पीएसयू में अपनों को टॉप पोस्ट दिलाने का शॉर्ट कट!
पब्लिक सेक्टर की शेड्यूल ‘ए’ महारत्ना कंपनी भेल (भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड) में डायरेक्टर (एचआर) के पद पर नियुक्ति के लिए 22 जुलाई 2014 को विज्ञापन दिया गया था। पब्लिक एन्टरप्राइजेज सिलेक्शन बोर्ड (पीएसईबी) की ओर से दिए गए इस विज्ञापन में पद का प्रोफाइल बताते हुए कहा गया था कि इस पद पर आसीन व्यक्ति बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स का सदस्य होगा और सीधे सीएमडी (चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर) को रिपोर्ट करेगा। वह कंपनी में ह्यूमन रिसोर्सेज मैनेजमेंट का प्रभारी होगा और कंपनी की एचआर पॉलिसी बनाने तथा लागू करने के लिए पूरी तरह जिम्मेदार होगा। इस पद का वेतन 75000 से 100000 रुपए मासिक बताया गया। और इस पद के लिए आवेदक की योग्यता क्या रखी गई थी? ‘अच्छे अकादमिक रेकॉर्ड’ वाला ‘किसी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी’ से स्नातक व्यक्ति इसके लिए आवेदन कर सकता था। न्यूनतम उम्र 45 साल थी, लेकिन एचआर में काम का न्यूनतम अनुभव मात्र दो साल का मांगा गया था। बाकी पीजी, डिप्लोमा, एमबीए वगैरह को ‘ऐडेड अडवांटेज’ बताया गया था।
ऐसे ही शेड्यूल ‘ए’ की नवरत्ना कंपनी ईआईएल (इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड) में डायरेक्टर (एचआर) पद के लिए 22 जून 2015 को विज्ञापन दिया गया था। इसमें भी पात्रता अच्छे अकादमिक रेकॉर्ड के साथ ग्रेजुएशन और दो साल का एचआर/पर्सनेल अनुभव। बाकी चीजें ऐडेड अडवांटेज। एमएमटीसी (मेटल्स एंड मिनरल्स ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) की ओर से तो इसी साल 1 अप्रैल को विज्ञापन दिया गया था, इसी पद के लिए और यही योग्यताएं मांगी गई थीं।
बात हैरान करने वाली इसलिए है क्योंकि देश की शीर्षस्थ पब्लिक सेक्टर कंपनियों को आज न केवल देश के अंदर खुद को लगातार साबित करते रहना होता है बल्कि देश के बाहर वर्ल्ड मार्केट में भी कंपीट करना पड़ता है। आज की तारीख में किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी में टॉप लेवल पर नियुक्ति में ऐसी न्यूनतम योग्यता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। छोटी-मोटी कंपनियों में भी एचआर मैनेजर तक की नियुक्ति में आवेदकों से एमबीए की अपेक्षा की जाती है। ऐसे में स्वाभाविक है कि देश की प्रमुख पब्लिक सेक्टर कंपनियों में इस तरह के मानदंड सवाल पैदा करें।
एनआईपीएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोमेश दासगुप्ता के मुताबिक इन पदों पर नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता के रूप में पर्सनेल मैनेजमेंट, एचआर मैनेजमेंट या सोशल वर्क में मास्टर डिग्री और 15 साल का कोर एचआर एक्सपीरिएंस अनिवार्य होना चाहिए। एनआईपीएम के ही पूर्व अध्यक्ष आर पी सिंह कहते हैं कि ग्रेजुएशन को पात्रता बनाना इसलिए भी बेतुका है क्योंकि आज कोर एचआर में लंबा अनुभव रखने वाले मास्टर डिग्रीधारी ऑफिसरों की कोई कमी नहीं है।
फिर आखिर क्या कारण है कि नियुक्ति संबंधी मानदंडों में आवश्यक बदलाव नहीं किए जा रहे? भले ये एक्सपर्ट्स खुल कर न कहें लेकिन इसकी वजह इसके अलावा कुछ और नहीं हो सकती कि ऊपर बैठे लोग अपने ‘करीबियों’ को इन पदों पर बिठाने की गुंजाइश कम नहीं होने देना चाहते। इसका सबूत इस रूप में देखा जा सकता है कि एनटीपीसी, गेल, ईआईएल और भेल जैसी बड़ी कंपनियों में डायरेक्टर (एचआर) पद पर बैठे लोगों में शायद ही कोई ऐसा हो जिसे कोर-एचआर का आदमी कहा जा सके।
लेखक: प्रणव प्रियदर्शी नवभारत टाइम्स दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार हैं।
