Saturday, March 10, 2007

नाटक चालू आहे ...

प्रदीप सिंह
पेशे से पत्रकार और दिमाग़ से चिंतक (हमेशा पता नही कहाँ खोए रहते हैं ) , काफ़ी दिनो तक इलाहाबाद के चौराहों की महफ़िल की जान रहे , और अब नोयडा की कथित " लल्ला चुंगी " यानी सहारा के सामने वाली चाय पान की दुकान पे सजने वाली महफ़िल मे एक किनारे अक्सर दिखाई दे जाते हैं . चुनावी बुख़ार इन्हे चढ़ रहा है और ऐसे मे इन पर काबू करना मेरे लिए नामुमकिन है . कल तो देर रात तक इसी बुख़ार मे तपते रहे , काफ़ी दवा दारू के बाद ही आज ये बजार मे आए हैं .

पाँच वर्ष में एक बार फिर से लोकतंत्र के कराहने की आवाज़ आने लगी है . कराह को सुनकर अहसास हो रहा है कि उत्तर प्रदेश मे लोकतंत्र अभी मरा नही है . फ़िलहाल जनता के नुमाइन्दे कराहते लोकतंत्र को ज़मीन मे दफ़न कर देने का कोई अवसर छोड़ना अपनी तौहीन समझते हैं . राजनीति मे नैतिकता और मर्यादा की बात बाबा आदम के ज़माने की मानी जाने लगी है . लोकतंत्र का अपहरण कर चुकी बदरंग राजनीतिक पार्टियाँ नये रंग रोगन में उत्तर प्रदेश के रंगमंच पर लोकतंत्र का नाटक खेलने को आतुर हैं . जनता को नये नये सब्ज़बाग दिखाए जा रहे हैं . कृषि क्रांति के लिए मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश को हरित प्रदेश बनाने के नाम पर एक लोक विहीन दल तलवारें भांज रहा है . समाजवाद के असली वारिस और लोहिया के शिष्य ,कार्पोरेट समाजवाद की चमकीली सड़क पर तेज़ रफ़्तार पकड़ चुके हैं . रामराज़ लाने वाले अपनी पूरी आसूरी शक्ति एवम सेना के साथ मैदान में आ डटे हैं . रामराज़ का रिहर्सल मऊ और गोरखपुर में संजीदगी के साथ कर चुके हैं .असली नाटक अभी बाक़ी है .गोधरा का अभिनय आज तक दर्शकों को याद है . गाँधी के नाम का जाप करने वाले अब गाँधिगिरी पर उतर आए हैं . फिर भी ज़मीन पैरों के नीचे से खिसकती नज़र आ रही है . बहुजन समाज की जीवित देवी मनुवादियों से गलबहियाँ डाल सत्ता के मंदिर में स्थापित होने का स्वप्न देख रही हैं . जनमोर्चा का जन काफ़ी उत्साहित है . फ़िलहाल अभी तंत्र के सामने विवश है . बड़ी वामपंथी पार्टियां कुछ सीटों से ही साम्यवाद तक का सफ़र पूरा करना चाह रही हैं . फ़िलहाल पाँच वर्षों मे एक बार फिर से जनता को जनार्दन बनाने की तैयारी हो चुकी है . राजनेताओं के लिए वोट भले ही शून्य से शिखर तक पहुचाने का साधन हो , जनता के लिए यह हथियार नही बल्कि पाँच बार मे एक बार छला जाने वाला अवसर मात्र है . आम चुनाव के बाद जनता वही की वहीं पड़ी रहेगी .
हम ऐसा तो नही चाहते , फ़िलहाल इस दुखांत नाटक का सच यही है .
नाटक का शेष इंटरवल के बाद

1 comment:

मसिजीवी said...

दुनिया खूबसूरत है इसलिए भी कि इसमें सिनीसिज्‍म़ भी है।
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लिखते रहिए।