Friday, December 20, 2019

एनआरसी करने के लिए सीएए लाए हैं: कन्नन गोपीनाथन

अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर आईएएस ऑफिसर कन्नन गोपीनाथन ने इस्तीफा दे दिया। उसके बाद से वे देश भर में घूम-घूमकर अभिव्यक्ति की आजादी पर अपनी बात कहते रहे। इसी बीच नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) आ गया। केंद्र के कई नेताओं ने इसे एनआरसी के साथ जोड़कर लागू करने की बात कही। अब कन्नन देश भर में घूम-घूमकर सीएए और एनआरसी पर जागरूकता सभाएं कर रहे हैं। मैंने उनसे लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:

अपने बारे में बताइए।
मैं 12वीं तक केरल में पढ़ा। कोट्टयम का रहने वाला हूं। इसके बाद मैंने रांची के बिरला इंस्टीट्यूट्स ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की। इसके बाद मैं नोएडा आ गया और नौकरी करने लगा। नोएडा में रहने के दौरान मैं सेक्टर 16 की झुग्गी में बच्चों को पढ़ाता था। कुछ दिन बाद में नोएडा के ही अट्टा मार्केट में भी बच्चों को पढ़ाने लगा। वहां का हाल देखकर समझ में आया कि सिस्टम के अंदर रहकर काम करना होगा- तब कुछ सही होगा, इसलिए मैंने आईएएस का एग्जाम पास किया। 2012 बैच में आईएएस बना, फिर मिजोरम में डीएम रहा, दादरा-नगर हवेली में भी कलेक्टर के साथ-साथ वहां के कई विभागों में कमिश्नर रहा। वहां डिस्कॉम कॉरपोरेशन था जो लगातार लॉस में जा रहा था, उसे एक-डेढ़ साल में प्रॉफिट में ले आया। जम्मू-कश्मीर से जब अनुच्छेद 370 हटाया गया तो वहां पर प्रशासन ने लोगों की आवाज दबाई। अब भी दबा ही रही है। समस्या 370 हटाने या लगाने से नहीं, बल्कि आवाज दबाने से उपजी। फिर मुझे लगा कि ये सही बात नहीं है और कम से कम मैं लोगों की आवाज दबाने के लिए तो आईएएस में नहीं आया। इसलिए मैंने रिजाइन कर दिया। हालांकि सरकार ने अभी तक मेरा इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है।

इस्तीफा देने के बाद आप क्या कर रहे हैं?
रिजाइन करने के बाद मैंने ठीक से तय नहीं किया था कि किस ओर जाना था। इसी बीच कुछ जगहों पर टॉक के लिए बुलाया। इसी सिलसिले में एक बार चेन्नई गया। वहां एक टॉक में मैं 'बोलने की आजादी' विषय पर बोल रहा था कि बीच में एक लड़की ने मुझे टोक दिया। नॉर्थ ईस्ट की उस 23 साल की लड़की का कहना था कि बोलने की आजादी उसकी समझ से बाहर है क्योंकि अभी तो उसे यही डर है कि वो इस देश में रह पाएगी या नहीं। उसका दादा आईएमए में था और वो कोई सन 1951 का डॉक्यूमेंट खोज रही थी जो उसे मिल नहीं रहा था। उस शो में खड़ी होकर वह रो रही थी और मैं निरुत्तर था। मैंने खुद से यही पूछा तो पता चला कि पेपर्स तो मेरे पास भी पूरे नहीं। बीस साल से ज्यादा पुराने कागज तो मेरे पास भी नहीं है। फिर मैं मुंबई आया और दोस्तों से इस पर चर्चा की, मामले को ठीक से समझा। तब से मैं लोगों को बता रहा हूं कि कैब और एनआरसी किस तरह से हम सभी लोगों के लिए नुकसानदेह हैं।

अब तक आप कहां कहां जा चुके हैं और आगे का क्या प्रोग्राम है?
आगे का तो मैंने नहीं सोचा, लेकिन बिहार के कई जिलों में जा चुका हूं। सीएए और एनआरसी का खौफ देखना हो तो बिहार का दौरा करिए। वहां इस वक्त आधार कार्ड सेंटरों में वही नोटबंदी वाली भीड़ दिख रही है। रात के दो-दो बजे तक आधार कार्ड सेंटरों में लाइन लगी है। लोग अपना आधार कार्ड दुरुस्त करा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में भी कई जिलों में मैं लोगों को इसके नुकसान बता चुका हूं। महाराष्ट्र और साउथ में तो लगातार बोल ही रहा हूं। इसके बारे में अभी बहुत जागरुकता फैलानी होगी।

