Sunday, December 1, 2013

जहां कोई हमसुखन न हो

आर्मेनि‍या के जंगलों में जा रहा हूं। जहां कोई हमसुखन न हो। न ही कोई हम जुबां हो।

आर्मेनि‍या के जंगल में हमें कई तरह के जानवर मि‍ले। कुछ जानवर तो ऐसे थे, जि‍नके हाथ पैर कुछ भी नहीं थे मगर वो चले ही जा रहे थे।

कुछ जानवर ऐसे थे जि‍नके अंदर कभी दो तो कभी दो ढाई सौ जानवर एक साथ दि‍खाई दे रहे थे।

बाकी छोटे मोटे जानवर बगैर हाथ पैर वाले जानवरों को क्रीमरोल खाते हुए देख रहे थे।

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