Wednesday, September 25, 2024

ये सांप है या प्रकृति का वरदान?


ये प्रयागराज के बड़े हनुमान मंदिर के पास पानी में तैरता आया पनडुब्बी सांप है (पानी में बैरियर वाली)। इलाहाबाद निवासी रवींद्र मिश्रा ने इसे एक जीव विज्ञानी ग्रुप पर शेयर किया है। जीव विज्ञानी इसे चेकर्ड कीलबैक के नाम से बुलाते हैं। लेकिन हम लोग इसे पनडुब्बी कहते थे। इस तस्वीर में इसका सफेद हिस्सा बहुत साफ दिख रहा है और इसपर बने चेक भी एकदम साफ दिख रहे हैं। गांव-गिरांव के तालाबों में यह अक्सर काले या स्लेटी रंग का दिखता है और पानी के बाहर इसकी गरदन बस एकाध फुट ही दिखती है।
हम लोग इसे पनडुब्बी सांप इसलिए कहते थे कि जैसे ही यह हमें आता देख, झट से डुबकी मार दे। अक्सर यह तालाब में कछुए की तरह भी सिर निकाले तैरता दिखता था, लेकिन कछुए की बहुत ही गंदी नकल करता था, तो हम लोग पकड़ पा जाते थे कि पनडुब्बी ही है। वैसे यह तालाब में ही नहीं रहता था। यह पानी से भरे धान के खेतों में भी दिखता था। चूंकि धान के खेत उथले होते हैं तो वहां यह कछुए की तरह ही तैरता था। कभी-कभार हममें से कुछ दोस्त इसकी कछुए वाली चालबाजी में गच्चा भी खा गए, और उन्होंने इसे कछुआ समझकर पकड़ने की कोशिश की। बदले में मिला एक तेज वार। पनडुब्बी काफी कटखन्ना होता है, तुरंत काटता है। बस गनीमत यही होती है कि इसमें जहर नहीं होता और गांव-जुआर के लोग यह बखूबी जानते हैं। माना जाता है कि उनके लार में थोड़ा सा जहर होता है, क्योंकि काटने पर अक्सर खुजली होती है और थोड़ी सूजन होती है।

वैसे तो दुनिया में तरह-तरह के सांप पाए जाते हैं, पानी में रहने वाले भी। समुद्री पानी में जितने भी तरह के सांप पाए जाते हैं, लगभग सभी जहरीले होते हैं। कई तो इतने कि घंटे भर में अगर इलाज ना मिला तो जान निकलने में देर नहीं लगती। लेकिन पनडुब्बी धरती नाम के गोले में बस इसी ओर मिलता है। इसी ओर भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका में। थोड़ा बहुत यह जावा, सुमात्रा, म्यांमार, थाईलैंड, वियतनाम, कम्बोडिया, लाओस, दक्षिणी चीन, इंडोनेशिया और मलेशिया में भी पाया जाता है, लेकिन थोड़ा बहुत ही।
पनडुब्बी घासफूस नहीं खाता, और वैसे भी कोई सांप घासफूस नहीं खाता। सापों की देह की बुनावट ही कुछ ऐसी है कि उन्हें हाई प्रोटीन आहार चाहिए होता है। तो अपने कीलबैक महाराज मछलियों और मेंढक का सेवन करते हैं, चर्बी सहित। साहब बेहतरीन तैराक हैं और हमला करने में मगरमच्छ की कॉपी करते हैं, मतलब धीमे धीमे चुपचाप आना और अचानक झपट्टा मारना। लेकिन जब इस पर हमला होता है तो यह अपने शरीर को चपटा कर लेता है और फुफकारने जैसी आवाज़ें निकालता है ताकि दुश्मन को डराया जा सके। इसके चपटे शरीर के कारण यह बड़ा और खतरनाक दिखाई देता है, जिससे दुश्मन डर कर पीछे हट जाए। लेकिन अगर कोई इसे अच्छे से जानता हो तो वह शायद ना डरे।
और अगर कोई इससे ना डरे तो ये बेचारा खुद डर जाता है। फिर यह तेजी से भागने की कोशिश करेता है और आमतौर पर पानी में कूद जाता है, जहां यह आसानी से तैर सकता है और शिकारियों से बच सकता है। यह एक नंबर का नाटकबाज होता है और अपने आप को बड़ा दिखाने, फुफकारने और छिपने का प्रयास करता है ताकि खतरे से बच सके। इसमें कोई बेजा बात नहीं है। इंसान भी तो यही करता है, चाहे वो किसी का भी नुकसान ना कर पाए।
चेकर्ड कीलबैक के इवोल्यूशन पर केंद्रित कोई विस्तृत शोध नहीं है। यानी यह सांप कैसे बना, इसकी देह पर चेक्स कैसे बने, इसने पानी में रहना कैसे शुरू किया, इसने चपटा होना कैसे डिवेलप किया- इस तरह की बातों के सीधे-सीधे कोई जवाब हमारे सामने नहीं हैं। अगर किसी को इन सवालों के जवाब चाहिए, तो शायद पूरी एक उम्र लगानी होगी और वो हम भारतीयों के पास है नहीं। हम तो अभी तक कुत्तों को नहीं समझ पाए हैं, सांप तो बहुत दूर की चीज है। भले ये सांप-सपेरों का देश कहा जाता हो दुनिया भर में, लेकिन सांपों को लेकर हमारे यहां किसी भी लेवल की जागरूकता नहीं है।

