गुजरात फाइल्स: अफसरों की जुबानी-मोदी अमित शाह की काली कहानी
कुछ सालों पहले तक उत्तर प्रदेश पूरे देश का नेतृत्व किया करता था। लेकिन लगता है कि देश को सात-सात प्रधानमंत्री देने वाले इस सूबे की राजनीति अब बंजर हो गई है। इसकी जमीन अब नेता नहीं पिछलग्गू पैदा कर रही है। ऐसे में सूबे को नेता आयातित करने पड़ रहे हैं। इस कड़ी में प्रधानमंत्री मोदी से लेकर उनके शागिर्द अमित शाह और स्मृति ईरानी तक की लंबी फेहरिस्त है। स्तरीय नेतृत्व हो तो एकबारगी कोई बात नहीं है। लेकिन चीज आयातित हो और वह भी खोटा। तो सोचना जरूर पड़ता है। यहां तो तड़ीपार से लेकर दंगों के सरदार और फर्जी डिग्रीधारी सूबे को रौंद रहे हैं। इस नये नेतृत्व की हकीकत क्या है। इसकी कुछ बानगी पत्रकार राना अयूब की गुजरात दंगों और दूसरे गैर कानूनी कामों पर खोजी पुस्तक ‘गुजरात फाइल्स’ में मौजूद है। मोदी जी और अमित शाह से जुड़े इसके कुछ अशों को उसी रूप में देने की हम कोशिश कर रहे हैं। जिसमें गुजरात के आला अफसरों के इनके बारे में विचार हैं। ये आधा दर्जन से ज्यादा पोस्ट तक खिंच सकती है। इसको पढ़ने के बाद आपके लिए इस ‘आयातित नेतृत्व’ के बारे में किसी नतीजे पर पहुंचना आसान हो जाएगा।
जी एल सिंघल, पूर्व एटीएस चीफ, गुजरात
प्रश्नः ऐसी क्या चीज है जिसके चलते गुजरात पुलिस हमेशा चर्चे में रहती है? खासकर विवादों को लेकर?
उत्तरः यह एक हास्यास्पद स्थिति है। अगर कोई शख्स अपनी शिकायत लेकर हमारे पास आता है और हम उसे संतुष्ट कर देते हैं तो उससे सरकार नाराज हो जाती है। और अगर हम सरकार को खुश करते हैं तो शिकायतकर्ता नाराज हो जाता है। ऐसे में हम क्या करें? पुलिस के सिर पर हमेशा तलवार लटकी रहती है।
एनकाउंटर में शामिल ज्यादातर अफसर दलित और पिछड़ी जाति से थे। राजनीतिक व्यवस्था ने इनमें से ज्यादातर का पहले इस्तेमाल किया और फिर फेंक दिया।
प्रश्नः मेरा मतलब है कि आप सभी वंजारा, पांडियन, अमीन, परमार और ज्यादातर दूसरे अफसर निचली जाति से हैं। सभी ने सरकार के इशारे पर काम किया। जिसमें आप भी शामिल हैं। ऐसे में ये इस्तेमाल कर फेंक देने जैसा नहीं है?
उत्तरः ओह हां, हम सभी। सरकार ऐसा नहीं सोचती है। वो सोचते हैं कि हम उनके आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। और बने ही हैं उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए। प्रत्येक सरकारी नौकर जो भी काम करता है वो सरकार के लिए करता है। और उसके बाद समाज और सरकार दोनों उसे भूल जाते हैं। वंजारा ने क्या नहीं किया। लेकिन अब कोई उसके साथ खड़ा नहीं है।
प्रश्नः लेकिन ये अमित शाह के साथ क्या चक्कर है। मैंने आपके अफसरों के बारे में भी सुना.........मेरा मतलब है कि वहां अफसर-राजनीतिक गठजोड़ जैसी कुछ बात है। खास कर एनकाउंटरों के मामले में। मुझे ऐसा बहुत सारे दूसरे मंत्रियों से मिलने के बाद महसूस हुआ।
उत्तरः देखिये, यहां तक कि मुख्यमंत्री भी। सभी मंत्रालय और जितने मंत्री हैं। सब रबर की मुहरें हैं। सभी निर्णय मुख्यमंत्री द्वारा लिए जाते हैं। जो भी फैसले मंत्री लेते हैं उसके लिए उन्हें मुख्यमंत्री से इजाजत लेनी पड़ती है। सीएम कभी सीधे सीन में नहीं आते हैं। वो नौकरशाहों को आदेश देते हैं।
प्रश्नः उस हिसाब से तो आपके मामले में अगर अमित शाह गिरफ्तार हुए तो सीएम को भी होना चाहिए था?
