संकट मन में लिए भेड़ चरते देख रहे हैं
टेलमार्क वाया नॉर्थ कैरोलिना. देखिए, कांसेप्ट आधा चुराया हुआ है, इसलिए शब्द भी चुराए हुए ही होंगे। इसलिए पहले से ही बता दे रहे हैं कि इस चोरी चकारी में हमारा बड़ा यकीन है। अब ये दूसरी बात है कि चटनी सोका की तरह एक नया म्यूजिक जन्म ले ले, तो सबकुछ ओरिजनल ही बन जाएगा। बहरहाल, डिस्क्लेमर अभी से लगा दे रहे हैं कि जबसे मोदी जी खुद को खुदै प्रधानमंत्री घोषित कर दिए हैं, ऊ साउथ इंडिया मा बैइठे बाबाजी सिर्फ जाने की बात कहे और हम तो बाकायदा आ भी गए। यहां पर, नॉर्वे में हम फिलहाल रह रहे हैं और कुछ भेड़ खरीद लिए हैं। चिंता न करें, हम किसी पाउलो कोएलो से प्रेरित होकर न भेड़ खरीदे हैं और न ही हम उन भेड़ों को रेगिस्तान के किसी व्यापारी के हवाले करने जा रहे हैं। हालांकि सपने अभी भी आते हैं और सुबह उठते ही धुंधले हो जाते हैं।
हम पहले तो कैरोलिना ही आए। वहां हमें फहीम मिले। फहीम मियां अफगानिस्तान के हैं और वहां पर उनका ऑडियो कैसेट का बिन्निस था। तालिबानियों ने संगीत पर पाबंदी लगा दी और पहुंच गए फहीम की दुकान पर। वहां पर फहीम अपने चचा के लड़के मजकूर के साथ बैठके रात का बना कलेवा तोड़ रहे थे। तालिबानियों ने कलेवा तो करने न दिया, उल्टे दुकान में आग लगाकर दोनों को बांधकर अपने साथ ले गए। कई महीनों तक अफगानिस्तान की नामालूम से पहाड़ी में इन दोनों से तब तक पत्थर तुड़वाए गए, जब तक कि दोनों ने आइंदा जिंदगी में संगीत को कान से न लगाने की कसम खा ली। धीमे धीमे किसी तरह से दोनों ने विश्वास जीता और एक दिन मौका मिला तो उड़नछू होने की कोशिश की। फहीम तो किसी तरह से निकल आए, लेकिन मजकूर मियां अभी भी वहीं कंधार की किसी पहाड़ी पर दस्तखत कर रहे हैं।
पहाड़ियों से निकलकर फहीम मियां किसी तरह से काबुल पहुंचे। वहां उन्हें असद मिला जो लोगों से पैसे लेकर उन्हें नॉर्वे भेज देता था। तालिबानियों के यहां से भागते वक्त फहीम ने वहां जमा डॉलरों पर एक लंबा हाथ भी मारा था। असद ने 20 हजार डॉलर लिए और उन्हें सड़क मार्ग से पहले तो अफगानिस्तान से निकाला। उसके
बाद किसी तरह से उनका फर्जी पासपोर्ट बनवाया और एक वीजा उनके हाथ में थमा दिया। वहां से फहीम मियां समुद्र के रास्ते इंडोनेशिया होते हुए नॉर्वे तक पहुंचे। न न, किसी जहाज से नहीं बल्कि मछुआरों वाली डोंगी में बैठकर। सबूत के तौर पर फहीम मियां हमसे ये वाली फोटो लगाने को बोले थे। इसमें से दाहिने से तीसरे वाले हैं अपने फहीम भाई।
यहां आने पर फहीम भाई ने 32 भेड़ें खरीदीं और उनके लिए एक चारागाह और रखने के लिए बाड़ा। लकड़ियों का एक घर भी बनवाया जिसमें पांच खिड़कियां हैं। पांच खिड़कियों की दास्तान अलग है तो वो फिर कभी। फिर कभी मने, हम और फहीम जिस किसी दिन कबाब वबाब खाने बैठे तो उसका भी जिक्र हो जाएगा। ये सारा ताम झाम फहीम ने टेलमार्क में फैलाया। कैरोलिना तो वो अक्सर ऊन व्यापारियों से सौदेबाजी करने के लिए जाते रहते हैं। वहीं उन्होंने हमें बताया कि कैरोलिना थोड़ा महंगा है, अगर टेलमार्क चलकर रहा जाए तो वहां धंधे पानी का भी कुछ इंतजाम हो सकता है और रहने का भी मामला सस्ता ही है।
और हम टेलमार्क पहुंच गए।
टेलमार्क की पहाड़ियां काफी घनी हैं। बुरांश और देवदार से भरी हुई। यहां हमारी आसपास के लोगों से दोस्ती भी हो गई है। हमने भेड़ें भी खरीद ली हैं और उन्हें रोज सुबह फहीम की ही भेड़ों के साथ चरने के लिए भेज देते हैं। दिन में कई बार खिड़की पर बैठते हैं और अक्सर तब बैठते हैं जब फेसबुक पर आकर अपना मन खिन्न कर लेते हैं। फेसबुक की दुनिया नॉर्वे की दुनिया से अलग है। यहां फेसबुक की तरह खिल्ल खिल्ल क्रांति को खिलौना बनाने वाले लोग न के बराबर हैं। अपना सामंती दोष भाषा के माध्यम से निकालकर ज्योतिबा को तू तुम कहने वाले लोग भी नहीं हैं। यहां तो बड़े तमीजदार और सलीकेदार लोग हैं। फहीम की बीवी सालेहा कभी बुर्का नहीं करती और अगर उसके सामने किसी ने अपशब्द कहा तो वो अपशब्द नहीं कहती, पर 911 पर डायल करके बता देती है कि फलां ने अपशब्द कहा। इसलिए उसे अपशब्द कहने की कोई हिम्मत नहीं करता। सोचता हूं कि अगर ज्योतिबा होते तो अपशब्द कहने वालों को क्या कहते?
