मिलेगा तो देखेंगे-9
तुम परेशान होगे, बार बार तुम्हारा मन कभी कुछ करने को तो कभी कुछ कहने को कचोटेगा, लेकिन कह नहीं पाओगे। सांसें अंदर जाएंगी तो सवाल के साथ जाएंगी कि जा क्यों रहीं हैं और जाने से पहले रुक क्यों न गईं, इन दो सवालों के साथ-साथ तुम्हारी सांसें ही तुम्हारी सजा होंगी। हर सुबह तुमसे अपना हिसाब लिखवाएगी, पलक का हर झपकना तुमसे पानी की दरख्वास्त करेगा, लेकिन न तो तुम अपना हिसाब पूरा कर पाओगे और न ही पानी की कोई दरख्वास्त। तुम अपना सबकुछ मुझे बताना चाहोगे, फिर भी न बता पाओगे और अगर बताओगे, तो भी मैं उनमें से कोई भी बात नहीं सुनने वाली, समझना तो उतनी दूर की बात है जितना तुम्हारा हिसाब और दरख्वास्त के नजदीक जाकर उन्हें वैसे सहलाने की हिम्मत करना। तुम अक्सर चौंकोगे, अपने चौंकने को अपनी नियति न मानने की जिद में बार बार फिर से वैसे ही चौंकना चाहोगे और कभी कभार शायद तुम्हारा चाहना पूरा हो भी जाए, लेकिन याद रखना, तुम्हारा चाहने की हद सिर्फ तुम्हारे चौंकने तक ही खुदी हुई है। और हां, ये दरार इतनी चौड़ी है कि इसमें मैं अपने उसी मुखौटे के साथ अंदर तक पैवस्त हूं, जिसे पार करने की हिम्मत तुम्हारे अंदर के मैं में तो नहीं है, नहीं ही है।
मुझे पता है कि मेरा मन कचोटेगा, लेकिन आखिर है तो मेरा ही मन। सीधी सच्ची बात ये है कि मेरे मन में क्या चल रहा है, इससे वाकई दुनिया को या फिर तुम्हें भी कोई खास मतलब नहीं है, अगर होगा भी तो मैं ये अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम तो मुझे कभी नहीं बताओगी और दुनिया अव्वल तो आदतन नहीं बताएगी और अक्सर इरादतन नहीं। सांसों का सवाल भी कोई नया नहीं है और नया न होने के बावजूद बस इस सजा को कुछ देर के लिए भूलने की कोशिश करने में न तो कोई बेजा बात है और न कोई बेइमानी, इसलिए सजा को अगर कुछ देर के लिए भी भूला रह गया तो ये मेरी अपनी सांसों के साथ कुछ गनीमत होगी, जिसका शायद सिवाय मेरे और किसी से कुछ लेना देना नहीं है। मुझे ये भी पता है कि दुश्वारियों की दरख्वास्त बड़े ही कमजोर पन्नों और बड़ी ही फीकी स्याही से लिखी होती है। पन्ना हाथ में लेते ही चिटककर टूट जाता है और हर्फ बेपढ़े ही उसी पन्ने में गीले होकर जज्ब हो जाते हैं। मैं ये भी जानता हूं कि मेरे चौंकने से न तो दुनिया चौंकती है, न तुम चौंकती हो और तुम्हारा वो मुखौटा तो बिलकुल भी नहीं चौंकता जो चौंकने से लेकर ऊपर से नीचे तक की सारी दरख्वास्तों को सांसों से जुड़ी एक तफरीह मानता है।
मुझे पता है कि मेरा मन कचोटेगा, लेकिन आखिर है तो मेरा ही मन। सीधी सच्ची बात ये है कि मेरे मन में क्या चल रहा है, इससे वाकई दुनिया को या फिर तुम्हें भी कोई खास मतलब नहीं है, अगर होगा भी तो मैं ये अच्छी तरह से जानता हूं कि तुम तो मुझे कभी नहीं बताओगी और दुनिया अव्वल तो आदतन नहीं बताएगी और अक्सर इरादतन नहीं। सांसों का सवाल भी कोई नया नहीं है और नया न होने के बावजूद बस इस सजा को कुछ देर के लिए भूलने की कोशिश करने में न तो कोई बेजा बात है और न कोई बेइमानी, इसलिए सजा को अगर कुछ देर के लिए भी भूला रह गया तो ये मेरी अपनी सांसों के साथ कुछ गनीमत होगी, जिसका शायद सिवाय मेरे और किसी से कुछ लेना देना नहीं है। मुझे ये भी पता है कि दुश्वारियों की दरख्वास्त बड़े ही कमजोर पन्नों और बड़ी ही फीकी स्याही से लिखी होती है। पन्ना हाथ में लेते ही चिटककर टूट जाता है और हर्फ बेपढ़े ही उसी पन्ने में गीले होकर जज्ब हो जाते हैं। मैं ये भी जानता हूं कि मेरे चौंकने से न तो दुनिया चौंकती है, न तुम चौंकती हो और तुम्हारा वो मुखौटा तो बिलकुल भी नहीं चौंकता जो चौंकने से लेकर ऊपर से नीचे तक की सारी दरख्वास्तों को सांसों से जुड़ी एक तफरीह मानता है।
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