कहीं मेरा नाम ...
क्या होते होंगे अनगढ़ कविता के मायने? क्या वो अपना संवाद नही कर पाती होगी? लेकिन क्या किसी कविता का संवाद करना इतना जरूरी है? आख़िर निकलती है वो ख़ुद से, किसी से संवाद करने की खातिर तो नही ही। बहरहाल, चुप से पड़े लोगों की खातिर ये कविता...
सिगरेट के धुंए से
फुसफुसाती हुई
शराब के एक घूँट से
चीरती हुई
हवा के झोंके मे से
धूल को काटती हुई
चिपचिपाते पसीने से
कभी कभी
निकलती है
एक कविता,
चित्र से, नाटक से, कविता से
निकलते अहसास
बिकते अहसास
और....
मजबूरियां,
क्या कहीं मेरा नाम तो नही लेतीं ?
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