Tuesday, May 3, 2016

घन गरजत नहीं घेरत बाटे

जि‍या जबर सन्‍यासी भइया
होइके आवा कासी भइया
घन गरजत नहीं घेरत बाटे
बरसत बाटे उदासी भइया।


राम दुआरे सब औघारे
परबत के हे बासी भइया
चार बूंद तनि एहर पठावा
नगरी पूर बा प्‍यासी भइया।


काम काज सब सून पड़ा बा
धूपौ सत्‍यानासी भइया
कवि‍कुल प्रेमी पांड़े काढ़ैं
अंखि‍यन लोर चुआसी भइया।

1 comment:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 14 मई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!