गीता प्रेस के नाम एक पत्र- WTF
सेवा में,
श्रीमान संपादक महोदय
गीता प्रेस, गोरखपुर
महोदय
विषय: संस्कृतनिष्ठ नमो जाप जीवनी निर्माण हेतु
जैसा कि सर्वविदित है कि वर्ष 2014 हिंदुत्व क्रांति के उदय का वर्ष है। क्रांति का जयघोष राष्ट्र के हर नगर, मोहल्ले व घरों में गूंज रहा है। हर घर में कल तक आपके प्रेस की आरती ओम जय जगदीश हरे गाई जाती थी, अब नमो नमो की नई आरती गाई जा रही है। यह सम्पूर्ण देश के एक साथ उठ खड़ा होने और नमो के आदेशों पर चलकर देश को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने का वक्त है। हिंदुत्व की इस क्रांति को देखते हुए हमारे हिंदूवादी प्रकाशन गृहों की भी एक नई जिम्मेदारी बन जाती है, जिसे हम लेखकगण अच्छी तरह से समझते हैं। यह पत्र मैं आपको इसीलिए लिख रहा हूं।
महोदय, प्रकाशन गृहों की जिम्मेदारी तब और भी बढ़ जाती है, जब हम अपने समकालीन इतिहास को खंगालते हुए भाषा में नित नूतन प्रयोग और उनका निस्तारण पाते हैं। हिंदुत्व की इस क्रांति ने हिंदी ही नहीं, संस्कृत और अंग्रेजी सहित पालि भाषा में नए नए प्रयोग किए हैं जिनका इस क्रांति की नमोमय जीवनी में बाकायदा उल्लेख किया जाना अति आवश्यक हो गया है। ऐसे मौके पर वाम, पश्चिम, पूर्व या अन्य दस दिशाओं में सोचने वालों का सुनना पूरी तरह से व्यर्थ है क्योंकि वह सभी प्रतिक्रांतिकारी हैं। आपको सूचित करते हुए मुझे यह गर्व भी हो रहा है कि हमने इन प्रतिक्रांतिकारियों और हिंदुत्व के दुश्मनों से निपटने के लिए स्पेशल भक्त सेना तैयार कर ली है। यह भक्त सेना बखूबी समाज की सेवा कर रही है। यही सेना इन प्रतिक्रांतिकारियों को झाड़ू से पीट पीटकर वो महान रचनावली तैयार कराएगी, जिसके छपते ही उसकी छह लाख प्रतियां मॉरीशस में यूं बिक जाएंगी कि रामचरितमानस की प्रतियां या कल्याण की भी प्रतियां प्रसारण संख्या में उससे छोटी पड़ जाएंगी।
महोदय, एक धार्मिक व्यक्ति होने की वजह से मेरा हमेशा से दुख रहा है कि न तो तुलसीदास ने और न ही सूरदास ने उस वानर सेना का जिक्र किया, जिसकी वजह से भगवान राम युद्ध जीते। हालांकि मेरा भगवान राम में पूरा यकीन है कि वो अपने उसी पुरुषार्थ के तेज से जीते जो तिलक बन उनके मस्तक पर समूचे विश्व में आज भी अपना प्रकाश बिखेरता है। इसमें सेना वेना का बहुत योगदान तो नहीं है, फिर भी मेरा यही दुख रहा कि मैं उस वानर सेना के बारे में नहीं जान पाया। इसके दोषी आप नहीं हैं, तुलसीदास हैं, ये मैं अभी साफ कर देना उचित समझता हूं। ....और सूरदास, मीराबाई भी। पर अब मैं भगवान के कल्किअवतार को देखकर, उनकी वानर सेना से साक्षात मिलकर इतना अभिभूत हूं, कि यदि मैं आपको पत्र लिखकर इनपर एक भक्तचरितमानस अलग से ना लिखूं (या जो नमो नमो न कहें, उनसे हमारी वानर सेना लिखवाए), तो एक बार फिर से घोर अपराध होगा। यह उसी अपराध को दोहराना होगा, जो कवि से लेकर अकवि तक आज तक करते आए हैं। कबीर जैसे अपवाद तो वैसे भी हम लोग कहां छापते पढ़ते हैं। वैसे भावातिरेक में मुझसे बार बार वानरसेना निकल रहा है, जिसका मैं क्षमाप्रार्थी हूं।
