सब ठीकी ठैरा डाक साब- 1
एक डॉ. सुधांशु भट्टाचार्या हैं। मुंबई में बड़े डॉक्टर हैं, बड़ी फीस है, बड़ा कमीशन है, बड़ा घर है, बड़ा अस्पताल है, बड़ी दाढ़ी है, बड़ी उम्र है। दिल के डॉक्टर हैं, बस यही एक चीज है जो उनके पास बड़ी नहीं। पूरी बेरहमी से दिल के मरीजों से एक ऑपरेशन के लिए तीन लाख कम से कम लेते हैं, शाम वाम को ऑपरेट कराया तो नौ लाख रुपये तक ले लेंगे। दंभ के साथ कहते हैं- ''जेब देखकर लेता हूं।'' डॉ. सैबाल जाना को नहीं जानते और न जानना चाहते होंगे। आदिवासियों को नहीं जानते और न जानना चाहते हैं। गरीब की हिम्मत नहीं कि फटक जाए इनके पास। वैसे कभी कभी धनपशुओं के क्लबों के कहने पर शायद किसी गरीब का दिल चीरकर देखा हो... क्या निकला उस गरीब के दिल में, इस बारे में जानने को न तो दुनिया का मेडिकल साइंस बेताब है और न हजूर खुद।
एक और हैं वहीं मुंबई में। डॉ. एस नटराजन। आंख के डॉक्टर हैं। बीस साल पहले महीने का 4200 रुपया कमाते थे, अब 42 लाख से ज्यादा कमाते हैं। 15 साल के अंदर मुंबई में 15 करोड़ का अस्पताल बनवा लिया। कैसे?? अरे कमीशन से और कैसे?? चिंता न करें, ये भी कमाने भकोसने वाले ही हैं! समाज से लेने वाले हैं, देने वाले नहीं। सेवा करने वाले डॉक्टर सैबाल 35 साल बिना पैसे की सेवा करते हैं और 35 साल बाद छत्तीसगढ़ पुलिस सारे मानव अधिकारों को डॉ. नटराजन के अस्पताल के ओटी में पहुंचा देती है और सेवादार को जेल! कितना सिंपल गणित है ना?
नरेश बाबू को कैसे भूल गए भैया? बताते नहीं हैं वो कि कितना लेते हैं, फिर भी दर्द-ए-दिल में मुब्तिला शख्स की हिम्मत नहीं कि त्रेहन की तरफ जाने की सोच भी ले! महंगे डॉक्टर हैं, महंगे अस्पताल में काम करते हैं, महंगे लोगों का इलाज करते हैं। महीने में साढ़े तीन सौ लोगों का सीना चीर देते हैं। एस्कॉर्ट में एक बार सीना खुलवाने का खर्च ढाई लाख रुपये से शुरू होता है। आदिवासी हुए, गरीब हुए, लाचार हुए तो वो महंगे नहीं हुआ करते। ये देश के सबसे सस्ते लोग हैं। इनके जो दिल का ध्यान रखता है, छत्तीसगढ़ सरकार ही नहीं, सारी सरकारें उसे जेल की अंडा सेल में ठूंसकर कायदे से ध्यान रखती हैं।
एक और हैं वहीं मुंबई में। डॉ. एस नटराजन। आंख के डॉक्टर हैं। बीस साल पहले महीने का 4200 रुपया कमाते थे, अब 42 लाख से ज्यादा कमाते हैं। 15 साल के अंदर मुंबई में 15 करोड़ का अस्पताल बनवा लिया। कैसे?? अरे कमीशन से और कैसे?? चिंता न करें, ये भी कमाने भकोसने वाले ही हैं! समाज से लेने वाले हैं, देने वाले नहीं। सेवा करने वाले डॉक्टर सैबाल 35 साल बिना पैसे की सेवा करते हैं और 35 साल बाद छत्तीसगढ़ पुलिस सारे मानव अधिकारों को डॉ. नटराजन के अस्पताल के ओटी में पहुंचा देती है और सेवादार को जेल! कितना सिंपल गणित है ना?
नरेश बाबू को कैसे भूल गए भैया? बताते नहीं हैं वो कि कितना लेते हैं, फिर भी दर्द-ए-दिल में मुब्तिला शख्स की हिम्मत नहीं कि त्रेहन की तरफ जाने की सोच भी ले! महंगे डॉक्टर हैं, महंगे अस्पताल में काम करते हैं, महंगे लोगों का इलाज करते हैं। महीने में साढ़े तीन सौ लोगों का सीना चीर देते हैं। एस्कॉर्ट में एक बार सीना खुलवाने का खर्च ढाई लाख रुपये से शुरू होता है। आदिवासी हुए, गरीब हुए, लाचार हुए तो वो महंगे नहीं हुआ करते। ये देश के सबसे सस्ते लोग हैं। इनके जो दिल का ध्यान रखता है, छत्तीसगढ़ सरकार ही नहीं, सारी सरकारें उसे जेल की अंडा सेल में ठूंसकर कायदे से ध्यान रखती हैं।
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