तख्तापलट के मंत्र..
दोस्तों का उल्टा-सीधा सुनकर कभी-कभी सचमुच दंग रह जाता हूं. जबकि अपनी सारी बकलोलियां चम्पा का फूल लगती हैं और उन्हें बकते हुए मैं कभी सन्न नहीं होता. नेट सर्फिंग करते हुए आज पत्रकार होने के ढेरों फ़ायदे हैं. अररिया के मुहाने पर बाइक में पचास रुपये का पेट्रोल डलवा कर तीन थानों की घुमाइये कीजिए, सात फोन लगाइये और बारह एसएमएस पाइये, आप दिन भर की अपनी होनहारी के लिए तैयार हैं. पहला काम कीजिए, नेट पर हिन्दू राष्ट्र का पलीता छोड़ दीजिए. कोई दोस्त घबराकर सवाल करे कि सुबह-सुबह ये क्या बोल रहे हो. तो डांटकर उसे चुप करा दीजिए कि हम तो शुभ-शुभ बोल रहे हैं, तुम कान में कैसा गंदा डाले बैठे हो कि अंतरात्मा की आवाज तुम तक नहीं पहुंचती. अररिया के हों तो पहुंचता भी बोलें, फर्क नहीं पड़ेगा. बस आवाज़ में डंके वाली चोट रहे और थानेदार वाली धौंस. चार मिनट मीं-सीं करेगा, उसके बाद दोस्त होगा तो क्या खाकर विरोध करेगा. या कुछ भी करेगा.
उसके बाद दूसरा पलीता छोड़िए. भारतीय फौज की दुनिया भर में इज्जत है. बोल दीजिए, बोलने में क्या जाता है. ईरोम शर्मिला सामने हिसाब लेने थोड़ी बैठी है. या कश्मीर के ढेला मारने वाले छटंकी बच्चे. रोज़ आंख फुड़वा रहे हैं मगर इनके होश नहीं आ रहा. चले आएं अररिया, एक दिन में इनका सारा होश दुरुस्त कर देंगे. थोड़ा हम करेंगे, थोड़ा हमारे दोस्त करेंगे. बचेगा उसको फरियाने के लिए कचहरी थाने पर शिवपाल जी हइये हैं.
आज तक जम्मू नहीं गया हूं मगर कश्मीर के बारे में अपने पास सब सॉल्यूशन है. सात लाख भारतीय सैनिकों ड्यूटी पर हैं, जिनकी दुनिया भर में इज्जत है, और जो लाठी बंदूक सब भांज रहे हैं, मगर जैसाकि राजनाथ जी बोले वादी में सिर्फ डेढ़ सौ टेररिस्ट्स हैं, मगर सात लाख से फरिया नहीं रहे, हमारी समझ में नहीं आ रहा गड़बड़ी कहां रह जा रही है, लोग भूखे और अस्पतालों में पड़े हाय-तौबा उठाये, मचाये पड़े हैं, वो सब तो ठीक है, इसी के काबिल हैं वो, मगर अशांति खत्म क्यों नहीं हो रही? पूरे कश्मीर को गुजरात लाकर जेलों में डाल दिया जाए तब चुपा नहीं जाएंगे ये पाजी? या लाकर अररिया में ही डाल दिया जाए, इन नकचढ़ों को संभालने के लिए एक अकेले शिवपाल जी काफी नहीं होंगे? या मैं खुदै जम्मू जाकर एक नज़र देख आऊं, मगर उसका बजट कौन हमारी ससुरारी से निकलेगा?
एक से एक बकलोली ठेलते रहते हैं दोस्त और सुनकर मैं दंग होता रहता हूं. उसी दंगे में फिर अगली रिपोर्ट फाइल करने लगता हूं. जंतर-मंतर में जाकर इसके और उसके पक्ष में फुदक लेना और बात है, मैं जहां खड़ा हूं और बिना पेट्रोल वाली मेरी बाइक जहां खड़ी है, उसमें बिना दंगाई हुए पत्रकार बने रहना हंसी-खेल नहीं. फिगर आफ स्पीच में कह सकते हैं अररिया में रहते हुए कश्मीर का जीवन जी लेना है. एंड इट इस नाट बकलोली.
लेखक-प्रमोद सिंह, ब्लॉग- अजदक
उसके बाद दूसरा पलीता छोड़िए. भारतीय फौज की दुनिया भर में इज्जत है. बोल दीजिए, बोलने में क्या जाता है. ईरोम शर्मिला सामने हिसाब लेने थोड़ी बैठी है. या कश्मीर के ढेला मारने वाले छटंकी बच्चे. रोज़ आंख फुड़वा रहे हैं मगर इनके होश नहीं आ रहा. चले आएं अररिया, एक दिन में इनका सारा होश दुरुस्त कर देंगे. थोड़ा हम करेंगे, थोड़ा हमारे दोस्त करेंगे. बचेगा उसको फरियाने के लिए कचहरी थाने पर शिवपाल जी हइये हैं.
आज तक जम्मू नहीं गया हूं मगर कश्मीर के बारे में अपने पास सब सॉल्यूशन है. सात लाख भारतीय सैनिकों ड्यूटी पर हैं, जिनकी दुनिया भर में इज्जत है, और जो लाठी बंदूक सब भांज रहे हैं, मगर जैसाकि राजनाथ जी बोले वादी में सिर्फ डेढ़ सौ टेररिस्ट्स हैं, मगर सात लाख से फरिया नहीं रहे, हमारी समझ में नहीं आ रहा गड़बड़ी कहां रह जा रही है, लोग भूखे और अस्पतालों में पड़े हाय-तौबा उठाये, मचाये पड़े हैं, वो सब तो ठीक है, इसी के काबिल हैं वो, मगर अशांति खत्म क्यों नहीं हो रही? पूरे कश्मीर को गुजरात लाकर जेलों में डाल दिया जाए तब चुपा नहीं जाएंगे ये पाजी? या लाकर अररिया में ही डाल दिया जाए, इन नकचढ़ों को संभालने के लिए एक अकेले शिवपाल जी काफी नहीं होंगे? या मैं खुदै जम्मू जाकर एक नज़र देख आऊं, मगर उसका बजट कौन हमारी ससुरारी से निकलेगा?
एक से एक बकलोली ठेलते रहते हैं दोस्त और सुनकर मैं दंग होता रहता हूं. उसी दंगे में फिर अगली रिपोर्ट फाइल करने लगता हूं. जंतर-मंतर में जाकर इसके और उसके पक्ष में फुदक लेना और बात है, मैं जहां खड़ा हूं और बिना पेट्रोल वाली मेरी बाइक जहां खड़ी है, उसमें बिना दंगाई हुए पत्रकार बने रहना हंसी-खेल नहीं. फिगर आफ स्पीच में कह सकते हैं अररिया में रहते हुए कश्मीर का जीवन जी लेना है. एंड इट इस नाट बकलोली.
लेखक-प्रमोद सिंह, ब्लॉग- अजदक
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