श्रीमंत, यही सही समय है कि हम खुद को इतिहास के सभी अपराधों और पापों से एक बार में ही मुक्त कर लें। हम इस समकालीन और नितनवशब्दयुक्त इतिहास को कीमती कागज पर कुछ यूं उकेरें कि तुलसीदास पानी भरने के लिए सांप की अगहन इस्तेमाल करने लगें और सूरदास को वो वानर सेना दिखाई देने लगे, जिसे न देखने के लिए उन्होंने जानबूझकर अपनी आंख में तेल डाला था। जिस तरह से हमारी हड़प्पा और कृष्णमोहन जोदड़ो कालीन अति प्राचीन भाषा स्मृतियों से निकलकर बाहर आ रही है, मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि नई लिखी जाने वाली नमो जाप जीवनी इतनी आसान और संस्कृतनिष्ठ भाषा में होगी कि लोगों को मां के लिए कहे गए अपशब्द भी कानों में शहद घोलने वाले लगेंगे। इतना ही नहीं, हमारी भक्त सेना जिस तरह की शब्दावली बहनों, बेटियों, बहुओं के लिए प्रयोग करती है, वह हमारे हिंदू समाज में रुह अफजा नामक आयातित रस की मिठास न फैलाएं तो कहिएगा। इसका आप जब चाहें, संस्कृत में बड़ी ही आसानी से अनुवाद भी करा सकेंगे। यकीन मानिए, संस्कृत में प्रकाशित होते ही अकेले थिरुवनंतपुरम में इसकी दो चार लाख प्रतियां तो यूं ही निकल जाएंगी, ऐसा मुझे पिछली 7 रातों से स्वप्न में खुद भगवान नमो ने आकर कहा है। चिली और मॉरीशस तो इसे राजश्री वालों की हम आपके हैं कौन बना देंगे।
आपसे आशा है कि जल्द मुझे इस पुस्तक के लेखन हेतु आवश्यक सहयोग राशि भेजने की कृपा करेंगे। आपकी कृपा के बाद हमारी भक्त सेना सभी वाममार्गियों, भौतिकवादियों को झाड़ू से पीट पीटकर उनसे वह महान रचनावली लिखवाएगी, जिसका उल्लेख नास्त्रेदमस ने सन 1700 में ही अपनी मशहूर किताब में कर दिया था। इस किताब के सफल होते ही तुरंत इतिहास का पुर्नलेखन ईरानियन स्मृति आधारित पुस्तक में किया जाएगा। चूंकि युग अपना है तो इस किताब को हम अपने बच्चों के पाठ्यक्रम में लगाकर उन्हें बचपन से ही राष्ट्रवादी बनने की प्रेरणा भी दे सकेंगे।
आपका
रॉयल्टी मिलने तक- रंकश्री प्रोडक्शन, अंधेरी (गली नहीं) आलमारी।
श्रीमान संपादक महोदय
गीता प्रेस, गोरखपुर
महोदय
विषय: संस्कृतनिष्ठ नमो जाप जीवनी निर्माण हेतु
जैसा कि सर्वविदित है कि वर्ष 2014 हिंदुत्व क्रांति के उदय का वर्ष है। क्रांति का जयघोष राष्ट्र के हर नगर, मोहल्ले व घरों में गूंज रहा है। हर घर में कल तक आपके प्रेस की आरती ओम जय जगदीश हरे गाई जाती थी, अब नमो नमो की नई आरती गाई जा रही है। यह सम्पूर्ण देश के एक साथ उठ खड़ा होने और नमो के आदेशों पर चलकर देश को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने का वक्त है। हिंदुत्व की इस क्रांति को देखते हुए हमारे हिंदूवादी प्रकाशन गृहों की भी एक नई जिम्मेदारी बन जाती है, जिसे हम लेखकगण अच्छी तरह से समझते हैं। यह पत्र मैं आपको इसीलिए लिख रहा हूं।
महोदय, प्रकाशन गृहों की जिम्मेदारी तब और भी बढ़ जाती है, जब हम अपने समकालीन इतिहास को खंगालते हुए भाषा में नित नूतन प्रयोग और उनका निस्तारण पाते हैं। हिंदुत्व की इस क्रांति ने हिंदी ही नहीं, संस्कृत और अंग्रेजी सहित पालि भाषा में नए नए प्रयोग किए हैं जिनका इस क्रांति की नमोमय जीवनी में बाकायदा उल्लेख किया जाना अति आवश्यक हो गया है। ऐसे मौके पर वाम, पश्चिम, पूर्व या अन्य दस दिशाओं में सोचने वालों का सुनना पूरी तरह से व्यर्थ है क्योंकि वह सभी प्रतिक्रांतिकारी हैं। आपको सूचित करते हुए मुझे यह गर्व भी हो रहा है कि हमने इन प्रतिक्रांतिकारियों और हिंदुत्व के दुश्मनों से निपटने के लिए स्पेशल भक्त सेना तैयार कर ली है। यह भक्त सेना बखूबी समाज की सेवा कर रही है। यही सेना इन प्रतिक्रांतिकारियों को झाड़ू से पीट पीटकर वो महान रचनावली तैयार कराएगी, जिसके छपते ही उसकी छह लाख प्रतियां मॉरीशस में यूं बिक जाएंगी कि रामचरितमानस की प्रतियां या कल्याण की भी प्रतियां प्रसारण संख्या में उससे छोटी पड़ जाएंगी।
