Thursday, July 5, 2007

ये (नारद और उसके (कु)कर्म ) हिंदी की सेवा नही जीतू जी

कुवैत मे रहकर हिंदी और हिंदीभाषियों की सच्चाई नही जानी जा सकती है(हिंदी भाषी के अलावा भी , किसी की भी हकीकत देश के बाहर रहने वाले कितना जानते हैं वो नारद की कड़ी कार्यवाही से पता चल जाता है ) और आपके पास जो स्रोत हैं उन्हें सूचनाये कैसे मिलती हैं और कैसे बनती हैं , इसको मैं अच्छी तरह से जानता हूँजीतू जी , नारद के पुष्पक विमान मे बैठकर सतही चीज़े जान लेना और एक अवधारणा बना लेना एक बात है और जमीन पर रहकर काम करना दूसरी बातखैर आपसे और क्या कहू , आप तो खुद ही पलायन वादी हैं तभी देश छोड़कर बाहर बैठे हुए हैं और देशभक्ति का सिला जमीनी आवाजों को दबाकर दे रहे हैंलेकिन अगर ये सोचते हैं कि नारद की इस अहमकाना हरकत से मैं भी पलायन वादी बन जाऊंगा और मेरा चिठ्ठा बंद हो जाएगा तो ये सिर्फ नारद की खामख्याली है , और कुछ नहीआप जिस हिंदी की बात कर रहे हैं , जरा इमानदारी से बताइए कि कितने लोग उस हिंदी मे बात करते हैं ? और आप जिस हिंदी की बात कर रहे हैं , जरा बता दीजिए कितने लोग उससे प्रभावित होते हैं ? हाँ , संघ या संघी अगर गालियों (तेल लगाओ डाबर का - %^*& मारो बाबर का , सन ९२ ) मे भी कुछ कहते हैं तो आप जैसे कुछ लोगो का वह नारा बन जाता हैउस पर कोई भी बैन लगाने की बात नही करता । बल्कि उस naare साथ देने वालों के लिए दूसरों की अभिव्यक्ति मुह मे बैन का डंडा डाल kar बंद kar दीं जाती hai। uske baad अगर कोई उन जैसे लोगो से उन्ही की जबान मे बात करता है तो आप उसे बुरा कहते हैं और उसके खिलाफ मोर्चा खोल देते हैंये (नारद और उसके (कु)कर्म ) हिंदी की सेवा नही जीतू जीये जान बूझ कर पूरी दुनिया से एक ही विचारधारा के लोगों को एक साथ करके इण्टरनेट जैसे माध्यम से फैलायी जा रही साम्प्रदायिक साजिश है , जो मेरे ब्लोग पर बैन लगाने के बाद पूरी दुनिया मे नंगी हो चुकी हैअब ये खेल खुल कर सामने गया हैअगर आप हिंदी के अनन्य सेवक या भक्त (जो भी आप अपने आप को कहते हैं ) होते तो आप कम से कम यह तो लिखते
एक दो साथियों ने नारद से अपने ब्लॉग हटाने की अर्जी दी थी, उनकी अर्जियां हमारे पास पेंडिंग है, अभी नारदमुनि छुट्टी पर है, समय मिलते ही उनपर विचार किया जाएगा, उनको भी पुनर्विचार का वक्त दिया जा रहा है वे दोबारा सोच लें और २० जुलाई तक अपनी अर्जियां वापस ले अथवा हम उन पर विचार करें।

इसका क्या अर्थ लगाया जाय ? आप समझते क्या हैं नारद को ? अब वो जमाना गया जीतू जी कि जब नारद इकलौता फीड गेटर थाये बाजार है और रोज़ लोग आते रहते हैं ! ! ये मत कहियेगा कि आप निष्काम भाव से हिंदी की सेवा कर रहे हैंविचारो के भी बाजार होते हैं जीतू जी और विचारो की इस जंग मे चुंकि ताकत आपके पास थी और आपने उसका भरपूर उपयोग कियाअगर आप हिंदी के इतने ही अन्य सेवक होते तो ऊपर दीं गई बाते कभी लिखते , बल्कि ऐसा कोई विचार आपके मन मे आता ही नहीलेकिन क्योंकि आपके मन मे पहले से ही धर्म निरपेक्षता की बात करने वालो के लिए "जहर " भरा हुआ है , तो हम ये मान लेते हैं कि ये उसी जहर का असर बोल रहा हैकभी कभी मुझे आश्चर्य होता है कि कैसे मैं इतने जहरीले माहौल मे रह गया और वो भी इतने दिन तकमुझे बहुत पहले ही नारद से किनारा कर लेना चाहिऐ थाखैर चलिये , देर आये दुरुस्त आयेआपके पास जो दो तीन लोगों की ब्लोग हटाने की अर्ज़िया पडी हुई हैं , उसी मे मेरी भी शामिल कर लीजियेक्योंकि बेईमानी मुझसे होती नही और गलत बात मैं बर्दाश्त नही करताछूटते ही गलियां देता हूँक्या पता , अभी बजार पर अवैध अतिक्रमण को बैन किया है , कल को बजार पर भी आपके हिसाब से कुछ उल्टा सीधा छप गया तो आप उसपर भी बैन लगा देंगेऔर उसके बाद बाक़ी के नारदिये बंदरो की तरह कूद कूद के खौखियाने लगेंगे , कि वो मारा , बहुत अच्छे मारा
rahul

6 comments:

Rising Rahul said...

अब यहाँ पर भी लिख दीजियेगा कि इतनी लंबी चौड़ी पोस्ट लिखने का क्या मतलब है । दो लें का इमेल कर देते ।

Anonymous said...
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Rising Rahul said...

आपका तो नाम ही नही पता भाई साहब , शायद अपको अपने बाप का नाम भी पता न हो , लेकिन आपकी माँ बखूबी आपके बाप को जानती होंगी। प्रेम या दबाव देकर पूछ सकते हैं। लेकिन भाई , नाम और वल्दियत जरूरी है , समाज मे पहचाने जाने के लिए। और कानूनन भी ।

Rising Rahul said...

जीतू भाई , ये बेनाम वाला कमेन्ट देख रहे हैं ना ? आपके ही नारदी परिवार मे से कोई है । इसे मैंने इसीलिये पब्लिश किया कि सब जाने ऐसे परिवारों की हकीकत। सब कुछ खुल रहा है। नंगा हो रहा है।
कह दीजिए , मेरी ही कोई साजिश होगी । आपके लिए तो आसान है कहना। कुछ भी। किसी को भी।

Anonymous said...
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प्रदीप सिंह said...

हाँ . वही हो