शर्म पर नियंत्रण करने का एक पतित प्रयास
मैं मनुष्यता के काबिल नहीं, अलबत्ता भेड़ों के समूह में भी मुझे लेकर नवक्रांतिकारी बहस का भी कोई नतीजा नहीं निकलेगा कि क्या मैं उनकी जाति के काबिल हूं। तौबाओं को तोड़ते रहने से ऊबा मैं अब तो बस तौबाओं को तीन तकिए दूर से ताड़ता हूं और बचता हूं उनसे आंख मिलाने से। वैसे कई सारी आखिरी तौबाएं मैनें बचा रखी हैं जो न मुझे करनी हैं न ताड़नी।
डायरी-1
नंगई की भी अपनी अदाएं होती हैं जिन्हें मैं अपने बहुरंगी चश्मे से देखता रहता हूं। बदन की सारी नंगई किस तरह के ख्यालों में आजाद होती हैं, इसपर आदि अनादिकाल से किसने नहीं लिखा। मन की सारी नंगई जो रोज मेरे सामने मुजरा करके मेरे बचे हुए सैंतीस रूपये कैसे छीनने को उतारू है, ये किस बहीखाते के किस मद में दर्ज करूं, बस इसी कश्मकश में हूं। हया की ये कैसी दीवार मेरी जबान पर खड़ी हो गई है कि मैं किसी की भी नंगई से फिसल पाने में खुद को चुना हुआ पाता हूं। नंगों को देखकर भी शर्म मुझे ही आती है। सोचता हूं कि दिल्ली के हर फ्लाईओवर के नीचे मैं सिर्फ काली शर्ट पहनकर निकलूं। अगर कोई पूछे कि नीचे नंगे क्यूं तो बोलूं कि कुछ नहीं, बस अपनी शर्म पर नियंत्रण करने का एक पतित प्रयास ही तो कर रहा हूं सर..
डायरी-2
डायरी-1
नंगई की भी अपनी अदाएं होती हैं जिन्हें मैं अपने बहुरंगी चश्मे से देखता रहता हूं। बदन की सारी नंगई किस तरह के ख्यालों में आजाद होती हैं, इसपर आदि अनादिकाल से किसने नहीं लिखा। मन की सारी नंगई जो रोज मेरे सामने मुजरा करके मेरे बचे हुए सैंतीस रूपये कैसे छीनने को उतारू है, ये किस बहीखाते के किस मद में दर्ज करूं, बस इसी कश्मकश में हूं। हया की ये कैसी दीवार मेरी जबान पर खड़ी हो गई है कि मैं किसी की भी नंगई से फिसल पाने में खुद को चुना हुआ पाता हूं। नंगों को देखकर भी शर्म मुझे ही आती है। सोचता हूं कि दिल्ली के हर फ्लाईओवर के नीचे मैं सिर्फ काली शर्ट पहनकर निकलूं। अगर कोई पूछे कि नीचे नंगे क्यूं तो बोलूं कि कुछ नहीं, बस अपनी शर्म पर नियंत्रण करने का एक पतित प्रयास ही तो कर रहा हूं सर..
डायरी-2
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