मेरी प्यारी मौसियों
मेरी प्यारी मौसियों
(लीला और सुर्जकली मौसी के अलावा वाली मौसियों),
कई दिन से हम घर से निकलके चौराहे पे जा रहे हैं। असोक के यहां पान खाए के बाद अपने दोस्तों से बतियाकर उनका बात चुपके चुपके मुंबई का घटा, बनारस का छटा, रांची दिल्ली वाया पालमपुरो वाले दोस्तन को बता दे रहे थे। हालांकि हमका पता है कि हमरे सारे दोस्त हमको मिलके कूटेंगे, लेकिन इस्पेसली मनोरमा मउसी, आप तो हमारा मन जानती ही हैं। हम जब तलक चार लोगों से गाएंगे नहीं, गाली गुप्ता सुनके अपना गाल बजाएंगे नहीं, हमरे दिमाग का जो डिस्परेसन है, वो कैसे निकलेगा। बताइये। वैइसे मउसी, ई सारी बात सारे लोग जान रहे हैं, पर पता नहीं काहे मस्तराम की लुगदी की तरह एकदम कोने में, न जाने कौन बिलुक्का में लुकवाए बैठे रहते हैं, कि उनका जानते हुए कौनो जान ना लेय। ऐसे लोगन का भी इलाज लिखिएगा।
निर्मला मउसी होतीं तो यही कहतीं कि गीता का फलाना शलोक पढ़ो, उसे मन में बिठाओ। और गीता भी कौन सी गीता, रिकाबगंज में प्रिया ब्यूटी पार्लर वाली गीता का बात कहतीं, तभो मन में कोई गरमी पहुंचती (ठंड बहुत है, गरमी का जरूरत है) लेकिन ऊ त सीधे आठचक्कर वाली पता नहीं कौन सी गीता का बात करती रहती हैं। फिर कहतीं कि चूड़ी में जड़ने वाली मणी पढ़ौ, देमाग तेज होगा। निर्मला मउसी, तुमसे इस्पेसली दोनों हाथ जोड़ के विनती करते हैं कि चुप्पेचाप अयोधा दरशन का चली आओ। अउर हां, इसका भी पूरा बंटवारा करने का आपसे दरकार है कि हम नास्तिक हूं या आस्तिक। इनामदारी से कह रहा हूं कि अबहूं कभो कभो हनुमानचलीसा तो कबहूं सुंदरकांड का चौपाई जबान पर चरपरा जाता है।
रामकली मौसी से हमको ये पूछना था कि अनाथालाय में जो औलादों को रखने का ठेका लिया था, का उसमें सब भक्तै हैं मने नजायज औलादें तो सभै जगहिया पे हैं। हम का सोच रहे हैं, कि काहे नहीं हम उनका भी बात वाया मोतीहारी नसलबारी सबतक पहुंचाएं। बाकी पहाड़ वाली मउसी चुपके चुपके मुस्किया रही होंगी, इस बात का हमको पूरा यकीन है, गोबरधन का कसम खा के कहते हैं।
(फूल का थारी खरीदने गए थे कि आप लोगन को चिट्ठी के साथ पठा देंगे, त उसका रेट तो एकदम्मे मोदी होय रहा है। यहलिए अपने लैपटाप के स्क्रीने पे ई फोटू से काम चला लीजिए, ज्यादा कहने की का दरकार है। थारी ठीक से दिख रहा है ना.. नहीं त कहिए लिटफेटिया थारी दिखाएं)
(लीला और सुर्जकली मौसी के अलावा वाली मौसियों),
कई दिन से हम घर से निकलके चौराहे पे जा रहे हैं। असोक के यहां पान खाए के बाद अपने दोस्तों से बतियाकर उनका बात चुपके चुपके मुंबई का घटा, बनारस का छटा, रांची दिल्ली वाया पालमपुरो वाले दोस्तन को बता दे रहे थे। हालांकि हमका पता है कि हमरे सारे दोस्त हमको मिलके कूटेंगे, लेकिन इस्पेसली मनोरमा मउसी, आप तो हमारा मन जानती ही हैं। हम जब तलक चार लोगों से गाएंगे नहीं, गाली गुप्ता सुनके अपना गाल बजाएंगे नहीं, हमरे दिमाग का जो डिस्परेसन है, वो कैसे निकलेगा। बताइये। वैइसे मउसी, ई सारी बात सारे लोग जान रहे हैं, पर पता नहीं काहे मस्तराम की लुगदी की तरह एकदम कोने में, न जाने कौन बिलुक्का में लुकवाए बैठे रहते हैं, कि उनका जानते हुए कौनो जान ना लेय। ऐसे लोगन का भी इलाज लिखिएगा।
निर्मला मउसी होतीं तो यही कहतीं कि गीता का फलाना शलोक पढ़ो, उसे मन में बिठाओ। और गीता भी कौन सी गीता, रिकाबगंज में प्रिया ब्यूटी पार्लर वाली गीता का बात कहतीं, तभो मन में कोई गरमी पहुंचती (ठंड बहुत है, गरमी का जरूरत है) लेकिन ऊ त सीधे आठचक्कर वाली पता नहीं कौन सी गीता का बात करती रहती हैं। फिर कहतीं कि चूड़ी में जड़ने वाली मणी पढ़ौ, देमाग तेज होगा। निर्मला मउसी, तुमसे इस्पेसली दोनों हाथ जोड़ के विनती करते हैं कि चुप्पेचाप अयोधा दरशन का चली आओ। अउर हां, इसका भी पूरा बंटवारा करने का आपसे दरकार है कि हम नास्तिक हूं या आस्तिक। इनामदारी से कह रहा हूं कि अबहूं कभो कभो हनुमानचलीसा तो कबहूं सुंदरकांड का चौपाई जबान पर चरपरा जाता है।
रामकली मौसी से हमको ये पूछना था कि अनाथालाय में जो औलादों को रखने का ठेका लिया था, का उसमें सब भक्तै हैं मने नजायज औलादें तो सभै जगहिया पे हैं। हम का सोच रहे हैं, कि काहे नहीं हम उनका भी बात वाया मोतीहारी नसलबारी सबतक पहुंचाएं। बाकी पहाड़ वाली मउसी चुपके चुपके मुस्किया रही होंगी, इस बात का हमको पूरा यकीन है, गोबरधन का कसम खा के कहते हैं।
(फूल का थारी खरीदने गए थे कि आप लोगन को चिट्ठी के साथ पठा देंगे, त उसका रेट तो एकदम्मे मोदी होय रहा है। यहलिए अपने लैपटाप के स्क्रीने पे ई फोटू से काम चला लीजिए, ज्यादा कहने की का दरकार है। थारी ठीक से दिख रहा है ना.. नहीं त कहिए लिटफेटिया थारी दिखाएं)
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