इंतजारी हूं, जारी नहीं..
रायता मैं क्या बिखेरूंगा, मैं खुद में ही इतना बिखरा हुआ रायता हूं कि समेटता हूं और फिर फिर फैल जाता हूं। घबरा जाता हूं लोगों को देखकर और इधर उधर छुपने की कोशिश मेरे फैलने को और बिखेरती जाती है। सोचता हूं कि इतना फैला दूं इस दुनिया में कि अगले दो ढाई सौ सालों तक लोग बस मेरी फैली हुई फिसलन को समेटने में सुसहिष्णुता से जोर लगा दें, फिर भी मेरा फैला हुआ मैं समेट न पाएं। आप कहेंगे कि मैं नकल कर रहा हूं, लेकिन असल में मैं क्या कर रहा हूं, ठीक ठीक मुझे भी नहीं पता। अच्छा होगा कि आप ही कोई बयान जारी कर दें सर ताकि मैं कहीं से तो जारी हो सकूं। अभी जहां हूं, वहां तो सिर्फ फैल ही रहा हूं, जारी नहीं हो पा रहा।
रोज घर से दस गांठ बांधकर चलता हूं और कहीं पहुंचने से पहले ही रास्ते में उन्हें गुम कर बैठता हूं। कौन कौन सी गांठ कहां कहां से फिसल रही है, कौन सी कहां निकल रही है, ईमानदारी से बता रहा हूं, मुझे नहीं पता। पता चल भी नहीं पाता क्योंकि फैलना महसूसना इन्कार करना है और मैं वाकई फैल रहा हूं। रायता हूं या नहीं, ये भी मुझे ठीक-ठीक नहीं पता, जो पता है वो बस फैलना है। आप लोग घबराते रहिए, अपना लोटा थारी छुपाते रहिए लेकिन यकीन भी किए रहिए मुझपर कि मैं फैल रहा हूं, झूठ बोल रहा हूं।
अब तो जो कुछ भी याद है, वो मेरी फैली हुई फिसलन है जहां तक कुछ पहुंचता भी है तो फिसलकर फिर दूर चला जाता है। बट यू डोंट वरी, यू कैरी ऑन विद स्टीफेन किंग। ही इज रियली द किंग ऑफ हॉट एंड सोर रायता यू नो। नो यू डोंट नो। इवेन आइ डोंट नो माईसेल्फ एंड आइ डोंट हैव एनी काइंड ऑफ शेल्फ। और ये सारी अंग्रेजी भी मुझे समेट नहीं पाती है, ये जानते हुए भी मैं इसे बोलते हुए खुद पर एक डॉट लगाता हूं।
गुनगुनाता हूं वहां कौन है तेरा और खुद को समझाता हूं मुसाफिर जाएगा कहां। तेज़ाब वाली माधुरी दीक्षित को मैं सपने में भी नहीं देखता और जिस-जिस ने मेरे पैसे मारे हैं, अपनी दाहिनी जेब में उनके नाम की लिस्ट को हर दस मिनट बाद उंगली से टहोक लेता हूं। स्टीव जॉब्स को आज ही मैनें अपने ठेंगे पर रखा है और मार्क जकरबर्ग को ठेठ फ़ैज़ाबादी में तौल के बिखेरा है। मिट्टी का नमक मैनें नहीं चखा है और न ही मैनें कोई मरे हुए कवियों का संगठन बनाया है। सुख की तलाश में मैं लौटे हुए घायल को भी देख लेता हूं और एनएसडी में खुश हो होकर जीशान की फोटो के सामने उसकी प्रशंसा भी कर देता हूं।
फिर भी, मैं फैल रहा हूं। इंतजारी हूं, जारी नहीं।
रोज घर से दस गांठ बांधकर चलता हूं और कहीं पहुंचने से पहले ही रास्ते में उन्हें गुम कर बैठता हूं। कौन कौन सी गांठ कहां कहां से फिसल रही है, कौन सी कहां निकल रही है, ईमानदारी से बता रहा हूं, मुझे नहीं पता। पता चल भी नहीं पाता क्योंकि फैलना महसूसना इन्कार करना है और मैं वाकई फैल रहा हूं। रायता हूं या नहीं, ये भी मुझे ठीक-ठीक नहीं पता, जो पता है वो बस फैलना है। आप लोग घबराते रहिए, अपना लोटा थारी छुपाते रहिए लेकिन यकीन भी किए रहिए मुझपर कि मैं फैल रहा हूं, झूठ बोल रहा हूं।
अब तो जो कुछ भी याद है, वो मेरी फैली हुई फिसलन है जहां तक कुछ पहुंचता भी है तो फिसलकर फिर दूर चला जाता है। बट यू डोंट वरी, यू कैरी ऑन विद स्टीफेन किंग। ही इज रियली द किंग ऑफ हॉट एंड सोर रायता यू नो। नो यू डोंट नो। इवेन आइ डोंट नो माईसेल्फ एंड आइ डोंट हैव एनी काइंड ऑफ शेल्फ। और ये सारी अंग्रेजी भी मुझे समेट नहीं पाती है, ये जानते हुए भी मैं इसे बोलते हुए खुद पर एक डॉट लगाता हूं।
गुनगुनाता हूं वहां कौन है तेरा और खुद को समझाता हूं मुसाफिर जाएगा कहां। तेज़ाब वाली माधुरी दीक्षित को मैं सपने में भी नहीं देखता और जिस-जिस ने मेरे पैसे मारे हैं, अपनी दाहिनी जेब में उनके नाम की लिस्ट को हर दस मिनट बाद उंगली से टहोक लेता हूं। स्टीव जॉब्स को आज ही मैनें अपने ठेंगे पर रखा है और मार्क जकरबर्ग को ठेठ फ़ैज़ाबादी में तौल के बिखेरा है। मिट्टी का नमक मैनें नहीं चखा है और न ही मैनें कोई मरे हुए कवियों का संगठन बनाया है। सुख की तलाश में मैं लौटे हुए घायल को भी देख लेता हूं और एनएसडी में खुश हो होकर जीशान की फोटो के सामने उसकी प्रशंसा भी कर देता हूं।
फिर भी, मैं फैल रहा हूं। इंतजारी हूं, जारी नहीं।
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