Sunday, March 1, 2015

मि‍लेगा तो देखेंगे- 4

कि‍तनी बार तो उसने औरत से कहा कि वो उसके मन सी नहीं थी और उसका मन भी उसके मन सा नहीं था, इसीलि‍ए जो था, वो मन नहीं था और जो नहीं था, वो अरगनी पर लटकी आस्‍था की मानिंद चि‍ढ़ा रही थी। जाने कैसा वो वक्‍त था, जाने कैसी वो हवा थी, जाने कैसा वो खोल था और जाने कैसे वो आदमी-औरत थे जो बार बार अपने मन मुताबि‍क मरने का वादा लेकर अपनी बेहूदी आस्‍थानुमा मायूसि‍यों को थोड़ा और पुख्‍ता कर लेना चाहते थे। ये पत्‍थर पर जबरदस्‍ती उगती काई जैसी को अनचाही इच्‍छा ही रही होगी जि‍सपर फि‍सल कर जबरस्‍ती की आस्‍थाएं और मायूसि‍यां अपने पूरी होने की ताकत के साथ आत्‍मा पर गि‍रती हैं और अपने आने को ही खोते हुए एक दरार पैदा करके आगे बढ़ जाती हैं। आदमी बार बार उससे कहकर बगैर नाप का एक और गड्ढा खोदता था कि तुम जिंदा रहना ताकि मुझे मरते हुए देख सको या मेरे मरने की खबर तो पा सको। औरत फि‍र से डर जाती थी कि मरने पर, मन से मरने की एकाधि‍कृत आस्‍था उसी की है, जो गड्ढा उसने खुद बाकायदा नाप के साथ खोदा है, वो कि‍सी और का कैसे हो सकता है। अगर मायूसि‍यों की प्रमेय हर कोई सिद्ध करने लगे तो वो पाइथागोरस का नंगा बदन जली कोठी के कूड़ेदान में ही फेंक दि‍ए जाने काबि‍ल है। बाद में भले ही कोई जेसीबी उसे कूड़े के साथ उठाकर डंपिंग ग्राउंड में फेंक आए, जहां वो टनों कूड़े के नीचे अनगि‍नत सालों तक के लि‍ए दबा रहे और दबा दबा एकदि‍न यूं ही खाद बनकर मि‍ट्टी में मि‍ल जाए। पर उससे भी मुसीबत का अंत न होना था क्‍योंकि डंपिंग ग्राउंड में भी गाहे बगाहे हरी दूब उग ही आती है। कभी कि‍सी से भी खफा न होने वाली दूब, कभी कि‍सी का भी अहि‍त न करने वाली दूब, हमेशा दूसरों का पेट भरने वाली आत्‍मा पर उगी वो दूब आत्‍मा के डंपिग ग्राउंड में हमेशा खाकर खत्‍म कर दी जाती है, लेकि‍न कभी मरती नहीं, हरी होकर उग ही आती है। इंसान की मुसीबतें हरी दूब की तरह हर कहीं उग आने को बेताब हैं। मायूसि‍यों की फि‍सलन हर काठ पर फंफूद की तरह फूटती रहती हैं। आस्‍थाओं की काई हर पत्‍थर पर जमी पसरी है और इनमें से कोई भी ऐसा सुचालक नहीं, जो एक रात को कि‍सी एक दि‍न से भी जोड़े या जो हवाओं का मन बताकर आत्‍मा में एक बि‍जली कौंधा सके। ये सब तो बस एक मुफलि‍सी थी जो दोनों के मन में बराबरी में दायर थी। जज दो थे, अदालत एक थी।  
(जारी...)

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