सपने सहूंगा मैं
कुछ नहीं कहूंगा मैं
बादल फटे
गोली चले
उम्र घटे
चोट लगे
बत्तीसी निकाले
हरदम हसूंगा मैं
और चुप रहूंगा मैं
कुछ नहीं कहूंगा मैं।
लाल-लाल दांतों को
अनोखा कहूंगा मैं
नींद टूटे
चौंक उठे
घर्र घर्र
गला रुंधे
लाल दांतों को छुपा
हंसी में फसूंगा मैं
और चुप रहूंगा मैं
कुछ नहीं कहूंगा मैं।
कोई आए, आता रहे
कोई जाए, जाता रहे
धूप चढ़े, चढ़ती रहे
भीड़ बढ़े, बढ़ती रहे
अ से अलिफ तक के
सपने सब सहूंगा मैं
कुछ न कहूंगा मैं
चुप ही रहूंगा मैं।
बादल फटे
गोली चले
उम्र घटे
चोट लगे
बत्तीसी निकाले
हरदम हसूंगा मैं
और चुप रहूंगा मैं
कुछ नहीं कहूंगा मैं।
लाल-लाल दांतों को
अनोखा कहूंगा मैं
नींद टूटे
चौंक उठे
घर्र घर्र
गला रुंधे
लाल दांतों को छुपा
हंसी में फसूंगा मैं
और चुप रहूंगा मैं
कुछ नहीं कहूंगा मैं।
कोई आए, आता रहे
कोई जाए, जाता रहे
धूप चढ़े, चढ़ती रहे
भीड़ बढ़े, बढ़ती रहे
अ से अलिफ तक के
सपने सब सहूंगा मैं
कुछ न कहूंगा मैं
चुप ही रहूंगा मैं।
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