सब ठीकी ठैरा डाक साब- 4
Dr. Saibal Jana with his son |
एक मेरे बड़े अच्छे दोस्त हैं। भारत में डॉक्टरों ने उन्हें बड़ा मानने से मना कर दिया है। उनका दोष बस यही है कि कान के जिस ऑपरेशन में 25 हजार की मशीन, 20 हजार कमीशन और 15-20 हजार की दवा दारू लगती थी, उनने इस पूरे खर्चे को सिर्फ ढाई हजार रुपये में निपटा दिया। एक रिसर्च कर दी और रिसर्च सफल रही। दुनिया भर के जर्नलों में वो रिसर्च छपी भी। लेकिन वो बड़े नहीं हो सकते क्योंकि वो सरकारी डॉक्टर हैं और इन दिनों पहाड़ के गरीब गुरबा लोगों का इलाज में अपने जीवन का रहस्य खोजने की कोशिश कर रहे हैं। हां ठीक है सर, वो नहीं हैं बड़े डॉक्टर, बस मेरे बड़े अच्छे दोस्त हैं। कितनी बार कहा कि कम से कम ठीक ठाक खर्च के लिए दो चार मरीज तो प्राइवेट देख लो, लेकिन जनाब में कुछ दूसरा ही खून दौड़ रहा है।
एक और भाई साहब हैं। बदन के अंदर और बाहर, जहां जहां दर्द होता है, उसके इलाज के लिए पूरी तरह से नया मैनेजमेंट डेवलप किया। सरकारी नौकरी से छुट्टी लेकर दो साल रिसर्च करते रहे। दर्द को उनकी तरह संभालने वाले इस देश में 25 से ज्यादा डॉक्टर नहीं। सरकारी डॉक्टर हैं और दर्द से उबरा मरीज जब कुछ देने की कोशिश करता है तो आर्शीवाद निकालकर माथे लगाते हैं, बाकी मरीज को वापस। सरकारी राजनीति के चलते कभी मेरठ, कभी लखनऊ, कभी कानपुर तो कभी बनारस ट्रांसफर होता रहता है लेकिन मजाल कभी सरकारी अस्पताल के बाहर कदम जाता हो। साफ कहते हैं कि भाई, दिमाग में बलून डालकर नस सही करने वाला वाला इलाज सलमान खान अमेरिका में तो करा लेगा, लेकिन तकिया वाला सलमान दिल्ली तक नहीं जा पाएगा। कोई तो यहां होना चाहिए उस सलमान के लिए...
और एक डॉ. सैबाल जाना हैं। 35 साल तक फ्री में आदिवासी मरीजों की सेवा करने के लिए इन दिनों जेल काट रहे हैं।
मेरे सामने बड़े और छोटे को लेकर कोई खास समस्या नहीं है मेरे डॉक्टर दोस्तों। आप जैसे भी हैं, ठीक ही कर रहे होंगे। अच्छा करने के लिए बस थोड़ा सा अपने पड़ोसी के बारे में भी सोचना होता है। बाइबिल, कुरान, वेद... सबमें अच्छे के लिए यही कहा है।
सूरा सो पहचानिए जो लरै दीन के हेत
पुर्जा पुर्जा कट मरे, तबहूं न छाड़ैं खेत।
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