Thursday, July 12, 2007

मैं विचारों से समझौता नही कर सकती !!

साम्प्र्दयिकों के साथ मंच कैसे शेयर करूं : महाश्वेता देवी
कृपाशंकर चौबे
विख्यात लेखिका महाश्वेता देवी ने कहा कि विश्व हिंदी सम्मेलन मे उनके नही जाने के ठोस कारण हैं । उन्होने कहा " केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय से मेरे पास फोन आया था जिसमे बताया गया था कि न्यूयार्क मे १३ जुलाई से हो रहे तीन दिनी आठवें विश्व हिंदी सम्मेलन मे कई अन्य दूसरे लेखकों के साथ मुझे सम्मानित करने का फैसला किया गया है। लेकिन जब मैंने पाया कि सम्मानित होने वालों मे कतिपय साम्प्रदायिक दृष्टिकोण वाले लेखक भी हैं तो तत्क्षण मैंने मना कर दिया।" महाश्वेता ने कहा," उनके साथ मैं सम्मान कैसे ग्रहण कर सकती हूँ जिनके साथ मेरा वैचारिक विरोध है। वैसे भी कोई सम्मान मुझे स्पर्श नही करता ।"
बुजुर्ग लेखिका ने कहा,"चुंकि मंत्रालय से पहली ही बातचीत मे मैंने न्यूयार्क जाने से मना कर दिया था , इसलिये आमंत्रण पत्र भी नही आया। अब मुझे पता चला है कि समालोचक नामवर सिंह , कवि केदारनाथ सिंह , अशोक वाजपेयी , मंगलेश डबराल और कथाकार राजेंद्र यादव ने भी विश्व हिंदी सम्मेलन मे भाग नही लेने का फैसला किया है। इससे स्पष्ट होता है कि मेरा फैसला सही था।" महाश्वेता देवी ने कहा,"विश्व हिंदी सम्मेलन मे मेरे नही जाने का कोई दूसरा अर्थ नही निकला जाना चाहिऐ।"
उन्होने कहा,"हिंदी के प्रति मेरे मन मे अगाध श्रद्धा है। मैं मानती हूँ कि हिंदी मे छप कर ही मैं राष्ट्रिय लेखिका हुई। लेकिन इसीलिये मैं अपने विचारों से कोई समझौता नही कर सकती। धर्मनिरपेक्षता मेरे लिए बड़ा मूल्य है और ग़ैर धर्मनिरपेक्ष लोगों के साथ मैं मच नही शेयर कर सकती। वैसे भी साम्राज्यवाद के प्रतीक अमेरिका मे इस उम्र मे जाने का क्या मतलब ? हमने अमेरिका और बुश का चेहरा इराक़ से लेकर अफगानिस्तान मे ख़ूब देखा है। नए सिरे से अब क्या देखना बाक़ी है ?"

साभार: हिंदुस्तान

3 comments:

Reyaz-ul-haque said...

सही कहा. सारे खूसट और लिजलिजे लोग वहां जमा हुए हैं.

Anonymous said...

nuksan to Hindi bhasha ka hi hua na? Arundhati Roy ko dekhiye USA jaakar USA ke khilaf bolti hain. Agar Mahashveta ji wahan jaati aur apni baat rakhti to jyada achha hota

दुःखदीन said...

asahmat bhai , ye baat utni asaan nahi hai jitni ki dekhne me lagti hai. arundhati waha isliye jati hain kyonki america ka virodh karna hota hai aur sampradayik hindi ka virodh wahan na jakar apne desh me rahkar kiya ja sakta hai.