ऐसे ही शेड्यूल ‘ए’ की नवरत्ना कंपनी ईआईएल (इंजीनियर्स इंडिया लिमिटेड) में डायरेक्टर (एचआर) पद के लिए 22 जून 2015 को विज्ञापन दिया गया था। इसमें भी पात्रता अच्छे अकादमिक रेकॉर्ड के साथ ग्रेजुएशन और दो साल का एचआर/पर्सनेल अनुभव। बाकी चीजें ऐडेड अडवांटेज। एमएमटीसी (मेटल्स एंड मिनरल्स ट्रेडिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया) की ओर से तो इसी साल 1 अप्रैल को विज्ञापन दिया गया था, इसी पद के लिए और यही योग्यताएं मांगी गई थीं।
बात हैरान करने वाली इसलिए है क्योंकि देश की शीर्षस्थ पब्लिक सेक्टर कंपनियों को आज न केवल देश के अंदर खुद को लगातार साबित करते रहना होता है बल्कि देश के बाहर वर्ल्ड मार्केट में भी कंपीट करना पड़ता है। आज की तारीख में किसी भी बहुराष्ट्रीय कंपनी में टॉप लेवल पर नियुक्ति में ऐसी न्यूनतम योग्यता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। छोटी-मोटी कंपनियों में भी एचआर मैनेजर तक की नियुक्ति में आवेदकों से एमबीए की अपेक्षा की जाती है। ऐसे में स्वाभाविक है कि देश की प्रमुख पब्लिक सेक्टर कंपनियों में इस तरह के मानदंड सवाल पैदा करें।
छोटी-मोटी कंपनियों में भी एचआर मैनेजर तक की नियुक्ति में आवेदकों से एमबीए होने की अपेक्षा की जाती है, मगर पब्लिक सेक्टर की बड़ी कंपनियों में डायरेक्टर बनने के लिए यह जरूरी नहींदिलचस्प बात यह है कि यह स्थिति अनजाने में नहीं बनी हुई है। भले ये बहसें सार्वजनिक मंचों पर तीखे रूप में नजर न आई हों, लेकिन संबंधित थिंक टैंकों की ओर से सरकार के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों का ध्यान लगातार इस बात की ओर खींचा जाता रहा है कि ऐसा करना प्रफेशनलिज्म के सभी सरोकारों को ताक पर रखने जैसा है। उदाहरण के तौर पर इसी क्षेत्र में काम करने वाले एक नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइजेशन एनआईपीएम (नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पर्सनेल मैनेजमेंट) ने 24 दिसंबर 2013 को सचिव, सार्वजनिक उद्यम विभाग (भारत सरकार) को भेजे एक पत्र में बड़े विस्तार से बताया है कि कैसे एचआर का काम विशिष्ट प्रकृति का है जो खास तरह की विशेषज्ञता की मांग करता है। इसी संगठन के और संबंधित अन्य संगठनों के भी ऐसे अनेकानेक पत्र हैं, जिनकी प्रतियां सभी प्रमुख लोगों तक पहुंचाई जाती रही हैं।
एनआईपीएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष सोमेश दासगुप्ता के मुताबिक इन पदों पर नियुक्ति के लिए न्यूनतम योग्यता के रूप में पर्सनेल मैनेजमेंट, एचआर मैनेजमेंट या सोशल वर्क में मास्टर डिग्री और 15 साल का कोर एचआर एक्सपीरिएंस अनिवार्य होना चाहिए। एनआईपीएम के ही पूर्व अध्यक्ष आर पी सिंह कहते हैं कि ग्रेजुएशन को पात्रता बनाना इसलिए भी बेतुका है क्योंकि आज कोर एचआर में लंबा अनुभव रखने वाले मास्टर डिग्रीधारी ऑफिसरों की कोई कमी नहीं है।
फिर आखिर क्या कारण है कि नियुक्ति संबंधी मानदंडों में आवश्यक बदलाव नहीं किए जा रहे? भले ये एक्सपर्ट्स खुल कर न कहें लेकिन इसकी वजह इसके अलावा कुछ और नहीं हो सकती कि ऊपर बैठे लोग अपने ‘करीबियों’ को इन पदों पर बिठाने की गुंजाइश कम नहीं होने देना चाहते। इसका सबूत इस रूप में देखा जा सकता है कि एनटीपीसी, गेल, ईआईएल और भेल जैसी बड़ी कंपनियों में डायरेक्टर (एचआर) पद पर बैठे लोगों में शायद ही कोई ऐसा हो जिसे कोर-एचआर का आदमी कहा जा सके।
लेखक: प्रणव प्रियदर्शी नवभारत टाइम्स दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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