हम पहले तो कैरोलिना ही आए। वहां हमें फहीम मिले। फहीम मियां अफगानिस्तान के हैं और वहां पर उनका ऑडियो कैसेट का बिन्निस था। तालिबानियों ने संगीत पर पाबंदी लगा दी और पहुंच गए फहीम की दुकान पर। वहां पर फहीम अपने चचा के लड़के मजकूर के साथ बैठके रात का बना कलेवा तोड़ रहे थे। तालिबानियों ने कलेवा तो करने न दिया, उल्टे दुकान में आग लगाकर दोनों को बांधकर अपने साथ ले गए। कई महीनों तक अफगानिस्तान की नामालूम से पहाड़ी में इन दोनों से तब तक पत्थर तुड़वाए गए, जब तक कि दोनों ने आइंदा जिंदगी में संगीत को कान से न लगाने की कसम खा ली। धीमे धीमे किसी तरह से दोनों ने विश्वास जीता और एक दिन मौका मिला तो उड़नछू होने की कोशिश की। फहीम तो किसी तरह से निकल आए, लेकिन मजकूर मियां अभी भी वहीं कंधार की किसी पहाड़ी पर दस्तखत कर रहे हैं।
पहाड़ियों से निकलकर फहीम मियां किसी तरह से काबुल पहुंचे। वहां उन्हें असद मिला जो लोगों से पैसे लेकर उन्हें नॉर्वे भेज देता था। तालिबानियों के यहां से भागते वक्त फहीम ने वहां जमा डॉलरों पर एक लंबा हाथ भी मारा था। असद ने 20 हजार डॉलर लिए और उन्हें सड़क मार्ग से पहले तो अफगानिस्तान से निकाला। उसके
बाद किसी तरह से उनका फर्जी पासपोर्ट बनवाया और एक वीजा उनके हाथ में थमा दिया। वहां से फहीम मियां समुद्र के रास्ते इंडोनेशिया होते हुए नॉर्वे तक पहुंचे। न न, किसी जहाज से नहीं बल्कि मछुआरों वाली डोंगी में बैठकर। सबूत के तौर पर फहीम मियां हमसे ये वाली फोटो लगाने को बोले थे। इसमें से दाहिने से तीसरे वाले हैं अपने फहीम भाई।
यहां आने पर फहीम भाई ने 32 भेड़ें खरीदीं और उनके लिए एक चारागाह और रखने के लिए बाड़ा। लकड़ियों का एक घर भी बनवाया जिसमें पांच खिड़कियां हैं। पांच खिड़कियों की दास्तान अलग है तो वो फिर कभी। फिर कभी मने, हम और फहीम जिस किसी दिन कबाब वबाब खाने बैठे तो उसका भी जिक्र हो जाएगा। ये सारा ताम झाम फहीम ने टेलमार्क में फैलाया। कैरोलिना तो वो अक्सर ऊन व्यापारियों से सौदेबाजी करने के लिए जाते रहते हैं। वहीं उन्होंने हमें बताया कि कैरोलिना थोड़ा महंगा है, अगर टेलमार्क चलकर रहा जाए तो वहां धंधे पानी का भी कुछ इंतजाम हो सकता है और रहने का भी मामला सस्ता ही है।
और हम टेलमार्क पहुंच गए।
टेलमार्क की पहाड़ियां काफी घनी हैं। बुरांश और देवदार से भरी हुई। यहां हमारी आसपास के लोगों से दोस्ती भी हो गई है। हमने भेड़ें भी खरीद ली हैं और उन्हें रोज सुबह फहीम की ही भेड़ों के साथ चरने के लिए भेज देते हैं। दिन में कई बार खिड़की पर बैठते हैं और अक्सर तब बैठते हैं जब फेसबुक पर आकर अपना मन खिन्न कर लेते हैं। फेसबुक की दुनिया नॉर्वे की दुनिया से अलग है। यहां फेसबुक की तरह खिल्ल खिल्ल क्रांति को खिलौना बनाने वाले लोग न के बराबर हैं। अपना सामंती दोष भाषा के माध्यम से निकालकर ज्योतिबा को तू तुम कहने वाले लोग भी नहीं हैं। यहां तो बड़े तमीजदार और सलीकेदार लोग हैं। फहीम की बीवी सालेहा कभी बुर्का नहीं करती और अगर उसके सामने किसी ने अपशब्द कहा तो वो अपशब्द नहीं कहती, पर 911 पर डायल करके बता देती है कि फलां ने अपशब्द कहा। इसलिए उसे अपशब्द कहने की कोई हिम्मत नहीं करता। सोचता हूं कि अगर ज्योतिबा होते तो अपशब्द कहने वालों को क्या कहते?
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