फेसबुक के फ्रॉड- 5
मैं सोच रहा हूं उस वक्त और उस वक्त के रिजल्ट्स के बारे में, जब भारत के आम चुनाव कब होने चाहिए, कैसे होने चाहिए और क्यों होने चाहिए और उसका रिजल्ट क्या होना चाहिए, फेसबुक इस बारे में हमारे यहां के हर मॉल, नुक्कड़ और सड़कों पर बड़ी बड़ी होर्डिंग्स लगाएगा। यकीन मानिए, तब भी उसका यही कहना होगा कि वो जो कुछ कह रहा है, सही कह रहा है क्योंकि उसके पास भारत में पौने एक अरब यूजर्स हैं। मेरी मांग है कि मुझे कान के नीचे खींचकर एक जोरदार रहपटा लगाया जाए ताकि मैं इस तरह की वीभत्स और डरा देने वाली सोच से बाहर आ सकूं। मेरे देश के लोगों के अंग विशेष पर उगे बाल बराबर भी नहीं है ये कंपनी और किसी देश के बारे में ऐसा सोच रही है...एक्चुअली हम ही ढक्कन हैं और सिर्फ घंटा बजाने लायक हैं, अक्सर थामने लायक भी।
ये पौने एक से एक अरब लोग भी उसी धोखेबाजी का शिकार होंगे, जिस धोखेबाजी को यूज करके फेसबुक ने ट्राइ को 32 लाख लोगों से मैसेज भेजवा दिए और जिनने ये मैसेज भेजे, उन्हें ये पता ही नहीं कि ये मैसेब भेजवाकर फेसबुक आखिर करना क्या चाहता है। इतना ही नहीं, लोगों से धोखे से ट्राइ को मैसेज भेजवाकर बाकायदा प्रचार भी किया जा रहा है कि इतने लोगों ने मैसेज भेजे। ये तो वही बात हुई कि आपके फेसबुक पर कहीं किसी कोने से निकलकर एक बक्सा (पॉपअप) सामने आए जिसमें ये लिखा हो कि आप विकास चाहते हैं या विनाश। ठीक उसी तरह से जैसे अभी की धोखाधड़ी फेसबुक ने 32 लाख लोगों से की कि आप फ्री में नेट चाहते हैं या पैसे देकर? जाहिर है कि आप विकास को ही वोट देंगे और जहां आपने विकास को वोट दिया, वो वोट सीधे मोदी से कनेक्ट हो जाएगा कि भैया, विकास तो पप्पा ही पैदा कर सकते हैं। या फिर उस पार्टी से, जो कम्युनिकेशन के इस गड़बड़घोटाले का समर्थन करता हो। इंडियल आइडियल की तरह इंडियन प्राइम मिनिस्टर के लिए कुछ तय समय के लिए लाइन खुलेंगी और इसी से हमारे इस महान लोकतंत्र की मां चो***ने के बाद नया प्रधानमंत्री पैदा होगा। (शब्दों के लिए माफी, पर कभी तो गुस्सा निकालने दीजिए)
मिस्र की घटना के बाद फेसबुक की इस हवाई आकांक्षा को और बल मिला है कि वो परिवर्तन ला सकता है लेकिन ईमानदारी से दिल पर हाथ रखकर कोई मुझसे कनफेस करे कि मिस्र में क्या सच में फेसबुक की वजह से बदलाव आया? और इतना ही बदलाव पर यकीन था तो जितना पिछड़ा अफ्रीका और भारत है, मिस्र उससे भी कहीं ज्यादा पिछड़ा और बदलाव का इंतजार कर रहा है, वहां क्यों नहीं पहले इस योजना को लॉन्च किया गया। जाहिर है, पूंजी अपनी अंर्तव्यवस्थात्मक समाज में कहीं भी कोई बदलाव अगर देखना चाहती है तो वो चेतना तो कतई नहीं हो सकती है, अर्धचेतनात्मक नशा जरूर हो सकता है... फेसबुक और क्या है भाई लोग?
(जारी...)
ये पौने एक से एक अरब लोग भी उसी धोखेबाजी का शिकार होंगे, जिस धोखेबाजी को यूज करके फेसबुक ने ट्राइ को 32 लाख लोगों से मैसेज भेजवा दिए और जिनने ये मैसेज भेजे, उन्हें ये पता ही नहीं कि ये मैसेब भेजवाकर फेसबुक आखिर करना क्या चाहता है। इतना ही नहीं, लोगों से धोखे से ट्राइ को मैसेज भेजवाकर बाकायदा प्रचार भी किया जा रहा है कि इतने लोगों ने मैसेज भेजे। ये तो वही बात हुई कि आपके फेसबुक पर कहीं किसी कोने से निकलकर एक बक्सा (पॉपअप) सामने आए जिसमें ये लिखा हो कि आप विकास चाहते हैं या विनाश। ठीक उसी तरह से जैसे अभी की धोखाधड़ी फेसबुक ने 32 लाख लोगों से की कि आप फ्री में नेट चाहते हैं या पैसे देकर? जाहिर है कि आप विकास को ही वोट देंगे और जहां आपने विकास को वोट दिया, वो वोट सीधे मोदी से कनेक्ट हो जाएगा कि भैया, विकास तो पप्पा ही पैदा कर सकते हैं। या फिर उस पार्टी से, जो कम्युनिकेशन के इस गड़बड़घोटाले का समर्थन करता हो। इंडियल आइडियल की तरह इंडियन प्राइम मिनिस्टर के लिए कुछ तय समय के लिए लाइन खुलेंगी और इसी से हमारे इस महान लोकतंत्र की मां चो***ने के बाद नया प्रधानमंत्री पैदा होगा। (शब्दों के लिए माफी, पर कभी तो गुस्सा निकालने दीजिए)
मिस्र की घटना के बाद फेसबुक की इस हवाई आकांक्षा को और बल मिला है कि वो परिवर्तन ला सकता है लेकिन ईमानदारी से दिल पर हाथ रखकर कोई मुझसे कनफेस करे कि मिस्र में क्या सच में फेसबुक की वजह से बदलाव आया? और इतना ही बदलाव पर यकीन था तो जितना पिछड़ा अफ्रीका और भारत है, मिस्र उससे भी कहीं ज्यादा पिछड़ा और बदलाव का इंतजार कर रहा है, वहां क्यों नहीं पहले इस योजना को लॉन्च किया गया। जाहिर है, पूंजी अपनी अंर्तव्यवस्थात्मक समाज में कहीं भी कोई बदलाव अगर देखना चाहती है तो वो चेतना तो कतई नहीं हो सकती है, अर्धचेतनात्मक नशा जरूर हो सकता है... फेसबुक और क्या है भाई लोग?
(जारी...)
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