नई किताब डिस्कवरी ऑफ सेल्फ
मुहल्ले के बुजुर्ग जिस तरह से तौबाओं को तड़ातड़ तोड़ रहे थे, आखिरकार पिछले बुधवार को भाई को शर्म आ ही गई। किस तरफ से आई और आकर अभी तक गई या नहीं, भाई ने इस बारे में कुछ भी बताने से साफ इन्कार तो कर दिया अलबत्ता ये जरूर बताया कि अब वो अपने घर में बकरी और भेड़ पालने लगा है। आते जाते रस्ते में मिलने वाली आवारा गाय और बैल पर हाथ फेरते फेरते भाई को ये क्रांतिकारी आइडिया आया कि इंसान न सही तो कोई बात नहीं, सहलाया तो भेड़ और बकरी को भी जा सकता है। अब न तो अंग्रेज रहे, न यशपाल और न वो लखनऊ कि भेड़ बकरी को सहलाने पर अंग्रेज खुद किसी एंग्लो इंडियन की औलाद को पकड़ ले जाएं।
अब हालात कुछ इस तरह से हैं कि मुहल्ले के तमाम बुजुर्ग अपनी तोड़ी हुई तौबाओं की गदराई कमर में हाथ डालकर मेले में अपने रोज ठेलने का किस्सा बयां करते सुने देखे और पकड़े जा सकते हैं। उन्हें ऐसा करते देख भाई भी कभी बकरी का कान पकड़के सहलाता है तो कभी घर के चबूतरे पर बैठकर भेड़ों के बालों में हाथ फेरता है। भाई ने ये भी बताया कि सुख का सिर्फ एक ही अर्थ होता है जिसे सुख ही कहते हैं। उसके आने का भी वही एक प्राचीन रास्ता है फिर चाहे को तौबा तोड़े या भेड़ बकरी बिल्ली सहलाए।
अपने सुख की सर्वकालजयी कथा के लिए भाई ने अब तय कर लिया है कि अंदी बंदी नंदी की जगह अब वह अपने लिए अपनी नई किताब डिस्कवरी ऑफ सेल्फ लिखने जा रहा है। इसके आठ खंडों में प्रकाशन के लिए भाई की वाणी प्रकाशन वालों से बात हो गई है। भाई ने ये भी दावा किया है कि इसके देखने मात्र से प्राणी के जीवन में दुख भरी चिड़चिड़ी वासनाओं की शुरुआत हो जाएगी। वाणी वालों ने न छापी तो वो अपना खुद का प्रकाशन गिरोह खोल लेगा। वैसे भी जिन अश्कों को बहना ना आया, उनने प्रकाशन गिरोह बना लिया।
इसी जोश में भाई ने हाल फिलहाल फिर से तौबा तोड़ने वाले एक बुजुर्ग कवि से इसका जिक्र कर दिया तो कवि ने कहा कि वो तो कम से कम 16 खंडों में अपनी कविताएं छपवाएगा। इससे कम में वह किसी भी कीमत पर राजी नहीं होगा फिर भले ही उसकी तोड़ी हुई तौबा मचलकर किसी सदन लश्यप के हाथ जाकर लग जाए। क्या जुल्फ क्या जुगल, कविताओं व कामनाओं का मुग़ल बनने से बुजुर्ग कवि को भाई भी नहीं रोक पाएगा, ऐसा भाई का विश्वास है और ऐसा ही भाई ने मुझे बताया।
भाई खुश है। अब उसके पास एक भेड़ है, एक बकरी है, जिन्हें रात में वो कमरे के अंदर बांधने का दावा करता है कि पहाड़ों में ठंड बहुत होती है।
मैं खुश हूं। मेरे पास भी एक बिल्ली है। मैं उसे रात या दिन, कभी भी नहीं बांधता।
(नोट: बुजुर्ग शब्द भाई ने प्रयोग किया है। इससे किसी को दुख हो तो मैं भाई की तरफ से क्षमाप्रार्थी हूं।)
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अपने सुख की सर्वकालजयी कथा के लिए भाई ने अब तय कर लिया है कि अंदी बंदी नंदी की जगह अब वह अपने लिए अपनी नई किताब डिस्कवरी ऑफ सेल्फ लिखने जा रहा है। इसके आठ खंडों में प्रकाशन के लिए भाई की वाणी प्रकाशन वालों से बात हो गई है। भाई ने ये भी दावा किया है कि इसके देखने मात्र से प्राणी के जीवन में दुख भरी चिड़चिड़ी वासनाओं की शुरुआत हो जाएगी। वाणी वालों ने न छापी तो वो अपना खुद का प्रकाशन गिरोह खोल लेगा। वैसे भी जिन अश्कों को बहना ना आया, उनने प्रकाशन गिरोह बना लिया।
इसी जोश में भाई ने हाल फिलहाल फिर से तौबा तोड़ने वाले एक बुजुर्ग कवि से इसका जिक्र कर दिया तो कवि ने कहा कि वो तो कम से कम 16 खंडों में अपनी कविताएं छपवाएगा। इससे कम में वह किसी भी कीमत पर राजी नहीं होगा फिर भले ही उसकी तोड़ी हुई तौबा मचलकर किसी सदन लश्यप के हाथ जाकर लग जाए। क्या जुल्फ क्या जुगल, कविताओं व कामनाओं का मुग़ल बनने से बुजुर्ग कवि को भाई भी नहीं रोक पाएगा, ऐसा भाई का विश्वास है और ऐसा ही भाई ने मुझे बताया।
भाई खुश है। अब उसके पास एक भेड़ है, एक बकरी है, जिन्हें रात में वो कमरे के अंदर बांधने का दावा करता है कि पहाड़ों में ठंड बहुत होती है।
मैं खुश हूं। मेरे पास भी एक बिल्ली है। मैं उसे रात या दिन, कभी भी नहीं बांधता।
(नोट: बुजुर्ग शब्द भाई ने प्रयोग किया है। इससे किसी को दुख हो तो मैं भाई की तरफ से क्षमाप्रार्थी हूं।)
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