फेसबुक के फ्रॉड- 7
अपने यहां ब्लाक स्तर तक इंटरनेट की कनेक्टिविटी, उससे मिलने वाली लगभग सारी जरूरी सुविधाएं जैसे लेखपाल का हाल, कंपटीशन रिजल्ट्स, वोटर सर्विस, बीएलओ, ईआरओ, विधायक निधि का हाल चाल, मनरेगा, ग्रामीण आवास योजनाएं, उद्योग बंधु, निवेश मित्र, ब्लड डोनर लिस्ट, टेंडर वगैरह का हाल चाल एनआइसी पहले ही मुहैया करा रही है। क्या वजह है कि इसमें से एक भी प्वाइंट फेसबुक की फ्री बेसिक योजना में नहीं है। एम्स और देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेज पिछले पांच साल से आपस में कनेक्ट होने की सफल टेस्टिंग कर रहे हैं, इसमें भी फेसबुक अपने फ्री बेसिक्स से कोई डेवलपमेंट नहीं करना चाहता। बुजुर्गों की पेंशन और छात्रों को जो स्कॉलरशिप मिलनी होती है, एनआइसी पहले से ही सारी जानकारी दे रहा है, लेकिन ये भी इस फ्रॉडिए फेसबुक के फ्री बेसिक्स में नहीं है।
फेसबुक को समझना होगा कि ये साउथ एशिया है। चीन जापान से लेकर थाईलैंड, म्यामांर और भारत तक में गति में सुगति कछुए की मानी गई है जो गंत्व्य तक पहुंचाने की गारंटी है। और हमारी जितनी औकात है, हम उतना कर रहे हैं। कम से कम पिछले पांच सालों में गावों से आने वाली सैकड़ों हजारों खबरों में लगातार आती एक खबर है कि सरकार गांव गांव में इंटरनेट की बेसिक सुविधा मुहैया कराने के लिए ट्रिपल पी योजना चला रही है और ये कैफे खुल भी रहे हैं। न सिर्फ खुले हैं बल्कि लोगों को इंटरनेट की बेसिक सुविधा, जो हमारी खेती किसानी, बैंकिंग से जुड़ी है, मुहैया करा रहे हैं। देश बड़ा है, काम करने वाले तनिक स्लो हैं, लेकिन ऐसा तो बिलकुल नहीं है कि काम नहीं हुआ है। किसी भी जिले के डीएम से बात कर लीजिए, वो चुटकियों में बता देगा कि अपने जिले में उसने कितने गावों में कंप्यूटर विद इंटरनेट विद ट्रेंड परसन फिट कर दिए हैं। फिटनेस के इस जमीनी काम का फेसबुक कहीं जिक्र भी जरूरी नहीं समझता।
सवाल उठता है कि क्यों? फ्री बेसिक्स में फेसबुक का कहना है कि वो सारी कमाई विज्ञापन के जरिए करेगा। विज्ञापन बाजार का सीधा सा ट्रेंड है कि उनने वहीं पहुंचना है जहां उनका ग्राहक है। इसके अलावा उन्हें उनसे बाल बराबर भी मतलब नहीं, जो उनका ग्राहक नहीं है। ये ऊपर इंटरनेट से जुड़ी जितनी चीजें बताई हैं, इन्हें प्रयोग करने वाले आज के बाजार के ग्राहक नहीं है। इन सारी योजनाओं से जिनका काम पड़ता है, उनका काम टोयेटा से लेकर नौकरी डॉट कॉम या फ्लिपकार्ट, डव शैंपू, जिलेट रेजर जैसी चीजों से आलमोस्ट नहीं ही पड़ता है। वो ईंट पर बैठकर दाढ़ी बनवाने वाले लोग हैं और बनाने वाले भी। यहां विज्ञापन का मार्केट नहीं है इसलिए जो वाकई में फ्री बेसिक्स है, वो फ्रॉड फेसबुक के फ्री बेसिक्स में शामिल नहीं है।
(जारी...)
फेसबुक को समझना होगा कि ये साउथ एशिया है। चीन जापान से लेकर थाईलैंड, म्यामांर और भारत तक में गति में सुगति कछुए की मानी गई है जो गंत्व्य तक पहुंचाने की गारंटी है। और हमारी जितनी औकात है, हम उतना कर रहे हैं। कम से कम पिछले पांच सालों में गावों से आने वाली सैकड़ों हजारों खबरों में लगातार आती एक खबर है कि सरकार गांव गांव में इंटरनेट की बेसिक सुविधा मुहैया कराने के लिए ट्रिपल पी योजना चला रही है और ये कैफे खुल भी रहे हैं। न सिर्फ खुले हैं बल्कि लोगों को इंटरनेट की बेसिक सुविधा, जो हमारी खेती किसानी, बैंकिंग से जुड़ी है, मुहैया करा रहे हैं। देश बड़ा है, काम करने वाले तनिक स्लो हैं, लेकिन ऐसा तो बिलकुल नहीं है कि काम नहीं हुआ है। किसी भी जिले के डीएम से बात कर लीजिए, वो चुटकियों में बता देगा कि अपने जिले में उसने कितने गावों में कंप्यूटर विद इंटरनेट विद ट्रेंड परसन फिट कर दिए हैं। फिटनेस के इस जमीनी काम का फेसबुक कहीं जिक्र भी जरूरी नहीं समझता।
सवाल उठता है कि क्यों? फ्री बेसिक्स में फेसबुक का कहना है कि वो सारी कमाई विज्ञापन के जरिए करेगा। विज्ञापन बाजार का सीधा सा ट्रेंड है कि उनने वहीं पहुंचना है जहां उनका ग्राहक है। इसके अलावा उन्हें उनसे बाल बराबर भी मतलब नहीं, जो उनका ग्राहक नहीं है। ये ऊपर इंटरनेट से जुड़ी जितनी चीजें बताई हैं, इन्हें प्रयोग करने वाले आज के बाजार के ग्राहक नहीं है। इन सारी योजनाओं से जिनका काम पड़ता है, उनका काम टोयेटा से लेकर नौकरी डॉट कॉम या फ्लिपकार्ट, डव शैंपू, जिलेट रेजर जैसी चीजों से आलमोस्ट नहीं ही पड़ता है। वो ईंट पर बैठकर दाढ़ी बनवाने वाले लोग हैं और बनाने वाले भी। यहां विज्ञापन का मार्केट नहीं है इसलिए जो वाकई में फ्री बेसिक्स है, वो फ्रॉड फेसबुक के फ्री बेसिक्स में शामिल नहीं है।
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