ये सब तो बतकुच्चन है, असल बात ये है कि एक दूसरा रास्ता है जो कीलबैक चिचा के इवोल्यूशन से जुड़े कुछ मिलते जुलते जवाब दे सकता है। कीलबैक न सिर्फ तालाब के पानी या धान के खेतों में घुलमिल जाता है, बल्कि आप इसे ध्यान से देखेंगे और इससे मुलाकात और मुकालात करने वाले अच्छे से जानते हैं कि ये झाड़-झंखाड़ और घास में भी छुपे हुए होते हैं। ऐसे में हमें चलना होगा सांपों के छलावरण और प्राकृतिक चयन पर हुए शोधों की तरफ, जो इस सांप के इवोल्यूशन की समझ को बेहतर बनाते हैं।
इन अध्ययनों में से एक थोड़ा ध्यान खींचता है और सवाल के सबसे पास पहुंचता है। इसके मुताबिब सांपों का रंग और पैटर्न का कनेक्शन उनकी प्रजनन सफलता के साथ भी है। जिन सांपों के पास बेहतर छलावरण होता है, वे न केवल शिकारियों से बचने में सक्षम होते हैं, बल्कि वे बेहतर तरीके से शिकार भी कर पाते हैं। यह उन्हें अधिक समय तक जीवित रहने और प्रजनन करने का अवसर देता है, जिससे उनके अनुकूल जीन पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ते हैं। इस प्रकार, चेकर्ड कीलबैक जैसे सांपों का चेक पैटर्न केवल सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि उनकी प्रजनन क्षमता को भी बढ़ाता है​।
चेकर्ड कीलबैक में कई गोल दांत होते हैं, जो फिसलन वाली मछलियों को पकड़ने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं, लेकिन आसानी से खून बहने का कारण बन सकते हैं। यह बताता है कि इसका इवोल्यूशन धरती से पानी की ओर भी हो सकता है। वैसे भी सांपों की इवोल्यूशन थ्योरी यह भी इशारा करती ही है कि सांपों के पूर्वज टेट्रापोड्स (चार पैरों वाले सरीसृप) थे, जो जमीन पर चलते थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि सांपों के पूर्वज स्क्वामेट्स (Squamates) नामक सरीसृप वर्ग से थे, जिनमें छिपकलियां और सांप दोनों शामिल हैं। सांपों का विकास समुद्री और जमीन दोनों प्रकार के जीवन से जुड़ा रहा है, और वे धीरे-धीरे अपने चार अंगों को खोते गए और एक लंबा, बिना अंग वाला शरीर विकसित किया।
सांपों के विकास को समझने के लिए कई फॉसिल्स (जीवाश्म) का अध्ययन किया गया है। सबसे पुराने सांपों के फॉसिल्स में अंगों के अवशेष पाए गए हैं, जो बताते हैं कि उनके पूर्वज चार पैरों वाले जीव थे। यह भी देखा गया है कि सांपों का विकास छिपकलियों के समान हुआ है, जिनसे वे अपने शरीर के अंग खोकर अलग हुए। समय के साथ कुछ सांपों ने समुद्र और जलाशयों में जीवन के लिए खुद को अनुकूलित किया, जबकि अन्य ने जमीन पर रहना पसंद किया।
जैसे-जैसे उनके पर्यावरण के अनुसार सांपों की आदतें बदलती गईं, उनके शरीर में भी बदलाव आते गए। जमीन पर रहने वाले सांपों ने अपनी त्वचा के रंग और पैटर्न को इस तरह विकसित किया, जिससे वे अपने परिवेश में छिप सकें और शिकारियों से बच सकें। वहीं पानी में रहने वाले सांपों ने लाखों वर्षों के इवोल्यूशन के दौरान तैरने की क्षमता को विकसित किया। इस अनुकूलन ने उन्हें जल निकायों में शिकार करने और शिकारियों से बचने में मदद की।

