वो राजा नरक योग्य है जिसकी प्रजा दुखी है
हम आहत भी बड़े सेलेक्टिव तरीके से होने लगे हैं। कश्मीर की आज़ादी सुनते ही हताहत हो जाते हैं लेकिन तेलंगाना की आज़ादी के लिए राष्ट्र के खिलाफ जो हिंसा हुई जो नारे लगे, हमारी आह भी नहीं निकलती। पूर्वांचल बनने तक जो जंग जारी है, वो हमारे मुंह से आ भी नहीं निकालती। हरित प्रदेश नाम से एक नया देश बनने वाला है भारत में, इससे हम टन से खुश हो जाते हैं। नागालैंड वाले चूं से भी कर दें तो उन्हें दिल्ली में पकड़कर हताहत कर डालते हैं। अन्ना आंदोलन में झंडा लेकर आज़ादी आज़ादी करने वाले हाय क्या जोश भर देते हैं, वो कहां आहत करते थे।
जो खुद अपने धर्म दर्शन को समझने को तैयार नहीं हैं, वही बार बार सेलेक्टिव तरीके से आहत होते हैं। देवों के देव किसने नहीं सुने। कई देवों को धारण करने पर एक महादेव बनता है। ये देश, जिसे हम सब भारत कहते हैं, असल में ये एक महादेश है। कई देशों से मिलकर बना महादेश। हर राज्य एक देश है। एक आज़ाद देश जहां उसकी अपनी अस्मिता बिलकुल अलग है। यूपी के भैया बिहारी नहीं और अन्ना कभी चटर्जी नहीं बन सकते। अलबत्ता इसे न समझने की जिद पकड़कर आप बार बार आहत हो सकते हैं।
सेना पर सवाल आपको आहत कर देता है लेकिन देश में सैन्य शासन की आप कल्पना तक नहीं कर सकते। क्यों नहीं कर सकते.. क्योंकि मन में डर है कि ये सैनिक कश्मीर में जो कर रहे हैं... फ़ैज़ाबाद के सिविल लाइन्स में भी वही करने लगेंगे। घर में घुसकर। और तब आपके पास आहत होने न होने के लिए कोई सेलेक्शन नहीं रहेगा।
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। ते नृप अवसि नरक अधिकारी।। इसे समझेंगे तो थोड़ा ठीक से समझ में आएगा कि नृप के विरोध के स्वर कहां से उठ रहे हैं और क्यों उठ रहे हैं। वैसे समूचे भारतीय उपमहाद्वीपीय इतिहास में मुझे दूसरा कोई ऐसा नृप नहीं नजर आता जिसका इतना प्रबल विरोध हुआ हो। ये तुलसी ही हैं जो बोल रहे हैं। ये आहत आप है जिनने तब भी तुलसी का विरोध किया था और आपकी आहत होने की आदत के चलते वो लिखने को मजबूर हुए थे-
धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कहौ, जुलहा कहौ कोऊ।
काहू की बेटी सों बेटा न ब्याहब काहू की जाति बिगार न सोऊ।
तुलसी सरनाम गुलाम है राम कौ जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।
मांगि कै खैबो मसीत को सोइबो लेबे को एक न देबे को दोऊ।
राजा कोई भी रहा हो, यहां के लोगों ने गलत का हमेशा प्रबल विरोध किया है। फर्क बस ये है कि पहले राजाओं का इतिहास लिखा जाता था, अब जनता का लिखा जाता है।
जो खुद अपने धर्म दर्शन को समझने को तैयार नहीं हैं, वही बार बार सेलेक्टिव तरीके से आहत होते हैं। देवों के देव किसने नहीं सुने। कई देवों को धारण करने पर एक महादेव बनता है। ये देश, जिसे हम सब भारत कहते हैं, असल में ये एक महादेश है। कई देशों से मिलकर बना महादेश। हर राज्य एक देश है। एक आज़ाद देश जहां उसकी अपनी अस्मिता बिलकुल अलग है। यूपी के भैया बिहारी नहीं और अन्ना कभी चटर्जी नहीं बन सकते। अलबत्ता इसे न समझने की जिद पकड़कर आप बार बार आहत हो सकते हैं।
सेना पर सवाल आपको आहत कर देता है लेकिन देश में सैन्य शासन की आप कल्पना तक नहीं कर सकते। क्यों नहीं कर सकते.. क्योंकि मन में डर है कि ये सैनिक कश्मीर में जो कर रहे हैं... फ़ैज़ाबाद के सिविल लाइन्स में भी वही करने लगेंगे। घर में घुसकर। और तब आपके पास आहत होने न होने के लिए कोई सेलेक्शन नहीं रहेगा।
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। ते नृप अवसि नरक अधिकारी।। इसे समझेंगे तो थोड़ा ठीक से समझ में आएगा कि नृप के विरोध के स्वर कहां से उठ रहे हैं और क्यों उठ रहे हैं। वैसे समूचे भारतीय उपमहाद्वीपीय इतिहास में मुझे दूसरा कोई ऐसा नृप नहीं नजर आता जिसका इतना प्रबल विरोध हुआ हो। ये तुलसी ही हैं जो बोल रहे हैं। ये आहत आप है जिनने तब भी तुलसी का विरोध किया था और आपकी आहत होने की आदत के चलते वो लिखने को मजबूर हुए थे-
धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कहौ, जुलहा कहौ कोऊ।
काहू की बेटी सों बेटा न ब्याहब काहू की जाति बिगार न सोऊ।
तुलसी सरनाम गुलाम है राम कौ जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।
मांगि कै खैबो मसीत को सोइबो लेबे को एक न देबे को दोऊ।
राजा कोई भी रहा हो, यहां के लोगों ने गलत का हमेशा प्रबल विरोध किया है। फर्क बस ये है कि पहले राजाओं का इतिहास लिखा जाता था, अब जनता का लिखा जाता है।
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