Sunday, April 15, 2007

जय श्री राम

पुलिस ,पंडे और पॉकेट मार .. 3

के पी सिंह

बात कुलमिलाकर यह थी कि दूसरे पंडों से ज्यादा 'सुविधाजनक' जगह पर तख़्त रखने के लिए पंडा जी सिपाही को हफ्ता दिया करते थे। मगर इस बार दरोगा जी खुद आकर वसूली कर गए थे। यह हकतलफी सिपाही जी से बर्दाश्त नही हुई। उन्होने पूछा - दरोगा कौन होता है? घाट पर डयूटी मैं करता हूँ कि वह ? उसे क्यों हफ्ता दिया? और दिया तो अब मुझे भी दे, नही तो ले भुगत। और सिपाही जी ने तख़्त सरयू में बहा दिया। उनका कहना था कि उससे श्रद्धालुओं को बहुत असुविधा हो रही थी।

मुझसे दखल दिए बिना रहा नही जा रहा था पर रामभरोसे ने मेरे मुँह पर उंगली रख दी। कहा- अभी नही। अभी अनुभव पूरा नही हुआ। पुलिस पण्डे की दुकडी को पॉकेट मार के साथ मिलकर तिकड़ी की गति को प्राप्त हो जाने दीजिए। वह देखिए, उचक्का उस तीर्थयात्री की गठरी ले भगा और सिपाही जी बेफिक्री से अपने जूतों के फीते ठीक कर रहे हैं। मैंने पूछा - वी उसे पकड़ने के लिए दौडाते क्यों नही? रामभरोसे का जवाब था-अपने अपने विश्वास की बात है। उन्हें मालूम है कि उचक्का इमानदार है और उनका हिस्सा उन्हें पंहुचा जाएगा। हिस्सा जो उनका हक है। मैंने चुप्पी साध ली। और क्या करता? चुप्पी के ही बीच रामभरोसे ने बाहर की ओर इशारा किया । सिपाही जी नोट गिन रहे थे। अपने साथी को आते देखकर बोले-जय श्री राम। उसने पूछा हो गया काम? और दोनो ही ही करके हंसने लगे।

दुसरी ओर तीर्थयात्री गठरी के लिए परेशान था।

अचानक रामभरोसे ने पूछा- इन लोगों के आगे हम लोगों का कोई हक नही बचा है क्या? मैंने कहा - बचा है। इस तीर्थयात्री की तरह लुटने और पिटने का। रामभरोसे का अगला सवाल था- अखिर हमारा कुसूर क्या है? मैंने बताया- यही कि कोई कुसूर नही कर सकते।

कर सकते हैं भैया, कर सकते हैं। रामभरोसे को जाने क्या हुआ कि वह चिल्लाता हुआ उठा और बाहर घूम रहे एक बहरुपिये जैसे व्यक्ति को दबोच लिया। बोला- रोज देखता हूँ तेरी कारस्तानी। मगर आह तो तुझे बताना ही पड़ेगा कि तेरा साथी इसकी गठरी कहॉ ले गया! नही बतायेगा तो तुझे लिए दिए सरयू मे कूद पदुन्गा मैं अभी।

रामभरोसे को जान पर खेलते देख बहरूपिया बकरी बंकर मिमियाने लगा था। कई और बहरूपिये भी भेष बदलने लगे थे। पाठकगण , इस कथा में कल्पना का भरपूर इस्तेमाल हुआ है। मगर इसके पात्रों व सूत्रों को कल्पित समझने की गलती न ही करें तो अच्छा।

आगे है... "अयोध्या-सब कुछ साझा "

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