कहानी उस ताखे पर है, जिसको घुटना कहते हैं
मेरे लड़कपन का प्रेम मेरी काजोल न होती तो क्या होता। कहानी मत देखिए, काजोल को देखिए। |
काली, राज, किंग, फूल, पत्ती, धूल, कार, सवार, प्यार, जीत-हार से लेकर संजय मिश्रा तक बोर हैं, जॉनी भाई भी चुके हुए लोगों के साथ कितना कर लेंगे। एक धागे में दस सुई डाल के सिलाई नहीं होती लेकिन पैसे हों तो दिलवाले जैसी होती है। अपने अफ्रीका वाले जेमी भाई तो जीवित हैं नहीं, कम से कम उनकी बनाई फिल्में देखकर ही सीख लेते मेरे शरम शेट्टी।
नहले पे दहला, सगा सौतेला, सेट अलबेला सब डाल दिया और कहानी निकालकर उस ताखे पर रख दी जो घुटने में होती है। मेरे लड़कपन का प्रेम मेरी काजोल न होती तो क्या होता। कहानी मत देखिए, काजोल को देखिए। संतोष करिए, असंतोष नहीं। इसे भी फिल्म कहते हैं। बस।
इसे ही कभी घुसी कभी कम कहते हैं।
No comments:
Post a Comment