मिलेगा तो देखेंगे-3
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| पेरिस के किसी स्टेशन पर कभी खड़े खड़े |
इस शहर में आदमी खुद को खड़ा देखे भी तो कैसे देखे जहां लोग शादी में जाने के लिए न चुकाने वाला उधार तीन-तीन हजार लेकर जाते हैं, लेकिन साला कोई हरामखोर अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए चार फूल गुलाब का खरीदने के लिए दो सौ रुपया भी उधार नहीं मांगता। ठेलों पर चभर चभर हर वक्त कुछ न कुछ चबाते चुम्हलाते लोगों के चेहरों पर झलकती तफरीह क्यों उस शहर को उसके अंदर खड़ा नहीं होने देती या फिर तफरीह का सारा मंत्र उस शहर की नींव में घुसकर लगातार खुद को पढ़-पढ़कर भोथरा कर रहा है कि न तो उस आदमी में शहर खड़ा हो पा रहा है और न ही वो आदमी उस शहर में खड़ा हो पा रहा है। होते हुए भी जो छूट गया है, दिखते हुए भी जो देखने से रह गया है, वो गांव बार बार क्यों उस शहर में आकर बस जा रहा है और आदमी के पैरों को थोड़ा सा और लुंजपुंज बना जा रहा है।
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अशोक नरायन गुजरात के गृह सचिव रहे हैं। 2002 के दंगों के दौरान सूबे के गृह सचिव वही थे। नरायन रिटायर होने के बाद अब गांधीनगर में रहते हैं।...