Tuesday, August 14, 2007

कम्युनिस्टों का मुसलमानो के बीच क्या आधार है ?


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

अक्सर
बेनाम लोग गुमनाम रहकर कुछ ऐसा कर जाते हैं जिसे आसानी से नज़रअंदाज नही किया जा सकताहालांकि ये बेनाम भाई कि एक टिपण्णी ही थी लेकिन इसे ऐसे ही जाने देना या इस पर बहस का होना खुद मे कई सवाल खडे कर देता हैशाहनवाज़ के लेख "कौन बनाता है आतंकवादी " पर आयी इस बेनाम टिपण्णी ने भी कई सारे सवाल खडे किये हैं

बेनामी ने कहा…

शाहनवाज़ भाई ,
आप ने जिस गहराई से पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण किया है , वह कबीले तारीफ़ है| लेकिन मैं आपकी कुछ बातों से इत्तेफ़ाक नही रखता | मसलन अगर सांप्रदायिकता की बात आती है तो मैं कम्युनिस्टों को भी वही खड़ा देखता हूँ जहाँ भाजपा और कॉंग्रेस जैसी सांप्रदायिकता का समर्थन करने वाली पार्टियों को. फ़र्क बस इतना है कि वामपंथी अगर बाएँ हैं तो ये लोग दाहिने हैं | लेकिन हैं दोनो अगल बगल ही. दोनो की राजनीति की दुकान ही एक दूसरे के विरोध से चल रही है और वो भी सब हवा मे ही. अगर ज़मीने बात करें तो ज़रा मुझे बताइए कि कम्युनिस्टों का मुसलमानो के बीच कहाँ और कैसा आधार है ? क्या गुजरात मे आपका कोई आधार है ? क्या तमिलनाडु मे आपका संगठन मुसलमानो के बीच कोई आधार है ? अच्छा चलिए , ये बताइए कि आपका बिहार के मुसलमानो मे कितना आधार है ? कोई मुसलमान आपका कहा मानता है ? उनमे भी तो उसी तरह के अंतर्विरोध पाए जाते हैं जिस तरह हिंदुओं मे . बल्कि कभी कभी तो ज़्यादा ही पाए जाते हैं , कम नही. अब आप कहेंगे कि मुसलमान अल्पसंख्यक हैं , दबाए गये हैं इसलिए उनकी आवाज़ को प्राथमिकता दी जाएगी . तो भाई साहब कब तक ? और मुसलमानो की जनसंख्या मे भागीदारी पर ध्यान जाता है आपका ? 18 करोड़ से उपर ही हैं , कम नही हैं. इतने मुसलमान तो पाकिस्तान मे भी नही हैं जितने कि यहाँ , भारत मे . हैं. और इस 17 करोड़ मे भी वही हिंदुओं वाला हाल है . कुछ ऊँची जातियाँ सबसे ऊपर हैं उनके नीच फिर उनके नीचे और फिर उनके नीचे. कभी इस बेहाल हुए हाल को आपमे से किसी ने जानने की कोशिश की या उसे ठीक करने की ? जब आपका कोई जनाधार नही है उनके बीच , कोई काम नही है , सिर्फ़ चिल्लाना है तो पड़े चिल्लाते रहिए. कुछ संघ वाले सुनेगे , च्यूटपुटीया छोड़ेंगे , फूल झड़ी जलाएँगे और उसकी रोशनी मे आप भी हर किसी को दिखाई देंगे. लीजिए , आपकी राजनीतिक पहचान का संकट तो हल हो गया. लेकिन मुसलमानों का क्या हुआ ? वो तो हर दंगो मे वैसे ही मारे जाएँगे जैसे कि मारे जाते हैं.

5 comments:

ढाईआखर said...

सवाल काफी अहम हैं।

Anonymous said...

सवाल तो अहम हैं ही लेकिन जवाब तो कोई दे ...अब देखिए , बाज़ार के करता धर्ता भी चुप बैठे हैं और उनके सहयोगी भी. सबकी बोलती बंद हो गई है. क्यों भाई , कोई जवाब नही सूझ रहा है क्या ?

Anonymous said...

लेकिन ये बात तो सही ही है कि ये कम्युनिस्ट धर्म निरपेक्षता के नाम पर चाहे जितनी उछल कूद मचा लें , है ये इनकी छद्म धर्म निरपेक्षता ही. और ये बात भी सही है कि इनका मुसलमानो के बीच कोई भी जनाधार नही है. इनसे ज़्यादा तो भाजपाईयों का होगा . संघियों का होगा . और वैसे भी प्रवीण तोगड़िया का हॉस्टल कॅया साथी मुसलमान ही था.

Rising Rahul said...

भाई बेनाम जी , बड़ी अच्छी बात है कि आप इस बहस मे हिस्सा ले रहे हैं , लेकिन अगर आप बेनाम न होकर अपने नाम के साथ बजार मे कुछ लिखते तो हमे और भी अच्छा लगता .... वैसे बेनाम टिप्पणियों पर कोई रोक नही है. आपकी बात पहूचनी चाहिए , बस

ghughutibasuti said...

बेनाम जी के उठाए सवाल अहम हैं । उनके जवाब ढूँढे जाने चाहिये ।
घुघूती बासूती