भारतीय सेना की सेक्सुअलिटी पर बात करके तो देखिए..
रंगीलाल अगर कहेंगे कि सब कोई एक जइसा नहीं होता तो वो आप इसलिए नहीं समझेंगे कि रंगीलाल आपका कपड़ा प्रेस करने वाला मजूर मनई है न कि आपको हौंके रखने वाला आपका मालिक। कन्हैयालाल कहेंगे तो आप सुनेंगे नहीं क्योंकि सब कोई एक जइसा नहीं होता जइसी बात भी कुछ कुछ देशद्रोही टाइप का मामला बन जाता है तो सुनने न सुनने का कोई मतलब नहीं रह जाता। हम कहेंगे तो आप हमको भी गाली देंगे। न सुनने से, न समझने से और मुंह से अपशिष्ट की उलटी दन्न से कर देने की सदइच्छा से सत्य तो बदलता नहीं, अलबत्ता झूठ को मनमाने तरीके से बदल बदलकर चमेली चाची की लाल लिपिस्टक लगाकर जितना चाहे दिखा लीजिए, उसका कोई मतलब है नहीं।
होमोसेक्सुअलिटी अपराध नहीं है। भारत में नहीं है। दिल्ली हाइकोर्ट ने इसे स्पष्ट कर दिया है। सेक्स से जुड़ी हमारी कोई भी आदत/सोच/पसंद जबतक हमारे बेडरूम से बाहर निकलकर बलात्कार में नहीं बदलती है, तब तक वो अपराध नहीं है, न हो सकती है। मगर अगर बात हमारी भारतीय सेना की हो तो वहां इसे अभी भी अपराध ही माना जाता है। ऐसा ' अपराध', जो सेना में भी उतना ही हो रहा है, जितना कि इस देश में। सेना में भी होमोसेक्सुअल सैनिकों का वही अनुपात है जो इस देश की सारी आबादी के बरक्स। ये मैं नहीं कह रहा भाई लोग, मैनें सेना में नौकरी नहीं की है। पिछले दिनों सेना के एक रिटायर्ड अधिकारी ने रेडिट पर सेना से जुड़े कई खुलासे किए, लेकिन आलमोस्ट भगवा रंग में रंग चुकी हमारी मीडिया को वो दिखाई नहीं दिए। जो नहीं रंगे हैं, उन्हें भी क्यों न दिखाई दिए, मैं ये सवाल उठाता हूं।
देश्ा में एक संविधान होता है जिसके हिसाब से सारी चीजें तय होती हैं। हम अपनी मर्जी से किससे सेक्स करेंगे, ये हमारी अपनी आज़ादी है और होनी ही चाहिए। लेकिन जब भारतीय सेना की बात करें तो इन लोगों ने पिछले दिनों एक सामान्य कैडेट को एनडीए के इम्तिहान में इसलिए फेल कर दिया क्योंकि इंटरव्यू में उसने होमोसेक्सुअल राइट्स का सपोर्ट किया था। वो कैडेट गे नहीं था। सारा मामला क्वोरा डाइजेस्ट पर छपा भी था। ये तब किया गया, जबकि भर्ती के विज्ञापन में कहीं भी ये नहीं लिखा जाता कि आर्मी में भर्ती के लिए आप स्ट्रेट होने चाहिए, होमोसेक्सुअल या लेस्बियन नहीं।
पिछले साल एलजीबीटी राइट्स के लिए काम करने वाले संगठन ने दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य सर्वे कराया था जिसमें भारतीय सेनाएं दुनिया की सबसे कम एलजीबीटी फ्रेंडली सेनाओं की सूची में रखी गईं। एलजीबीटी फ्रेंडली सेनाओं की सूची में न्यूजीलैंड नंबर एक बार आता है और ब्रिटेन नंबर दो पर। भारतीय सेनाओं को इस सूची में सौ में से 34 नंबर मिले हैं। यहां की सेना में एलजीबीटी को लेकर सहिष्णुता लेवल रवांडा, नेपाल, लाइबेरिया, कांगो और श्रीलंका की सेना जितना है। एलजीबीटी को लेकर सबसे कम टॉलरेंस लेवल ईरान, सीरिया, जिम्बॉब्वे, घाना वगैरह में है और इन सबको सौ में से दस से कम अंक मिले हैं। इस सूची एक जवाब मिलता है और फिर एक सवाल भी खड़ा होता है। जवाब ये कि आर्मी में होमोसेक्सुअलिटी है और सवाल ये कि अगर है तो उसे अपराध क्यों समझा जा रहा है?
