भसम: भग्न संस्कृति मंच
आप दिल पर मत लीजिए मैसी जी, आपके लिए नहीं लिख रहा हूं। और आप तो कहीं भी मत लीजिएगा साशा जी, आपको कहीं भी कुछ दे देने के लिए तो मैं ये बिलकुल भी नहीं लिख रहा हूं। आप तो खुद ही पिछले पंद्रह साल से इस पेरिस को कुछ नहीं दे पाई हैं तो अभी का जन्मा और ऐफिल टॉवर के छोटे ए जितना बड़ा भी न हो पाया मैं आपके लिए क्या लिख पाउंगा। वैसे क्या लिख पाउंगा से भी महती प्रश्न है कि क्यों लिख पाउंगा। जबसे पेरिस आया हूं, यहां की गलियों से ज्यादा तो आपको देने के लिए गालियां ही मन में घूम रही हैं क्योंकि आपकी करतूतें देखने के बाद तो हज़रत आंद्रे आंतोआं को भी अपने थिएटर लिब्र पे शरम आ रही होगी।
बहरहाल, पेरिस में हूं और यहां पर एक भग्न संस्कृति मंच बना दिया है। अब तक तीन बैच निकाल चुका हूं। एक ऐफिल पे कर रहा है तो दूसरा नेशनल म्यूजियम के सामने है। तीसरा घंटे वाली गली में अभी हारमोनियम निकाल रहा है। हारमोनियम पर आपका ऐतराज खारिज किया जाता है क्योंकि थ्योरिटिकली, हमने उसे जन और भस्म से अलग करके संस्कृति से कनेक्ट कर दिया है। ऐसा हमने एक पुराने मंच से सीख लेते हुए किया क्योंकि वो पुराना मंच जन के नाम पर अभी तक बैठकर हारमोनियम ही बजा रहा है।
वैसे मैसी साहेब, आपने कभी ये नया वाला सिंथेसाइजर इस्तेमाल किया क्या, इसमें से कई तरह का आवाज़ निकलता है। खैर आपके पास तो ऑलरेडी कई तरह की आवाज निकालने वाले लोग हैं, और पुराने भी हैं और अनुभवी भी हैं। लात खाए लोग भी हैं जिनके मुंह से तो अब बस आंद्रे व्रेतॉ, फिलिप सुपोल, लूई आरागॉ, जॉर्ज हीनिये, रने क्रेव्हेल और पॉल एलुआर अइसे झरते हैं कि गुरुजी की सिम्फोनी भी पनाह मांगती है। पेरिस में आके नया वाला दाढ़ी का कट भी ले लिए हैं।
कल सात्र हारमोनियम फाउंडेशन गया था। हर तरफ हारमोनियम ही हारमोनियम थे। हर तरफ सुर साधे जा रहे थे। हर तरफ शोर था। सुर सध नहीं पा रहे थे। कुछ चालीस साल पुराने हारमोनियम थे तो कुछ साठ। कुछ तो बीस साल से लगातार फाउंडेशन में आ आकर बजते जाने वाले हारमोनियम थे। लात खाए नए रंग में नहाए हारमोनियम भी थे। मैने इसीलिए हारमोनियम को कल्चर से जोड़ा है। सब जब एक साथ बजते हैं तो कल्चर भी तो बनती है ना।
फ्रेंच के महान नाटककार लिख गए थे कि- कबित बिबेक एक नहीं मोरे। सत्य कहौं लिखि कागर कोरे। इसके आलोक में मैं देखता हूं तो खुद को कहीं टिका हुआ पाता ही नहीं हूं। सोचता हूं कि कैसे वो सात्र फाउंडेशन वाले हारमोनियम इतने साल से टिके हुए हैं। दरअसल यहां का एफिल दुनिया का आश्चर्य नहीं है। इतने सालों से नाटक के नाम पर एक न पर टिके हुए ये हारमोनियम ही दुनिया के सबसे बड़े आश्चर्य हैं। सात सुर सबने सुने हैं लेकिन न का आठवां सुर इनके हारमोनियम से निकलता है। साशा जी प्लीज, अब तो इसे आपको जहां लेना हो, ले लीजिए, आइ डोंट केयर।
कामता प्रसाद हों या किशोरीदास या काशीप्रसाद। श्यामसुंदर दास हों चाहे कल्लू अल्हैत या हीरा डोम.. (इस हिंदी को फ्रेंच ही समझें), इधर पख्तूनी भाषा पुरस्कारों पर उंगली उठाने वालों को चिन्हित किया जा रहा है और वो जहां भी होंगे, उन्हें खोद निकाला जाएगा। ऐसा शीलाजी का फरमान है। कमरे में दर्द भरा पड़ा है तो मजबूरी में मैं बस इतना ही कर सकता था कि बोल दिया।
