Tuesday, March 6, 2007

गालियों के लिए साधुवाद

गालियों के लिए साधुवाद , ख़ासकर उन्हे जिन्हे शाखाओं मे संस्कार और सभ्यता का पाठ पढ़ाया जाता है , अब जब बहस चल ही चुकी है तो क्यों ना सब कुछ साफ़ साफ़ कर लिया जाए . सबूत भी हैं और भूक्त भोगी भी . लेकिन वे सब अभी निरर्थक हैं , बात तो विचारधारा की हो रही है और कम से कम अक्ल्मण्दो से इतनी उम्मीद तो की ही जा सकती है कि हम एक स्वस्थ बहस करें . इसी क्रम मे अरविंद भाई ने अपने कुछ विचार बजार मे "बेचे" हैं , है कोई ख़रीददार ?

सवाल हिंदू मुस्लिम का नही है सवाल है उस वैचारिक बवाल का जिस ओर संघ परिवार देश को ले जाना चाहता है इसी नक्शे क़दम पर चल कर दुनिया के कितने राष्ट्र धूल धूसरित हुए उसका इतिहास हमारे सामने है . राष्ट्रों के उत्थान पतन को सिर्फ़ एक राजनीतिक परीघटना कहकर बाक़ी चीज़ों को हम नकार नही सकते . जिस राष्ट्र के निर्माण मे ही उसके विनाश के बीज मिले हो , उसके नष्ट होने का सिर्फ़ इंतज़ार किया जा सकता है - इनकार नही . राष्ट्रवाद का दंभ भरने वाली आर एस एस क्या स्वयम सेवक संघ के उन मानकों से अलग है जिसका निर्माण मुसोंलिनि ने किया था ? या संघ अपने आकाओं के उन बयानो को ख़ारिज करेगा जिसमे उन्होने ने कहा था कि अँग्रेज़ नही बल्कि मुसलमान राष्ट्र के वास्तविक दुश्मन हैं . आज़ादी के बाद से इनके राजनीतिक संगठन जनसंघ से लेकर भाजपा तक का सफ़र अपनी इसी विचारधारा पर आधारित रहा . इस राजनीतिक दल ने केवल जनता की भावनाओं का मसाज कर सत्ता सुख पाने की कोशिश की . जब गाँधी और लोहिया दोनो का क्रेज़ था तो गाँधीवादी समाजवाद के नाम ओए वोट माँगा . भाजपा दो सीटों से आगे नही बढ़ पाई .
इसके बाद 80 के दशक से राष्ट्रवाद और उग्र राष्ट्रवाद का इनका सफ़र ख़त्म होता है . सत्ता पाने की दूर दूर तक कोई आस नही दिखती . और 90 के दशक मे राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद को सीढ़ी बना ये सत्ता तक का सफ़र तय करते हैं . फासीवाद कि मुख्य विचारधारा है कि अगर बहुसंख्यक को अपने साथ करना है तो अल्पसंख्यक पर आक्रमण कर दो . रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद विवाद मे भी संघ परिवार ने इन्ही बिंदुओ का इस्तेमाल कर भाजपा को सत्ता मे पहुचाया . 5 साल सत्ता सुख के साथ कई प्रांतों मे अपनी सरकार चला रही इस ईश्वारवादी ताक़त के पास देश की आम जनता के लिया कुछ भी नही है . 21वीं सदी मे फासीवाद के सबसे ज़्यादा प्रयोग हिंदुस्तान मे हुए हैं और इसे संघ परिवार ने ही किए हैं , आख़िर इससे इनका पुराना रिश्ता जो रहा है .उपर किए इशारे अतीत से वर्तमान के सफ़र मे इनके चरित्र को समझने के लिए काफ़ी हैं .
जिग्यासू पाठक एक एक मुद्दे पर विस्तार से चर्चा के लिए आमंत्रित हैं .

1 comment:

Kaul said...

जनता बेवकूफ नहीं है। न यह मुसोलिनी की इटली है, न हिटलर की जर्मनी। जनता नहीं चाहेगी तो आर.एस.एस. वहीं रह जाएगी जहाँ है, और चाहेगी तो फिर आप कुछ नहीं कर सकते। यदि आप वास्तव में आर.एस.एस. पर रोक लगाना चाहते हैं, तो अपनी छद्म धर्मनिरपेक्षता पर रोक लगाएँ। इस जैसे बेबुनियाद इलज़ामों वाली पोस्टें और इस जैसी सोच ही लोगों को भाजपा की ओर खींचती है। अब आप के किस किस वाक्य को असत्य साबित किया जाए, यदि आप कुछ पूर्वनिर्धारित धारणाओं को ठान कर चले हैं। आप को आर.एस.एस. के हिन्दूवाद से डर लगता है, तो औरों को अन्य पार्टियों के हिन्दूविरोध से। सही विकल्प होगा तो कौन नहीं चाहेगा। यदि आप को यह पार्टियाँ ग़लत लगती हैं, तो एक दूध से धुली पार्टी या संगठन का नाम बताएँ। सिमी?