भारत में चेकर्ड कीलबैक (Xenochrophis piscator) तो है ही, ओलिव कीलबैक (Atretium schistosum) भी है जो नदियों, तालाबों और झीलों के पास पाया जाता है। इसका आहार मुख्य रूप से जलीय जीव होते हैं, और यह तैरने में कुशल होता है। डार्क-बेलीड मार्श स्नेक (Gerarda prevostiana) भी मिलता है जो मुख्य रूप से पश्चिमी घाट और भारत के तटीय क्षेत्रों में रहता है। यह जलीय शिकारियों से बचने और कीचड़ भरे इलाकों में तैरने में सक्षम होता है। एशियाई वाटर स्नेक (Homalopsis buccata) भी है जो भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया में ताजे पानी के स्रोतों के पास पाया जाता है। यह धीमी गति से बहने वाली नदियों और तालाबों में मछलियों और अन्य छोटे जलीय जीवों का शिकार करता है। फॉरस्टेन्स कैट स्नेक (Boiga forsteni) भी है जो तैरने में सक्षम तो होता ही है, पेड़ों पर चढ़ने में माहिर होता है। यह सांप पानी में भोजन की तलाश में उतर सकता है।
मैं जानता हूं, मगर चलते चलते बस एक आखिरी सवाल। पनडुब्बी इस संसार में है क्यों? चेकर्ड कीलबैक हमारे साथ रह क्यों रह रहा है? दरअसल चेकर्ड कीलबैक सांप प्रकृति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है। इसके व्यवहार और शिकार संबंधी आदतें इसे पारिस्थितिकी तंत्र का एक आवश्यक हिस्सा बनाती हैं। यह मुख्य रूप से मछलियों, मेंढकों, और छोटे जल जीवों का शिकार करता है। यह इन प्रजातियों की आबादी को नियंत्रित करता है, जिससे पानी के निकायों में शिकार-शृंखला संतुलित रहती है। इससे पारिस्थितिकी तंत्र में अन्य प्रजातियों को भी जीवित रहने का मौका मिलता है।
इसके बिना, इन प्रजातियों की आबादी अनियंत्रित रूप से बढ़ सकती है, जिससे जल निकायों की जैव विविधता प्रभावित हो सकती है​। चेकर्ड कीलबैक छोटे जल जनित कीड़ों और उनके लार्वा को खाता है, जो कृषि क्षेत्रों में एक तरह के कीट होते हैं। यह सांप इन कीटों की संख्या कम करता है, जिससे फसलों को नुकसान कम होता है और कीटनाशकों पर निर्भरता घटती है। इस प्रकार, यह सांप प्राकृतिक कीट नियंत्रण के रूप में कार्य करता है और हमारी धान की पैदावार बढ़ाता है। आगे से अगर आप चावल का एक कौर भरें तो एक बार कीलबैक यानी पनडुब्बी चिचा का भी शुक्रिया अदा करें।

सबसे बड़ी बात यह कि सबसे ज्यादा कुर्बानियां भी पनडुब्बी के ही हिस्से में आई हैं। यह सांप न केवल शिकार करता है, बल्कि खुद भी बड़े पक्षियों और अन्य शिकारियों के लिए भोजन का स्रोत है। चील हो, बगुला हो या फिर मगरमच्छ या घड़ियाल ही क्यों न हो, सबको इसका स्वाद पसंद है। यह चक्र है जो कि पारिस्थितिक तंत्र की विविधता को बनाए रखने में मदद करता है, क्योंकि यह अन्य शिकारियों के लिए भोजन के रूप में काम करता है, जिससे उनके अस्तित्व के लिए आवश्यक संतुलन बना रहता है​।
अंत में, यह हमारा सफाईकर्मी भी है क्योंकि यह वहां भी रहता है, जहां पानी के निकाय होते हैं। यह पानी में रहने वाले छोटे मृत या बीमार जीवों को खाकर पानी को साफ रखने में मदद करता है। इसके परिणामस्वरूप, जलाशयों की स्वास्थ्यवर्धक स्थिति बनी रहती है और अन्य जलीय जीवों के लिए अनुकूल पर्यावरण सुनिश्चित होता है​। मेरे ख्याल से इतना प्रकृति की इस महान पनडुब्बी को सलाम करने के लिए काफी होगा।

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