Monday, February 23, 2015

सपने सहूंगा मैं

कुछ नहीं कहूंगा मैं
बादल फटे
गोली चले
उम्र घटे
चोट लगे
बत्‍तीसी नि‍काले
हरदम हसूंगा मैं
और चुप रहूंगा मैं
कुछ नहीं कहूंगा मैं।


लाल-लाल दांतों को
अनोखा कहूंगा मैं
नींद टूटे
चौंक उठे
घर्र घर्र
गला रुंधे
लाल दांतों को छुपा
हंसी में फसूंगा मैं
और चुप रहूंगा मैं
कुछ नहीं कहूंगा मैं।


कोई आए, आता रहे
कोई जाए, जाता रहे
धूप चढ़े, चढ़ती रहे
भीड़ बढ़े, बढ़ती रहे
अ से अलि‍फ तक के
सपने सब सहूंगा मैं
कुछ न कहूंगा मैं
चुप ही रहूंगा मैं।

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