Tuesday, December 22, 2015

दि‍खती है धन के एश्‍वर्य की आभा

 बरेली वाली बाला कि‍स्‍मत की धनी है और शायद ही कहीं कमजोर पड़ी हो। 
बरेली में रहे लोग मजबूत होते हैं फि‍र चाहे वीरेन दा हों या प्रियंका। 
धन का भी एक एश्‍वर्य होता है, लेकि‍न ये जरूरी नहीं कि एश्‍वर्य से हर बार वो आभा नि‍कले, जि‍सके लि‍ए सौंदर्यसम्‍मत कलात्‍मक कोशि‍श की जा रही हो। ये भी जरूरी नहीं कि न नि‍कले। बहरहाल, भैसाली भाई जि‍स एश्‍वर्य की आभा ताउम्र दि‍खाने की कोशि‍श करते रहे, ईमानदारी से, अब जाकर थोड़ी थोड़ी झलक उसकी दि‍खाई दी है। भारी भरकम सेट और तकनीक का कि‍तना भी सद्उपयोग कर लें, कहानी कहने की कला का जादू सबको रंग देता है।

कहानी क्‍या है, ये कि‍सी से नहीं छुपा। तो फि‍र ऐसी क्‍या छुपी हुई चीज है, जि‍से देखने के लि‍ए ये फि‍ल्‍म बुलाए। छुपी हुई चीजों को देखने के लि‍ए ये फि‍ल्‍म देखनी पड़ेगी। वैसे अदाकारी पर बात की जा सकती है जि‍समें बाजीराव और मस्‍तानी कई जगहों पर कमजोर पड़े हैं। अपना भैसाली भाई चाहता तो कई जगहों पर रीटेक ले सकता था, लेकि‍न शायद इन दोनों की अदाओं के सामने वो भी कमजोर पड़ गया होगा। बरेली वाली बाला कि‍स्‍मत की धनी है और शायद ही कहीं कमजोर पड़ी हो। बरेली में रहे लोग मजबूत होते हैं फि‍र चाहे वीरेन दा हों या प्रियंका।

मैं सौ में से सत्‍तर फीसद मानकर चलता हूं कि बनाए हुए गीत फि‍ल्‍म का वास्‍तवि‍क हि‍स्‍सा नहीं होते हैं। तीस फीसद इसलि‍ए मानकर चलता हूं क्‍यों सि‍नेमा और उसका संगीत मेरे यहां बमुश्‍कि‍ल इतने ही लोगों तक पहुंचता है। भैंसाली भाई खुद इसका संगीत दि‍ए हैं और अलबेला सजन दूसरी टोन में लेकर आए हैं, सुनि‍एगा जरूर। कहने का बस इतना मतलब है कि न गीत और न संगीत, कहीं पर डि‍स्‍टर्ब नहीं कर रहे हैं। कम से कम उतना तो नहीं, जि‍तना फेसबुक की कति‍पय कवि‍ताएं करती हैं।

फि‍ल्‍म के अंत में कट्टर हिंदुत्‍व की हमलावर काली ध्‍वजा और काले घोड़े क्‍या संदेश देना चाहते हैं, ये लि‍खी हुई कहानी बयां नहीं कर सकती, इसका बयान सिर्फ एक फि‍ल्‍म ही कलमबंद कर सकती है। ऐति‍हासि‍क फि‍ल्‍मों की श्रेणी में अगर ये कहा जाए कि इस फि‍ल्‍म ने रि‍स्‍क लेने के नए रास्‍ते और इति‍हास में दर्ज होने के नए हर्फ गढ़े हैं तो अति‍श्‍योक्‍ति नहीं होगी। देखकर महसूस करना पढ़ने सुनने लि‍खने से कहीं अलग की अनुभूति है और वो भी तभी महसूसेगी जब दि‍खने वाले में वो स्‍पार्क होगा।

फि‍ल्‍म पाकि‍स्‍तान में बैन की गई, इसका कहानी से कोई रि‍श्‍ता नज़र नहीं आता। अगर मोइन अख्‍तर भाई साहब का लूजटाक देखें तो सबसे पहले तो वो बैन होना था। पाकि‍स्‍तानी लोगों को उन्‍हीं की इस कहानी से महरूम रखने के क्‍या वजहें हो सकती हैं, फि‍ल्‍म देख लेने के बाद ये जानना चाहें तो आपका 10 साल का बच्‍चा पूरी कहानी बता देगा। उनपर यकीन करें, वो आपसे ज्‍यादा इनफॉर्म्‍ड हैं।

ये फि‍ल्‍म शाहरुख को सोचने देने के लि‍ए दि‍या गया आराम है, लगातार कॉपी कि‍ए जाने पर अल्‍पवि‍राम है।

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