लोगों की क्या प्रतिक्रिया है?
लोग बहुत डरे हुए हैं। सबसे ज्यादा तो गरीब मुसलमान और दलित-आदिवासी डरे हुए हैं। वजह यह कि भारत में किसी के भी कागजात या तो पूरे नहीं हैं और अगर पूरे हैं भी तो उनमें कहीं न कहीं कोई गड़बड़ी छूटी हुई है। यही वजह है कि बिहार में आधी-आधी रात तक लाइनें लगी हैं। लोगों को लगता है कि आधार करेक्शन से काम हो जाएगा। इससे पता चलता है कि लोगों में कितना ज्यादा डर का माहौल है। वॉट्सएप के मुस्लिम ग्रुप में इस वक्त सिर्फ एक ही चर्चा ट्रेंड में है- डॉक्यमेंट्स कैसे पूरे करें? उनको पता है कि कागजात नहीं होंगे तो ये सीधे डिटेंशन सेंटर भेजेंगे। सबने देखा कि पिछले दिनों कैसे केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को डिटेंशन सेंटर बनाने का लेटर भेजा है।

सीएए और एनआरसी को अलग-अलग देखें या एक साथ?
सीएए इसलिए आया क्योंकि एनआरसी करना चाहते हैं। वरना सीएए नहीं आता। असम में एनआरसी हुआ तो सबसे ज्यादा हिंदू ही डिटेंशन सेंटर पहुंच गए। कागज तो हिंदुओं के पास भी नहीं हैं। ये चीज राजनीतिक रूप से इनके खिलाफ जाती है। हालांकि सरकार उनको वापस लेने के लिए वहां नोटिफिकेशन जारी कर रही थी, लेकिन अब वह इसके लिए कैब ले आई है। एनआरसी और सीएए- दोनों आपस में जुड़े हुए हैं, सीएए का अकेले कोई खास मतलब नहीं है।

किसे किसे यह प्रभावित कर रहा है और कैसे?
अगर आपके पास करेक्ट डॉक्यूमेंट्स नहीं है तो यह आपको भी प्रभावित करेगा। मुझे लगता है कि सरकार नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर के जरिए इसकी शुरुआत करेगी। सरकारी आदमी घर आएगा और हमारे कागजात चेक करेगा। वहां पर अगर कोई कमी हुई तो असम की ही तरह हमारे नाम के आगे संदिग्ध का निशान लग जाएगा और फिर हमें यह साबित करना होगा कि हम यहां के नागरिक हैं या नहीं हैं। पहले यह सरकार की जिम्मेदारी थी कि वह साबित करे, लेकिन अब यह उल्टा हो गया है। अब हम सबको साबित करना होगा कि हम भारत के नागरिक हैं या नहीं। कागजात तो बहुत कम लोगों के पूरे हैं, ऐसे में सीन साफ है। जो सबसे गरीब हैं, वो इसे भुगतेंगे। जो बाहर काम कर रहे हैं, यानी जितने कामगार हैं, उन्हें इससे दिक्कत होगी। हर साल देश का बड़ा हिस्सा बाढ़ और सूखे से प्रभावित होता है, वहां विस्थापन नियमित चलता है, वो भुगतेंगे। आदिवासियों के पास तो कोई कागज ही नहीं होता।

डॉक्यूमेंट्स बनवाने में भ्रष्टाचार सबसे आम शिकायत है। क्या इससे भ्रष्टाचार भी बढ़ सकता है?
बिलकुल। अब जिसका शासन-सत्ता में कनेक्शन नहीं है, जिनका भ्रष्टाचार से कनेक्शन नहीं है, वो इससे बहुत प्रभावित हो रहे हैं। दिल्ली में ऐसे हजारों लोग आपको मिल जाएंगे जो सड़क पर रहते हैं, वो कहां जाएंगे। फिर जनता को तो कैसे भी सर्वाइव करना है, वह कैसे भी करके कोशिश करेगी।

आईएएस लॉबी में इसे लेकर क्या कुछ प्रतिक्रिया है?
मुझे आईएएस लॉबी इसे लेकर क्या कर रही है, ये नहीं पता। हम सब इंडीविजुअल्स हैं। ऐसे तो कई सारे हैं जिन्हें लगता है कि इस मुद्दे को अभी छोड़ देना चाहिए। लेकिन मुझे नहीं लगता कि इसके लिए कोई लॉबी है। अधिकतर तो यही सोचते हैं कि मनपसंद पोस्ट मिल जाए या मनपसंद जगह ट्रांसफर हो जाए। मुझे तो लगता है कि जिस संविधान पर हाथ रखकर इन्होंने शपथ ली है, आधे भी उसका अर्थ ठीक से नहीं जानते होंगे।

अब तो बिल पास हो गया तो अब क्या करें?
बिल तो शुरुआत है। जब संसद फेल होती है तो जनता शुरू होती है। हमें संविधान ने यह अधिकार दिया है कि हम शांतिपूर्वक सभा कर सकते हैं और प्रदर्शन कर सकते हैं। हम यह अधिकार भूल चुके हैं। इसे हमें इस्तेमाल करना होगा, अब नहीं करेंगे तो कब करेंगे? सरकार हमारी नागरिकता पर सवाल उठा रही है तो हम सरकार ने अब नहीं पूछेंगे तो कब पूछेंगे? नोटबंदी में हमारा पैसा तीन महीने बाद वापस किया, ऐसे ही हमारी नागरिकता ले ली जा रही है जो कब वापस होगी, नहीं पता।