फेसबुक के फ्रॉड- 6
खुद को दलितों का नया मसीहा, पिछड़ों का तार्किक भगवान और वंचितों का विष्णु समझने वाले कह रहे हैं कि फेसबुकिया फ्रॉड फ्री बेसिक्स पर उन्हें फिर फिर सोचना पड़ेगा क्योंकि उन्हें लगता है कि ये एक बड़ी आबादी की आवाज बुलंद करने का माध्यम हो सकता है। अबे अंबेडकर के आठवें झूठे अवतार, एक बेसिक बात तुम्हरी समझ में आती है या नहीं कि फेसबुक की फ्री सौ साइट बनाम दूसरी फ्री करोड़ों साइट्स का मामला है। या फिर जो नासमझी तुमने जबरदस्ती जाति के नाम पर ओढ़ रखी है, कोई कहेगा भी तो हटाओगे नहीं कि तुमको जाति विशेष का कुछ विशेष फायदा मिलता है
अबे इतनी भी बेसिक बात समझ में तुम्हारी नहीं आ रही है कि फ्री बेसिक्स के नाम पर कुछ भी फ्री नहीं है, अगर कुछ फ्री है तो वो तुम्हारा वक्त है जिसे तुम समाज में कहीं कितने कार्यक्रमों में लगा सकते थे, कितनी बातें कर सकते थे, लेकिन वो सबकुछ करने का तुम्हारा सपना फेसबुक एक फ्री के अनफ्री मायाजाल में लपेटकर खत्म कर रहा है। अबे फैशनेबल दलित बुद्धजीवी के बाल, कब समझोगे कि पूंजीवाद कतई नहीं चाहता कि तुम एकदूसरे के आमने सामने आकर बात करो।
इंटरनेट पर वायरल होने के लिए गूगल के कीवर्ड से भ्रष्टाचार का सपना संजोने वाले, अबे शर्म तो तुमको पहले भी नहीं आती थी कि दलित होने के नाते जो चाहो उल्टा सीधा बोल लो जो अत्याचार के बहाने बेशर्मी से जायज ठहराओ, लेकिन तकनीकी समझ तुममें तब भी नहीं थी और अब भी नहीं है। खासकर जब तुम ये बोलते हो कि तुम देखेगो। अबे घंटापरसाद, मोटा मोटा भी तुम्हारी समझ में नहीं आता कि एक का समर्थन करने पर तुम्हरे हाथ से दूसरे करोड़ों प्लेटफॉर्म छीने जा रहे हैं?उनको यूज करने का अभी का समान रेट डिसबैलेंस किया जाने की तैयारी है? ससुर तुम्हरी बुद्धी का भगवान बुद्ध भी ठीक ना कर पाएंगे।
(जारी...)
अबे इतनी भी बेसिक बात समझ में तुम्हारी नहीं आ रही है कि फ्री बेसिक्स के नाम पर कुछ भी फ्री नहीं है, अगर कुछ फ्री है तो वो तुम्हारा वक्त है जिसे तुम समाज में कहीं कितने कार्यक्रमों में लगा सकते थे, कितनी बातें कर सकते थे, लेकिन वो सबकुछ करने का तुम्हारा सपना फेसबुक एक फ्री के अनफ्री मायाजाल में लपेटकर खत्म कर रहा है। अबे फैशनेबल दलित बुद्धजीवी के बाल, कब समझोगे कि पूंजीवाद कतई नहीं चाहता कि तुम एकदूसरे के आमने सामने आकर बात करो।
इंटरनेट पर वायरल होने के लिए गूगल के कीवर्ड से भ्रष्टाचार का सपना संजोने वाले, अबे शर्म तो तुमको पहले भी नहीं आती थी कि दलित होने के नाते जो चाहो उल्टा सीधा बोल लो जो अत्याचार के बहाने बेशर्मी से जायज ठहराओ, लेकिन तकनीकी समझ तुममें तब भी नहीं थी और अब भी नहीं है। खासकर जब तुम ये बोलते हो कि तुम देखेगो। अबे घंटापरसाद, मोटा मोटा भी तुम्हारी समझ में नहीं आता कि एक का समर्थन करने पर तुम्हरे हाथ से दूसरे करोड़ों प्लेटफॉर्म छीने जा रहे हैं?उनको यूज करने का अभी का समान रेट डिसबैलेंस किया जाने की तैयारी है? ससुर तुम्हरी बुद्धी का भगवान बुद्ध भी ठीक ना कर पाएंगे।
(जारी...)
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