हिंदी कैसे लिखें
हिंदी कैसे लिखें? कैसे लिखें हिंदी कि अभी तक जितनी लिखी गई है, उसकी जब तक चिंदी चिंदी ना उड़ जाए, मा कसम, हिंदी लिखते रहें- कुछ ऐसे लिखें हिंदी
कैसे लिखेंगे हिंदी कि अभी तक कितने हिंदी लिखने वाले कीपैड को क्रुति देव और मंगल समझे हुए हैं और इससे भी दो कदम आगे कि रेमिंगटन, फोनेटिक और रोमन को समझना उनके सपने में भी नहीं आता।
जितनी तरह से उंगली चल सकती है, उतने तरह के कीपैड बने हैं और मुई मोबाइल कंपनियां हर मॉडल के साथ एक ठो और जोड़के दुनिया को किस अंधेरे जाल में ले जाना चाह रही हैं, नहीं पता। नो सर.. जानना भी नहीं है।
आइपैड खोलिए तो अलग कीबोर्ड, मोटो जी का मोबाइल खोलिए तो अलग, सैमसंग का खोल लीजिए तो उसमें भी अलग। कंप्यूटर पर तो अलग हइये है। कीबोर्डों के जंजाल में फंसा आदमी जाए तो कहां जाए और उधिराए तो क्यों न उधिराए
हम अपलिटिकल हुए इल्जाम लगाना चाह रहा हूं कि आधी चड्ढी पहनने वाले इसी जंजाल से मुक्त होने के लिए इतना छनछनाए हैं। अगर देश सुलग रहा है तो उसमें काफी सारा हाथ उंगलियों के सरल स्वाभाविक नृत्य को तांडव में बदलना है। और दीजिए ढेर सारा कीपैड।
एक तरफ विदेशी हैं कि एक बटन पे पूरी दुनिया लाके रख दिए हैं और एक दांत काटा सेब चिपका के सबका हाथ एक बटन पे नचा रहे हैं और एक हम हैं कि हमारे लिए सबसे अच्छा वही जिसमें सत्रह बटन पंद्रह काज हो।
रवि भाई एक ठो बनाने की कोशिश किए रहे, अगर ये न होता तो आपका तो पता नहीं लेकिन मेरा काफी कुछ डिस्बैलेंस हो गया होता। सधे रहिए, नॉर्मल रहिए और कंप्यूटर या लैपटॉप पे हिंदी लिखने का लिए यहां क्लिक करिए।
बाकी तो जीवन और हिंदी जैसी चल रही है, वैसी चलती ही रहेगी। बल्कि जब जब संघी सरकार आएगी, आशा है कि नई नई हिंदियों का जन्म होगा जो गूगल के सर्च इंजन सेटिंग को ध्वस्त करते हुए सीधे मंगल ग्रह तक मार करेगी।
कैसे लिखेंगे हिंदी कि अभी तक कितने हिंदी लिखने वाले कीपैड को क्रुति देव और मंगल समझे हुए हैं और इससे भी दो कदम आगे कि रेमिंगटन, फोनेटिक और रोमन को समझना उनके सपने में भी नहीं आता।
जितनी तरह से उंगली चल सकती है, उतने तरह के कीपैड बने हैं और मुई मोबाइल कंपनियां हर मॉडल के साथ एक ठो और जोड़के दुनिया को किस अंधेरे जाल में ले जाना चाह रही हैं, नहीं पता। नो सर.. जानना भी नहीं है।
आइपैड खोलिए तो अलग कीबोर्ड, मोटो जी का मोबाइल खोलिए तो अलग, सैमसंग का खोल लीजिए तो उसमें भी अलग। कंप्यूटर पर तो अलग हइये है। कीबोर्डों के जंजाल में फंसा आदमी जाए तो कहां जाए और उधिराए तो क्यों न उधिराए
हम अपलिटिकल हुए इल्जाम लगाना चाह रहा हूं कि आधी चड्ढी पहनने वाले इसी जंजाल से मुक्त होने के लिए इतना छनछनाए हैं। अगर देश सुलग रहा है तो उसमें काफी सारा हाथ उंगलियों के सरल स्वाभाविक नृत्य को तांडव में बदलना है। और दीजिए ढेर सारा कीपैड।
एक तरफ विदेशी हैं कि एक बटन पे पूरी दुनिया लाके रख दिए हैं और एक दांत काटा सेब चिपका के सबका हाथ एक बटन पे नचा रहे हैं और एक हम हैं कि हमारे लिए सबसे अच्छा वही जिसमें सत्रह बटन पंद्रह काज हो।
रवि भाई एक ठो बनाने की कोशिश किए रहे, अगर ये न होता तो आपका तो पता नहीं लेकिन मेरा काफी कुछ डिस्बैलेंस हो गया होता। सधे रहिए, नॉर्मल रहिए और कंप्यूटर या लैपटॉप पे हिंदी लिखने का लिए यहां क्लिक करिए।
बाकी तो जीवन और हिंदी जैसी चल रही है, वैसी चलती ही रहेगी। बल्कि जब जब संघी सरकार आएगी, आशा है कि नई नई हिंदियों का जन्म होगा जो गूगल के सर्च इंजन सेटिंग को ध्वस्त करते हुए सीधे मंगल ग्रह तक मार करेगी।
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