Sunday, December 28, 2014

गाने के लि‍ए एक गारी

(नहीं जानता, कि‍तने लोग गारी से परि‍चि‍त होंगे। ये मेरे अवध की परंपरा है जि‍समें ब्‍याह होने के दूसरे दि‍न महि‍लाएं वर पक्ष के पि‍ता को गाना गाकर गालि‍यां देती हैं..)
धरम ध्‍वजा धारी, कि बड़े सदाचारी
नचावैं नई कन्‍या, दुआरे पे कुमारी
बरसै मंतर, कि रख के कटारी
धरम ध्‍वजा धारी, कि बड़े सदाचारी।
..... अरे साथे साथे पुरवावा हो बहि‍नी.... का जनी कहां गईं मनोरमा मउसी...
दहि‍जरा के चोदे, बनैं हैं पटवारी
बि‍स्‍तरा पे सोवैं, रात भर एक्‍कै वारी
समधन का तूड़़ैं, ना पावैं एक्‍को बारी
हाथ बना समधी, तोहार बीमारी।
गन्‍ना मा खींचैं, मेहतरि‍न कै सारी
धरम ध्‍वजा धारी, कि बड़े सदाचारी
छोल दि‍हि‍स गन्‍ना तोर 'ऊ' चहुंवारी
समधी बना सगरे देस के बलत्‍कारी।
पहि‍नैं भगवा औ मन भा अहंकारी
समधी यै हमरे बहुत संसारी
छोड़ैं ना मुल्‍ला ना लौंडि‍या कुंवारी
गांव भरे मा यै फैलाइन बीमारी।
तौनौ पे हमरे समधी यस, कि इनका रच्‍चौ सरम आय जाय तौ कहै के कौनौ बात बा
कि...
धरम ध्‍वजा धारी, कि बड़े सदाचारी
लौंडि‍या देख-देख बनि‍न बलात्‍कारी
मुल्‍लन का देख कौम बनाइन हत्‍यारी
कैइसे दी इनका आपन बि‍टि‍या बेचारी....
कैइसे दी इनका आपन बि‍टि‍या बेचारी....
कैइसे दी इनका आपन बि‍टि‍या बेचारी....
यहलि‍ए... जा हो समधी। तोहार हमरे घरे दाल ना गल पाए। भि‍नौखा के खिचड़ी खाय के जरूरत नाय बा। हमका नाय चाही यस समधी... जे तोहरे नाय होय।

राइजिंग राहुल अवध बीज भंडार हरिंग्‍टनगंज मि‍ल्‍कीपुर वाले 

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