मिस्सेज पीपी मिस्टर्र केके
नाउ खुलेंगे सबके ठेके
सिट्टेंगे मग हाथ में लेके
थिंकेंगे कब मरेंगा जेके
बहरहाल, पेरिस में हूं और यहां पर एक भग्न संस्कृति मंच बना दिया है। अब तक तीन बैच निकाल चुका हूं। एक ऐफिल पे कर रहा है तो दूसरा नेशनल म्यूजियम के सामने है। तीसरा घंटे वाली गली में अभी हारमोनियम निकाल रहा है। हारमोनियम पर आपका ऐतराज खारिज किया जाता है क्योंकि थ्योरिटिकली, हमने उसे जन और भस्म से अलग करके संस्कृति से कनेक्ट कर दिया है। ऐसा हमने एक पुराने मंच से सीख लेते हुए किया क्योंकि वो पुराना मंच जन के नाम पर अभी तक बैठकर हारमोनियम ही बजा रहा है।
वैसे मैसी साहेब, आपने कभी ये नया वाला सिंथेसाइजर इस्तेमाल किया क्या, इसमें से कई तरह का आवाज़ निकलता है। खैर आपके पास तो ऑलरेडी कई तरह की आवाज निकालने वाले लोग हैं, और पुराने भी हैं और अनुभवी भी हैं। लात खाए लोग भी हैं जिनके मुंह से तो अब बस आंद्रे व्रेतॉ, फिलिप सुपोल, लूई आरागॉ, जॉर्ज हीनिये, रने क्रेव्हेल और पॉल एलुआर अइसे झरते हैं कि गुरुजी की सिम्फोनी भी पनाह मांगती है। पेरिस में आके नया वाला दाढ़ी का कट भी ले लिए हैं।
कल सात्र हारमोनियम फाउंडेशन गया था। हर तरफ हारमोनियम ही हारमोनियम थे। हर तरफ सुर साधे जा रहे थे। हर तरफ शोर था। सुर सध नहीं पा रहे थे। कुछ चालीस साल पुराने हारमोनियम थे तो कुछ साठ। कुछ तो बीस साल से लगातार फाउंडेशन में आ आकर बजते जाने वाले हारमोनियम थे। लात खाए नए रंग में नहाए हारमोनियम भी थे। मैने इसीलिए हारमोनियम को कल्चर से जोड़ा है। सब जब एक साथ बजते हैं तो कल्चर भी तो बनती है ना।
फ्रेंच के महान नाटककार लिख गए थे कि- कबित बिबेक एक नहीं मोरे। सत्य कहौं लिखि कागर कोरे। इसके आलोक में मैं देखता हूं तो खुद को कहीं टिका हुआ पाता ही नहीं हूं। सोचता हूं कि कैसे वो सात्र फाउंडेशन वाले हारमोनियम इतने साल से टिके हुए हैं। दरअसल यहां का एफिल दुनिया का आश्चर्य नहीं है। इतने सालों से नाटक के नाम पर एक न पर टिके हुए ये हारमोनियम ही दुनिया के सबसे बड़े आश्चर्य हैं। सात सुर सबने सुने हैं लेकिन न का आठवां सुर इनके हारमोनियम से निकलता है। साशा जी प्लीज, अब तो इसे आपको जहां लेना हो, ले लीजिए, आइ डोंट केयर।
कामता प्रसाद हों या किशोरीदास या काशीप्रसाद। श्यामसुंदर दास हों चाहे कल्लू अल्हैत या हीरा डोम.. (इस हिंदी को फ्रेंच ही समझें), इधर पख्तूनी भाषा पुरस्कारों पर उंगली उठाने वालों को चिन्हित किया जा रहा है और वो जहां भी होंगे, उन्हें खोद निकाला जाएगा। ऐसा शीलाजी का फरमान है। कमरे में दर्द भरा पड़ा है तो मजबूरी में मैं बस इतना ही कर सकता था कि बोल दिया।
मिस्सेज पीपी मिस्टर्र केके
नाउ खुलेंगे सबके ठेके
सिट्टेंगे मग हाथ में लेके
थिंकेंगे कब मरेंगा जेके
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