आपाधापी में एक मजे की बात
इतनी सारी आपाधापी में एक मजे की बात-
भाजपा और संघ के पुराने समर्थक भी मोदी सरकार को गाली दे रहे हैं। बहरहाल उतनी बुरी बुरी नहीं जितनी कि नए समर्थक देते हैं, लेकिन केंद्र सरकार इन दिनों जितनी गाली बाहर से खा रही है, उससे बस थोड़ी सी ही कम वो अपने अंदर वालों से खा रही है।
मैनें मेरठ में कुछ भाजपाइयों से बात की। उनका कहना था कि पार्टी तो अब रही नहीं, जो भी यहां बचा है वो गुंडों की जमात है जो पार्टी के ही पुराने लोगों की नहीं सुनते। कुछ सुनाने चलिए तो फिर उनसे मा बहन की गाली ही सुनिए।
लखनऊ, इलाहाबाद, फैजाबाद, मुरादाबाद, गाजियाबाद या फिर नोएडा/दिल्ली, भाजपा का सब जगह यही हाल है। यूपी वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि हमने नहीं लड़ाना विधानसभा का चुनाव। सवाल ये है कि भाजपा का आधार इतना कैसे हिल गया।
जवाब बहुत आसान है। राजनीतिक पार्टी अपने कार्यकर्ताओं से चलती है, नौकरी पर रखे गए सोशल मीडिया मैनेजरों से नहीं। गुजरात में अपनी इसी हिटलरशाही के बलबूते पार्टी का नाश मारने के बाद मोदी-शाह की जुगलबंदी अब पूरे देश में पार्टी के साथ यही कर रही है।
वहां भी पहले सोशल मीडिया मैनेजर रखे गए। पार्टी में जमीनी नेताओं को दरकिनार किया गया। गुंडों की फौज भरती की गई। नतीजतन पार्टी और प्रदेश, दोनों अभी तक सुलग रहे हैं। इसे बुझाने के लिए जो पानी था, वो पहले ही मोदी ने अंबानी अडानी के हाथ बेच दिया तो अब आग और भड़क रही है।
यूपी में तो पुराने लोगों में कोई नामलेवा बचा नहीं है। जो बचे हैं तो वो सिर्फ इसलिए बचे हैं क्योंकि कहीं और बचने की उन्हें कोई संभावना ही नहीं बची दिखती। और बचे हुए लोगों के दम पर राजनीति नहीं की जाती।
मैं निश्चिंत हूं और बंसी भी बजा रहा हूं क्योंकि रोम नहीं जल रहा है। जल रहा होता तो चिल्लाता, वहां से आवाज आती। लेकिन चिल्लाने, चोकरने की जो भी आवाज आ रही है.. वो भाजपा और संघ की ही ओर से आ रही है।
सो डोंट वरी भाई लोग.... आप भी बंसी बजाइए.. चैन की नहीं तो बेचैनी की ही सही। आवाज करते रहिए।
भाजपा और संघ के पुराने समर्थक भी मोदी सरकार को गाली दे रहे हैं। बहरहाल उतनी बुरी बुरी नहीं जितनी कि नए समर्थक देते हैं, लेकिन केंद्र सरकार इन दिनों जितनी गाली बाहर से खा रही है, उससे बस थोड़ी सी ही कम वो अपने अंदर वालों से खा रही है।
मैनें मेरठ में कुछ भाजपाइयों से बात की। उनका कहना था कि पार्टी तो अब रही नहीं, जो भी यहां बचा है वो गुंडों की जमात है जो पार्टी के ही पुराने लोगों की नहीं सुनते। कुछ सुनाने चलिए तो फिर उनसे मा बहन की गाली ही सुनिए।
लखनऊ, इलाहाबाद, फैजाबाद, मुरादाबाद, गाजियाबाद या फिर नोएडा/दिल्ली, भाजपा का सब जगह यही हाल है। यूपी वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि हमने नहीं लड़ाना विधानसभा का चुनाव। सवाल ये है कि भाजपा का आधार इतना कैसे हिल गया।
जवाब बहुत आसान है। राजनीतिक पार्टी अपने कार्यकर्ताओं से चलती है, नौकरी पर रखे गए सोशल मीडिया मैनेजरों से नहीं। गुजरात में अपनी इसी हिटलरशाही के बलबूते पार्टी का नाश मारने के बाद मोदी-शाह की जुगलबंदी अब पूरे देश में पार्टी के साथ यही कर रही है।
वहां भी पहले सोशल मीडिया मैनेजर रखे गए। पार्टी में जमीनी नेताओं को दरकिनार किया गया। गुंडों की फौज भरती की गई। नतीजतन पार्टी और प्रदेश, दोनों अभी तक सुलग रहे हैं। इसे बुझाने के लिए जो पानी था, वो पहले ही मोदी ने अंबानी अडानी के हाथ बेच दिया तो अब आग और भड़क रही है।
यूपी में तो पुराने लोगों में कोई नामलेवा बचा नहीं है। जो बचे हैं तो वो सिर्फ इसलिए बचे हैं क्योंकि कहीं और बचने की उन्हें कोई संभावना ही नहीं बची दिखती। और बचे हुए लोगों के दम पर राजनीति नहीं की जाती।
मैं निश्चिंत हूं और बंसी भी बजा रहा हूं क्योंकि रोम नहीं जल रहा है। जल रहा होता तो चिल्लाता, वहां से आवाज आती। लेकिन चिल्लाने, चोकरने की जो भी आवाज आ रही है.. वो भाजपा और संघ की ही ओर से आ रही है।
सो डोंट वरी भाई लोग.... आप भी बंसी बजाइए.. चैन की नहीं तो बेचैनी की ही सही। आवाज करते रहिए।
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