आप सैनिकों को साल के दस महीने सेक्स नहीं करने देंगे। हस्तमैथुन को मजाक और होमोसेक्सुअलिटी को अपराध बनाएंगे तो सैनिक कहां जाएंगे? क्या करेंगे? कुछ तो करेंगे ना? कुछ हैवानियत सा ही करेंगे फिर...
होमोसेक्सुअलिटी अपराध नहीं है। भारत में नहीं है। दिल्ली हाइकोर्ट ने इसे स्पष्ट कर दिया है। सेक्स से जुड़ी हमारी कोई भी आदत/सोच/पसंद जबतक हमारे बेडरूम से बाहर निकलकर बलात्कार में नहीं बदलती है, तब तक वो अपराध नहीं है, न हो सकती है। मगर अगर बात हमारी भारतीय सेना की हो तो वहां इसे अभी भी अपराध ही माना जाता है। ऐसा ' अपराध', जो सेना में भी उतना ही हो रहा है, जितना कि इस देश में। सेना में भी होमोसेक्सुअल सैनिकों का वही अनुपात है जो इस देश की सारी आबादी के बरक्स। ये मैं नहीं कह रहा भाई लोग, मैनें सेना में नौकरी नहीं की है। पिछले दिनों सेना के एक रिटायर्ड अधिकारी ने रेडिट पर सेना से जुड़े कई खुलासे किए, लेकिन आलमोस्ट भगवा रंग में रंग चुकी हमारी मीडिया को वो दिखाई नहीं दिए। जो नहीं रंगे हैं, उन्हें भी क्यों न दिखाई दिए, मैं ये सवाल उठाता हूं।
देश्ा में एक संविधान होता है जिसके हिसाब से सारी चीजें तय होती हैं। हम अपनी मर्जी से किससे सेक्स करेंगे, ये हमारी अपनी आज़ादी है और होनी ही चाहिए। लेकिन जब भारतीय सेना की बात करें तो इन लोगों ने पिछले दिनों एक सामान्य कैडेट को एनडीए के इम्तिहान में इसलिए फेल कर दिया क्योंकि इंटरव्यू में उसने होमोसेक्सुअल राइट्स का सपोर्ट किया था। वो कैडेट गे नहीं था। सारा मामला क्वोरा डाइजेस्ट पर छपा भी था। ये तब किया गया, जबकि भर्ती के विज्ञापन में कहीं भी ये नहीं लिखा जाता कि आर्मी में भर्ती के लिए आप स्ट्रेट होने चाहिए, होमोसेक्सुअल या लेस्बियन नहीं।
पिछले साल एलजीबीटी राइट्स के लिए काम करने वाले संगठन ने दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य सर्वे कराया था जिसमें भारतीय सेनाएं दुनिया की सबसे कम एलजीबीटी फ्रेंडली सेनाओं की सूची में रखी गईं। एलजीबीटी फ्रेंडली सेनाओं की सूची में न्यूजीलैंड नंबर एक बार आता है और ब्रिटेन नंबर दो पर। भारतीय सेनाओं को इस सूची में सौ में से 34 नंबर मिले हैं। यहां की सेना में एलजीबीटी को लेकर सहिष्णुता लेवल रवांडा, नेपाल, लाइबेरिया, कांगो और श्रीलंका की सेना जितना है। एलजीबीटी को लेकर सबसे कम टॉलरेंस लेवल ईरान, सीरिया, जिम्बॉब्वे, घाना वगैरह में है और इन सबको सौ में से दस से कम अंक मिले हैं। इस सूची एक जवाब मिलता है और फिर एक सवाल भी खड़ा होता है। जवाब ये कि आर्मी में होमोसेक्सुअलिटी है और सवाल ये कि अगर है तो उसे अपराध क्यों समझा जा रहा है?
आप सैनिकों को साल के दस महीने सेक्स नहीं करने देंगे। हस्तमैथुन को मजाक और होमोसेक्सुअलिटी को अपराध बनाएंगे तो सैनिक कहां जाएंगे? क्या करेंगे? कुछ तो करेंगे ना? कुछ हैवानियत सा ही करेंगे फिर...
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