उत्तरः हां, ये मुख्यमंत्री मोदी जैसा कि अभी आप बोल रही थीं अवसरवादी है। अपना काम निकाल लिया।
प्रश्नः अपना गंदा काम
उत्तर- हां
प्रश्नः लेकिन सर आप लोगों ने जो किया वो सब सरकार और राजनीतिक ताकतों के इशारे पर किया। फिर वो क्यों जिम्मेदार नहीं हैं?
उत्तरः व्यवस्था के साथ रहना है तो लोगों को समझौता करना पड़ता है।
साभारः गुजरात फाइल्स। अनुवाद- महेंद्र मिश्र
जी एल सिंघल, पूर्व एटीएस चीफ, गुजरात
प्रश्नः ऐसी क्या चीज है जिसके चलते गुजरात पुलिस हमेशा चर्चे में रहती है? खासकर विवादों को लेकर?
उत्तरः यह एक हास्यास्पद स्थिति है। अगर कोई शख्स अपनी शिकायत लेकर हमारे पास आता है और हम उसे संतुष्ट कर देते हैं तो उससे सरकार नाराज हो जाती है। और अगर हम सरकार को खुश करते हैं तो शिकायतकर्ता नाराज हो जाता है। ऐसे में हम क्या करें? पुलिस के सिर पर हमेशा तलवार लटकी रहती है।
एनकाउंटर में शामिल ज्यादातर अफसर दलित और पिछड़ी जाति से थे। राजनीतिक व्यवस्था ने इनमें से ज्यादातर का पहले इस्तेमाल किया और फिर फेंक दिया।
प्रश्नः मेरा मतलब है कि आप सभी वंजारा, पांडियन, अमीन, परमार और ज्यादातर दूसरे अफसर निचली जाति से हैं। सभी ने सरकार के इशारे पर काम किया। जिसमें आप भी शामिल हैं। ऐसे में ये इस्तेमाल कर फेंक देने जैसा नहीं है?
उत्तरः ओह हां, हम सभी। सरकार ऐसा नहीं सोचती है। वो सोचते हैं कि हम उनके आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। और बने ही हैं उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए। प्रत्येक सरकारी नौकर जो भी काम करता है वो सरकार के लिए करता है। और उसके बाद समाज और सरकार दोनों उसे भूल जाते हैं। वंजारा ने क्या नहीं किया। लेकिन अब कोई उसके साथ खड़ा नहीं है।
प्रश्नः लेकिन ये अमित शाह के साथ क्या चक्कर है। मैंने आपके अफसरों के बारे में भी सुना.........मेरा मतलब है कि वहां अफसर-राजनीतिक गठजोड़ जैसी कुछ बात है। खास कर एनकाउंटरों के मामले में। मुझे ऐसा बहुत सारे दूसरे मंत्रियों से मिलने के बाद महसूस हुआ।
उत्तरः देखिये, यहां तक कि मुख्यमंत्री भी। सभी मंत्रालय और जितने मंत्री हैं। सब रबर की मुहरें हैं। सभी निर्णय मुख्यमंत्री द्वारा लिए जाते हैं। जो भी फैसले मंत्री लेते हैं उसके लिए उन्हें मुख्यमंत्री से इजाजत लेनी पड़ती है। सीएम कभी सीधे सीन में नहीं आते हैं। वो नौकरशाहों को आदेश देते हैं।
प्रश्नः उस हिसाब से तो आपके मामले में अगर अमित शाह गिरफ्तार हुए तो सीएम को भी होना चाहिए था?
उत्तरः हां, ये मुख्यमंत्री मोदी जैसा कि अभी आप बोल रही थीं अवसरवादी है। अपना काम निकाल लिया।
प्रश्नः अपना गंदा काम
उत्तर- हां
प्रश्नः लेकिन सर आप लोगों ने जो किया वो सब सरकार और राजनीतिक ताकतों के इशारे पर किया। फिर वो क्यों जिम्मेदार नहीं हैं?
उत्तरः व्यवस्था के साथ रहना है तो लोगों को समझौता करना पड़ता है।
साभारः गुजरात फाइल्स। अनुवाद- महेंद्र मिश्र
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