Friday, April 25, 2008

पान

कसम से, क्या चीज़ है पान। खुदा की बनाई सबसे बड़ी नेमत है पान। हरे हरे देसी पान का पत्ता, उसपर बढ़िया चूना कत्था और भीगी डली। भोला बत्तीस तो अब जल्दी मिलता नही, तुलसी या बाबा मिल जाता है। और हाँ, किमाम इलायची भी जरूर होना चाहिए। पंडित जी लपेट कर जैसे ही दें, तुरंत मुह मे जाकर सेटिंग करने लगता है। और ये कोई आज से नही। दरअसल ब्रम्हा पान खाते थे। गिलौरी मुह मे रखकर ही सरस्वती को पढाते थे। बिना पान के हमारे प्राइमरी के मास्टर तक नही पढाते। वो तो खैर ब्रम्हा थे। सुना है, नारद को पान की आदत ब्रम्हा से ही लगी। तभी तो एक बार नारद ने विष्णु वाजपेयी के घर जाकर उन्हें पान की महिमा बताई थी। उन्होंने बताया था, सारे देश को पान की आदत डलवा दो, राजकोषीय घाटा कम हो जाएगा। पान खाने के बाद तो सुरती भी बेकार हो जाती है। कचहरी मे वकील भी तो पान खाते हैं, बिजली ऑफिस मे बैठे एस डी ओ भी तो पान खाते हैं। जितने भी भगवान् हैं, सब पान खाते हैं , चाहे आर टी ओ भगवान् को देखिये या फिर चाहे एस डी एम् भगवान् को देखिये, सब पान खाते हैं। तो भइया, पान की महिमा अपरम्पार है। एक बार नारद ने पान खाकर मुरली मनोहर के गमले मे थूक दिया। फ़िर क्या था, वहा से पान की जो बेल निकली, आज तक मुरली वाले के होठो का कोना लाल किए रहती है। और मुरली वाले ने बंसी छोड़ कर पानदान अपना लिया, कांख मे दबाये रहते हैं हमेशा। और तो और, पूरा देश पान की जुगाली मे व्यस्त है, आलू के दाम बढे, सब चिल्लाए, टमाटर सूरज की तरह लाल हो गया, सब घर छोड़ कर बाहर आ गए, लेकिन पिछले एक साल मे पान की कीमतों मे तीन बार इजाफा हुआ, मजाल है की पान की गिलौरी ने किसी के मुह से आवाज निकलने दी हो। मुह की आवाज दबानी हो तो पान खिलाइये, मुह से सुंदर सुंदर राग निकालने हो तो पान खाइए। पान पान पान ..... बस पान।

Wednesday, April 2, 2008

सोचा न था ....

मेरठ मे एक गुमनाम सी शख्सियत हैं मिथलेश आत्रे। और आइन्दा के दिनों मे गुमनाम ही रहना चाहती हैं। ऐसा इसलिए नही कि उन्हें नाम से कोई परेशानी होती हो, दरअसल वो अभी तक नाम के फायदे नही जान पाई हैं। मिथलेश से मिलने के बाद, खासकर उनके कारनामो के बारे मे जानने के बाद मेरे मन मे जो पहला सवाल आया वो ये कि मेरठ मे आत्रे कहाँ से ? पूछताछ की तो पता चला कि मेरठ मे कुल मिलकर २२ परिवार आत्रे हैं। ये लोग तकरीबन डेढ़ सौ या दो सौ साल पहले महाराष्ट्र से यह पर आकर बसे थे। आजादी की लड़ाई मे इन सभी लोगों ने हिस्सा लिया, शहर के साथ कदम से कदम मिलकर चले और शहर की धड़कन यानि कि घंटाघर पर भी इनका ठिकाना रहा और अब भी है। ये जानकारी मुझे जागरण मे काम करने वाले एक सीनिअर रिपोर्टर ने दी जो ख़ुद आत्रे हैं। बहरहाल, लौट कर मिथलेश के ही पास आते हैं। मिथलेश कुल मिलाकर आठवीं पास हैं। बुजुर्ग महिला हैं इसलिए उनका आठवीं पास होना या पढ़ा लिखा न होना एक बराबर है। हो सकता है कि उन्होंने घर पर ही पढ़ लिया हो, लेकिन इस बारे मे मुझे रत्ती भर भी शक नही कि मिथलेश ने जो कुछ भी पढ़ा , वो अब सबके काम आ रहा है। मिथलेश शताब्दी नगर मे रहती हैं और मेरठ विकास प्राधिकरण द्वारा बनाये गए एक मकान मे स्कूल चलाती हैं। वो मकान भी ऐसा मकान है, जिसके बनने के बाद अब तक कोई कब्ज़ा लेने नही आया। उसमे न तो खिड़की है और न ही कोई दरवाजा। बिजली का तो सवाल ही नही पैदा होता। एक तरह से वो खँडहर है। इसी खँडहर मे मिथलेश ने झुग्गी के ३५ बच्चों को पढाया है। सभी ने पहली क्लास का इम्तेहान दिया और रिजल्ट सौ प्रतिशत रहा है। और ये सौ प्रतिशत रिजल्ट भी किस तरह से? ना तो इन बच्चो को बैठने के लिए टाट पट्टी मिली है , ना ही पढ़ना सीखने के लिए ब्लैक बोर्ड। जमीन पर बैठ कर इन बच्चों ने पढ़ाई की है और दिवार को ही ब्लैक बोर्ड बनाया है। कमाल है। ऐसे जज्बे वाली महिला को मैं सलाम करता हूँ।
मिथलेश का स्कूल यह पर देखें - फोटो बजार