|
- तस्वीर में ऐसी ही काली कुपोषित काया वाली बच्ची है
जिसके पैरों में चांदी की पायल सर्दी की हलकी धुंध में भी चमक रही है
और एक काले होंठों वाला व्यक्ति उन्हें गोलकर फूस में आग जलाने का प्रयत्न कर रहा है। |
बक्सर में जो समोसे खाने को मिले, उनमें आलू के साथ साथ काले चने भी मिले थे। साथ में टमाटर लहसुन और हरी मिर्च की सिल पर पीसी चटनी थी। जिस स्त्री ने इसे बनाया, उसका रंग सांवला और होंठ काले थे। जौनपुर में जो समोसा खाया, उसके साथ तलकर नमक से लपेटी हरी मिर्च भी मिली, जिसे मेरे बगल अपने पति के साथ खड़ी स्त्री नहीं खा पा रही थी। उसके होंठ भी काले थे जिनपर मिर्च से उतरे नमक के महीन दाने शाम की धूप में चमक रहे थे। मोहनियां से पटना तक के दो सौ किलोमीटर के रास्ते में मुझे एक भी स्त्री ऐसी नहीं दिखी, जो कवियों की कुकल्पना के मुताबिक हो। अब अगर कोई कवि गुलाबी होंठों को केंद्र में रखकर कोई कविता कहेगा या कह चुका होगा तो मैं उसे कविता मानने से इन्कार करता हूं और उस कवि की समूची कल्पना के आगे सर्वकाल के लिए कु शब्द स्थापित करता हूं।
नहीं हैं गुलाबी होंठों वाली स्त्रियां अपने यहां। होंगी तो कहीं एयर कंडिशनर या ब्लोअर की छांव तले होंगी जिनतक भोजपुर बक्सर की नंगी उधड़ी सड़क पर भागते हुए मैं नहीं पहुंच सका। जहां भी पहुंचा, फिर चाहे वो कमाली बेगम की मज़ार हो या कौआ डोल या राजगीर की खुरदुरी पहाड़ियां, सर्दियों से सूखे काले होंठ और कुपोषित काया वाली स्त्रियों को कंडे पाथते या पुआल धरते पाया। बिहार में अभी कई जगहों पर गेहूं बोया नहीं गया है नहीं तो खेतों में उनके जीवित कंकाल काले होंठों के पीछे से मोती चमकाते दिखाई देते।
|
वही स्त्रियां |
राजगिर के उड़न खटोलों में भी वही स्त्रियां थीं जो दोनों हाथ के अंगूठों को मुट्ठी में भींचकर अभी ठीक ठीक सैलानी बनना सीख रही थीं। मुंह और आंख, दोनों फाड़कर वो हिलते हुए वहां की पहाड़ियों को ऐसे देख रही थीं, जैसे आंखों से ही सारी तस्वीरें उतार लेना चाह रही हों। कैमरा क्या होता है, काले होंठ वाली उन स्त्रियों के लिए कल्पना मात्र था, हालांकि सैलानी बनने की ज़िद में उन सबने चोटी पर पहुंचकर वहां 34 रुपये की एक फोटो खींचने वाले तस्वीरकार से तस्वीर जरूर उतरवाई। लौटते वक्त सभी के हाथ में मोती पिरोती पन्नी मढ़ी एक एक तस्वीर थी।
|
Vishva Shanti Stupa, Rajgir |
हालांकि मैं भी अभी सीख ही रहा हूं कि ठीक-ठीक सैलानी कैसे बना जाता है और अफ़सोस से कहता हूं कि मेरी अब तक की सभी यात्राएं मुझे पूरी तरह से सैलानी नहीं बना पाई हैं। हो सकता है कि पांच-सात हजार किलोमीटर चल लेने के बाद मुझमें बंगालियों की तरह इसका कोई हुनर डेवलप हो जाए, फिर भी उसमें अभी काफी वक्त है और तब तक मैं अधूरा सैलानी, भ्रमित यात्री ही बना रहूंगा, ये तय है। कहते हैं कि बंगाली सबसे अच्छे सैलानी होते हैं। हालांकि मेरी ही नामाराशि के एक भाईसाब मिथकतोड़ इतिहास बन चुके हैं, मैं उनका सवा ग्यारह भी पा जाऊं तो धन्य होऊं। गुलाबी होंठ, गुलाबी आंखें, गुलाबी बदन और जो कुछ भी श्रृंगार के झूठे मानक मुझे आज तक बताए गए, वो कहीं नहीं मिले, इसलिए इस बात का मैं दावा करता हूं कि अपने यहां श्रृंगार के झूठे मानक गढ़े गए हैं। श्रृंगार के असली मानक काली कुपोषित काया में दमकते मोती और पूरे चांद की चमक लिए वो आंखें ही हो सकती हैं जिनमें से बातें गिरती हैं। इस सौंदर्य की मैं तस्वीर उतारना चाहता था लेकिन पूरे रास्ते मुझे ऐसी कोई भी स्त्री मेरी कल्पनाजनित मुस्कान लिए नहीं मिली। मुझे तस्वीर न उतार पाने और स्त्रियों के न हंस पाने पर भी अफ़सोस है।
No comments:
Post a Comment