महोदय, एक धार्मिक व्यक्ति होने की वजह से मेरा हमेशा से दुख रहा है कि न तो तुलसीदास ने और न ही सूरदास ने उस वानर सेना का जिक्र किया, जिसकी वजह से भगवान राम युद्ध जीते। हालांकि मेरा भगवान राम में पूरा यकीन है कि वो अपने उसी पुरुषार्थ के तेज से जीते जो तिलक बन उनके मस्तक पर समूचे विश्व में आज भी अपना प्रकाश बिखेरता है। इसमें सेना वेना का बहुत योगदान तो नहीं है, फिर भी मेरा यही दुख रहा कि मैं उस वानर सेना के बारे में नहीं जान पाया। इसके दोषी आप नहीं हैं, तुलसीदास हैं, ये मैं अभी साफ कर देना उचित समझता हूं। ....और सूरदास, मीराबाई भी। पर अब मैं भगवान के कल्किअवतार को देखकर, उनकी वानर सेना से साक्षात मिलकर इतना अभिभूत हूं, कि यदि मैं आपको पत्र लिखकर इनपर एक भक्तचरितमानस अलग से ना लिखूं (या जो नमो नमो न कहें, उनसे हमारी वानर सेना लिखवाए), तो एक बार फिर से घोर अपराध होगा। यह उसी अपराध को दोहराना होगा, जो कवि से लेकर अकवि तक आज तक करते आए हैं। कबीर जैसे अपवाद तो वैसे भी हम लोग कहां छापते पढ़ते हैं। वैसे भावातिरेक में मुझसे बार बार वानरसेना निकल रहा है, जिसका मैं क्षमाप्रार्थी हूं।
श्रीमंत, यही सही समय है कि हम खुद को इतिहास के सभी अपराधों और पापों से एक बार में ही मुक्त कर लें। हम इस समकालीन और नितनवशब्दयुक्त इतिहास को कीमती कागज पर कुछ यूं उकेरें कि तुलसीदास पानी भरने के लिए सांप की अगहन इस्तेमाल करने लगें और सूरदास को वो वानर सेना दिखाई देने लगे, जिसे न देखने के लिए उन्होंने जानबूझकर अपनी आंख में तेल डाला था। जिस तरह से हमारी हड़प्पा और कृष्णमोहन जोदड़ो कालीन अति प्राचीन भाषा स्मृतियों से निकलकर बाहर आ रही है, मैं आपको आश्वस्त करना चाहता हूं कि नई लिखी जाने वाली नमो जाप जीवनी इतनी आसान और संस्कृतनिष्ठ भाषा में होगी कि लोगों को मां के लिए कहे गए अपशब्द भी कानों में शहद घोलने वाले लगेंगे। इतना ही नहीं, हमारी भक्त सेना जिस तरह की शब्दावली बहनों, बेटियों, बहुओं के लिए प्रयोग करती है, वह हमारे हिंदू समाज में रुह अफजा नामक आयातित रस की मिठास न फैलाएं तो कहिएगा। इसका आप जब चाहें, संस्कृत में बड़ी ही आसानी से अनुवाद भी करा सकेंगे। यकीन मानिए, संस्कृत में प्रकाशित होते ही अकेले थिरुवनंतपुरम में इसकी दो चार लाख प्रतियां तो यूं ही निकल जाएंगी, ऐसा मुझे पिछली 7 रातों से स्वप्न में खुद भगवान नमो ने आकर कहा है। चिली और मॉरीशस तो इसे राजश्री वालों की हम आपके हैं कौन बना देंगे।
आपसे आशा है कि जल्द मुझे इस पुस्तक के लेखन हेतु आवश्यक सहयोग राशि भेजने की कृपा करेंगे। आपकी कृपा के बाद हमारी भक्त सेना सभी वाममार्गियों, भौतिकवादियों को झाड़ू से पीट पीटकर उनसे वह महान रचनावली लिखवाएगी, जिसका उल्लेख नास्त्रेदमस ने सन 1700 में ही अपनी मशहूर किताब में कर दिया था। इस किताब के सफल होते ही तुरंत इतिहास का पुर्नलेखन ईरानियन स्मृति आधारित पुस्तक में किया जाएगा। चूंकि युग अपना है तो इस किताब को हम अपने बच्चों के पाठ्यक्रम में लगाकर उन्हें बचपन से ही राष्ट्रवादी बनने की प्रेरणा भी दे सकेंगे।
आपका
रॉयल्टी मिलने तक- रंकश्री प्रोडक्शन, अंधेरी (गली नहीं) आलमारी।
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