सब ठीकी ठैरा डाक साब- 5
आदिवासियों के इलाज के आरोप में जेल से निकलते डॉ. सैबाल |
पैसा कमाने की हवस इन डॉक्टरों को कहां लेकर जाएगी, ये यूरोपियनों के लिए शोध का विषय हो सकता है, बहरहाल सेवा न करने की ज़िद दिन ब दिन डॉक्टरों को गर्त में ही लेकर जा रही है। नियम है कि एमबीबीएस करने के बाद डॉक्टरों को कम से कम एक साल तक ग्रामीण इलाकों में अपनी सेवाएं देनी होंगी। न दी तो एमबीबीएस वाले दस लाख और पीजी वाले 50 लाख रुपये तक फाइन देंगे। पिछले साल ग्रामीण इलाकों में सेवा न देने के लिए हमारे डॉक्टरों ने अकेले महाराष्ट्र में दस करोड़ रुपये का जुर्माना दिया है। मने जुर्माना दे देंगे लेकिन वो काम नहीं करेंगे जिसके लिए डॉक्टर बने हैं। शाबास डॉक्टरों... शाबास। वैसे साथ साथ ये भी इसमें जोड़ते चलें कि जुर्माने की ये सारी धनराशि दवा कंपनियों के कमीशन से ही आई है। वो कमीशन... जो हमारी जेब काटकर जाता है- विदाउट टैक्स।
गांव न जाने की ये जाने कैसी ज़िद है कि कर्नाटक में पिछले साल साढ़े सात हजार एमबीबीएस पासआउट की डिग्री रोक दी गई, फिर भी मजाल है कि साहब गांव की तरफ मुंह भी कर लें। कैसे कर लेंगे... वहां धूल है, धक्कड़ है, मलेरिया से ग्रस्त लोग भैंस बैल पर चढ़कर पहुंचते हैं, सीधे सीधे सपाट चेहरे नहीं हैं, काले चीकट लोग हैं जिनको देखने को उनका मन नहीं करता। कभी कभी मुझे लगता है कि हमारे देश में लोग कुछ बनते ही इसीलिए हैं कि वो खुद कुछ बन सकें। इतिहास देखता हूं तो पाता हूं कि अपने यहां बनने से ज्यादा बनाने पर ज्यादा जोर है लेकिन अब इतिहास बदल चुका है। डाक साब तो बदल ही रहे हैं।
चलते चलते-
ये जो एनआरआइ भाई हैं, जो बाहर बैठकर भारत माता की जै बोलने की जिद पर अड़े रहते हैं, पिछले तीन सालों में इनमें से एक भी एमबीबीएस या पीजी का स्टूडेंट ग्रामीण इलाकों में अनिवार्य सेवा देने नहीं गया है। अमेरिका से रिजेक्टेड ये लोग यहां कोटे से तो दाखिला ले ले रहे हैं, हमारे टैक्स से पढ़ाई कर ले रहे हैं लेकिन सेवा अमेरिका में ही दे रहे हैं। इनकी भारत माता की अमेरिका में ही जाकर जै हो रही है। जै हो... जै जै हो..
और जो गांव जाएगा, गरीबों का, आदिवासियों का इलाज करेगा, वो डॉ.सैबाल जाना की तरह इलाज करने के आरोप में जेल में ठूंस दिया जाएगा।
....ये भी मेरा ही देश है।
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