Sunday, April 15, 2007

श्री राम चंद्र कृपालु भज मन...

हिंदू होने के फ़ायदे - ५


वहाँ से निकले तो हम चारों सीधे बाग़ की तरफ लपके। बाग़ के चारों तरफ उँची दीवार बनी हुई थी। सो कल्लू ने पहले पतारू को अपने कंधे पे रखकर दीवार कुदाई फिर मुझे। अगम और कल्लू बाहर ही खडे रहे क्योंकि हमें शलीफे तोड़कर बहार फेंकने थे और बहार सारे शलीफे वो दोनो इकट्ठा कर रहे थे। हमने ख़ूब शलीफे तोड़े। बाहर से जब कल्लू ने आवाज़ लगाईं कि झोला और जेब दोनो भर गए हैं , तब जाकर हम लोग बाहर निकले। अरे हाँ ... जब हम लोग दीवार फांद रहे थे तो मुझे वही डम्पू के घर वाली लडकी दिखी। मुझमे जोश आ गया। दोनो लोगों ने जल्दी से दीवार फांदी और इस पार आये। देखा तो सिर्फ कल्लू था और अगम ग़ायब हो चुका था। कल्लू से पूछा कि कहॉ गया? उसने बताया , उसे कोई दिख गयी थी , उसी के पीछे गया है। बोल रहा था कि पहले वाले घाट पे मिलगा। तब तक डम्पू के घर वाली लडकी परिक्रमा मे शामिल हो चुकी थी । हम तीनो भी पीछे पीछे लपके। पतारू कह रहा था कि तू उसे नही पटा पायेगा और कल्लू का विचार था कि पटा लेगा। यही सारी बातें करते हुए हम लोग आगे बढ रहे थे।


तकरीबन तीन - चार किलोमीटर का रास्ता तय करने के बाद रास्ता काफी संकरा हो जता था और भीड़ एक दम से इकट्ठी होकर एक दूसरे से सट जाती थी। सबको बहुत ही धीमे धीमे चलना पड़ता था उस टाइम। हम तीनो भी एक दूसरे का हाथ पकड़कर भीड़ के साथ चल रहे थे। लेकिन इस तंग भीड़ में हमे काफी कुछ दिखाई दे रहा था। अचानक एक चीज़ पे मेरा ध्यान गया और मैंने कल्लू और पतारू का ध्यान उसी ओर आकर्षित किया। ये कोई गाँव की औरत थी जो हमारी तरह उस भीड़ में फंसी हुई थी। एक अधेड़ उम्र का बाबा जिसने केसरिया रंग का लबादा पहना हुआ था और माथे पे ढ़ेर सारा चंदन लगा हुआ था, कभी उस औरत के पुठ्ठों पर हाथ फेरता तो कभी उसके सीने को अपनी कोहनी से टटोलता। मजे की बात तो ये कि उसका चेहरा एकदम सामान्य था और वो कुछ भजन वगैरह गा रहा था। उसके भजन मे हमे सिर्फ राम ही सुनाई दे रहा था लेकिन रामायण पूरी दिखाई दे रही थी। अचानक उस बाबा ने उस औरत के पुठ्ठों पर कुछ किया तो वह औरत बड़ी जोर से चिहुंकी। बाबा के मुँह से और जोर से राम राम निकला और इस बार तो हमे उनका भजन भी सुनाई पड़ा। वह गा रहा था , " श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुड़्म।" जैसे कि अभी रामचंद्र जी महाराज आएंगे और उस औरत का भय और दारुण हर लेंगे। हम लोगों को हंसी छूट गयी तो बाबा थोडा शरमाये, जोर से खंखारे और आगे बढ लिए। तभी हमे अगम दिखा। वो भी वही सब करने की कोशिश कर रहा था जो अभी अभी बाबा जी महाराज करके आगे निकल लिए थे पतली गली से। लेकिन बेचारे के साथ बड़ी टरेजिडी थी। उसका हाथ तो पुठ्ठे तक जा रहा था लेकिन उसे छूने की उसकी हिम्मत ही नही पड़ रही थी। हम लोगों ने उसे आवाज़ लगाईं लेकिन वह हमारे पास ही नही आया।
(जारी...)

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