही कर पाती होगी? लेकिन क्या किसी कविता का संवाद करना इतना जरूरी है? आख़िर निकलती है वो ख़ुद से, किसी से संवाद करने की खातिर तो नही ही। बहरहाल, चुप से पड़े लोगों की खातिर ये कविता...

सिगरेट के धुंए से
फुसफुसाती हुई
शराब के एक घूँट से
चीरती हुई
हवा के झोंके मे से
धूल को काटती हुई
चिपचिपाते पसीने से
कभी कभी
निकलती है
एक कविता,
चित्र से, नाटक से, कविता से
निकलते अहसास
बिकते अहसास
और....
मजबूरियां,
क्या कहीं मेरा नाम तो नही लेतीं ?

Sunday, June 1, 2008

जूता

इंसान ने पहली बार कब जूता पहना होगा? जूता भी पहना होगा या वो सिर्फ़ चप्पल ही रही होगी। जाहिर सी बात है कि मोहल्ले के शिव परसाद जैसी हवाई चप्पल पहनते हैं , वैसी तो नही ही रही होगी। बहरहाल कब बनी होगी पहली चप्पल और किसने पहना होगा पहला जूता। बात अगर आदि काल से शुरू करते हैं । सबसे बड़े चप्पल घीसू तो नारद ही रहे होंगे। लेकिन एक बात समझ मे नही आती कि भगवानो मे चप्पल का कांसेप्ट कहाँ से आया। वो जमीन पर तो चलते नही थे, स्वर्ग मे रहते थे, कोई कमल पर बैठा हुआ तो कोई सांप पर पसरा हुआ। किसी को ज्यादा चढ़ गई तो बैल और भैंसे की सवारी करने लगा। फ़िर ये ससुरा चप्पल का कांसेप्ट आया कहा से । वैसे एक बार सपने मे किसी द्रविड़ नाम के भगवान् ने फूंक मारी थी के चप्पल तो पेड़ों की छाल रही होगी, लेकिन भइया, उसे पहनकर दौड़ते कैसे होंगे। मान लो दौड़ भी लेते होंगा, उसे निकालकर मारते कैसे होंगे। उस जमाने मे सैंडिल भी तो नही होते थे, तो क्या मान लिया जाय कि छेड़छाड़ की घटनाएं भी नही होती थी? लेकिन सवाल फ़िर से अपनी जगह पर कायम है, ससुरा जूता आया तो आया कहाँ से? अभी उस दिन नगर निगम मे घूम रहा था, दीवार पर जूते जैसे कुछ पुता देख तो दीवाल के बगल बैठने वाले से पूछा , कि भइया , ये कौन साहब है जिन्होंने जूते को इतनी शान से लगा रखा है, पता चला बड़े बवाली आदमी है, राष्ट्रिय जूता पार्टी बना ली है और अब आए दिन शहर मे जूता घुमाया करते हैं। बहरहाल सवाल उनसे भी मेरा यही था कि भइया, जूता आया कहाँ से ? जवाब उनके पास मिला, उन्होंने ने पूरा जूते का अर्थशास्त्र समझाया। दस रुपये किलो मे दो माला बन जाती है, जूता मिलता है कबाड़ी के यहाँ, दो माला मे तकरीबन दस एक हज़ार रुपये की कमाई हो जाती है, महीने मे दो चार किलो जूते आ ही जाते हैं। क्या जब जूते ने जन्म लिया होगा तो उसे अपने इस अर्थशास्त्र के बारे मे पता होगा ?