घन गरजत नहीं घेरत बाटे
जिया जबर सन्यासी भइया
होइके आवा कासी भइया
घन गरजत नहीं घेरत बाटे
बरसत बाटे उदासी भइया।
राम दुआरे सब औघारे
परबत के हे बासी भइया
चार बूंद तनि एहर पठावा
नगरी पूर बा प्यासी भइया।
काम काज सब सून पड़ा बा
धूपौ सत्यानासी भइया
कविकुल प्रेमी पांड़े काढ़ैं
अंखियन लोर चुआसी भइया।
होइके आवा कासी भइया
घन गरजत नहीं घेरत बाटे
बरसत बाटे उदासी भइया।
राम दुआरे सब औघारे
परबत के हे बासी भइया
चार बूंद तनि एहर पठावा
नगरी पूर बा प्यासी भइया।
काम काज सब सून पड़ा बा
धूपौ सत्यानासी भइया
कविकुल प्रेमी पांड़े काढ़ैं
अंखियन लोर चुआसी भइया।
1 comment:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 14 मई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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