Friday, October 26, 2018

25 आईपीएस जिनका मोदी ने कैरियर और जीवन तबाह किया

संस्थाओं की तोड़फोड़ करके किनारे लगा देने की आदत नरेंद्र मोदी एंड पार्टी की आज की नहीं है, बल्कि काफी से भी काफी पुरानी है। सीबीआई में फिलहाल उनके खास रहे आईपीएस तो अब भुगत रहे हैं, गुजरात में तो दर्जनों आईएएस इस पार्टी का शिकार बन चुके हैं और इस्तीफा तक दे चुके हैं। कितने ही आईएएस और आईपीएस का कैरियर और पूरा जीवन ही इस पार्टी ने खराब कर दिया है। जिसने हर काले गोरे में साथ दिया, उसे पीके मिश्रा और वाईसी मोदी बना दिया, और जब खुद पर आंच आई तो साथ देने वाले को ही डीजी वंजारा बनाकर मक्खन में से बाल की तरह निकाल फेंका। आइए देखते हैं नरेंद्र मोदी एंड पार्टी ने कितने आईएएस आईपीएस का जीवन चौपट किया है। हालांकि लिस्ट बहुत बहुत और वाकई बहुत लंबी है, इसलिए हमने चुने हुए दर्जन भी ऐसे अधिकारी लिए हैं, जो वाकई इस गुजराती पार्टी के सताए हुए हैं।

नंबर एक पर आते हैं आईएएस प्रदीप शर्मा। प्रदीप शर्मा ने गुजरात दंगों में एसआईटी को लिखा था कि उन्हें मुख्यमंत्री के दफ्तर से फोन आया था और कहा गया था कि वो अपने भाई कुलदीप शर्मा को जो कि उस वक्त अहमदाबाद रेंज के आईजी थे, उन्हें समझाएं कि वो अल्पसंख्यकों को बचाने के लिए सक्रिय कदम ना उठाए। शर्मा का नाम स्नूपगेट यानि की जिस महिला की जासूसी के आरोप नरेंद्र मोदी एंड पार्टी पर लगे थे, उसमें भी आया। इनपर उस मामले में एफआईआर कराने के लिए शर्मा जी हाईकोर्ट तक लड़े, लेकिन तब तक मोदी जी प्रधानमंत्री बन चुके थे और शर्मा जी यह सब कुछ सस्पेंशन में रहकर कर रहे थे। सन 2014 की शुरुआत में नरेंद्र मोदी एंड पार्टी पर एफआईआर दर्ज करने से हाई कोर्ट ने इन्कार किया और उसी साल के अंत में यानी कि 30 सितंबर को एसीबी ने प्रदीप शर्मा को गिरफ्तार कर लिया। अब जाकर वे अगस्त में जमानत से जेल पर बाहर आए हैं।

नंबर दो पर आते हैं आईपीएस संजीव भट्ट। 1988 बैच के आईपीएस अधिकारी संजीव को सेवा से ‘अनधिकृत रूप से अनुपस्थित’ रहने के आधार पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अगस्त 2015 में बर्खास्त कर दिया था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया था कि वह गांधीनगर स्थित मोदी के आवास पर 27 फरवरी 2002 को आयोजित बैठक में शामिल थे। उन्होंने दावा किया था कि बैठक में मुख्यमंत्री ने सभी शीर्ष पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया था कि गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस में आग लगाने की घटना के बाद आक्रोशित हिंदुओं को अपना बदला पूरा करने दें। इसका बदला उन्हें खूब चुकाना पड़ा है। फर्जी मामलों में गिरफ्तारी से लेकर उनका घर पर अहमदाबाद नगर निगम बुलडोजर तक चढ़ा चुका है।

नंबर तीन पर आते हैं आईपीएस राहुल शर्मा। गुजरात दंगों के दौरान भावनगर के एसपी रहे राहुल उन चुनिंदा वरिष्ठ अधिकारियों में गिने जाते हैं, जिन्होंने दंगे रोकने का भरसक प्रयास किया। शर्मा ने कथित तौर पर चार्जशीट में दर्ज 'आधिकारिक' बयान पर असहमति जताई थी। उस दौरान शर्मा का प्रमोशन भी रोक दिया गया था और उनका तबादला कर दिया गया। 2004 में शर्मा ने नानावती कमिशन को एक सीडी सौंपी थी, जिसमें नेताओं, पुलिसकर्मियों और दंगे के आरोपियों की 5 लाख कॉल रिकॉर्ड थीं। 2011 में दुराचार के केस की चार्जशीट में राहुल का भी नाम था। इन्होंने भी इस्तीफा दे दिया है और पिछले साल यानी कि 2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले बताया था कि वे अपनी राजनीतिक पार्टी लाने जा रहे हैं. हालांकि वो आ नहीं पाई। फिलहाल वे गुजरात हाईकोर्ट में बतौर वकील प्रेक्टिस कर रहे हैं.

नंबर चार पर आते हैं आईपीएस समीउल्लाह अंसारी। कहते हैं कि जनाब यूपी के फैजाबाद से हैं, लेकिन इस बारे में हम कन्फर्म नहीं हैं। गोधरा कांड व गुजरात दंगों के दौरान वे अहमदाबाद यातायात पुलिस में उपायुक्त के पद पर तैनात थे, इसी दौरान सेंट्रल आइबी की ओरसे रिकार्ड किए गए थे। इसमें प्रदेश के कई मुस्लिम धार्मिक, सामाजिक नेताओं की ओर से समीउल्लाह को फोन करने का खुलासा हुआ था। इसकी सीडी बाद में गुजरात सरकार को भी उपलब्ध कराई गई थी। आइपीएस समीउल्लाह अंसारी ने अमेरिका से अपना इस्तीफा सरकार को भेजा था। अंसारी अक्टूबर 2010 से स्वास्थ्य कारणों से अवकाश पर थे। इन्होंने अपना इस्तीफा दंगों व फर्जी मुठभेड मामलों के चलते नाराज होकर भेजा। मीउल्लाह अंसारी वर्ष 1992 बैच के अधिकारी हैं तथा एमए व आइआइएम बैंगलोर से एमबीए किया है।

नंबर पांच पर डीजी वंजारा को रखा जा सकता है। सितंबर 2014 में मुंबई की एक अदालत ने वंज़ारा को सोहराबुद्दीन, तुलसीराम प्रजापति के फर्जी मुठभेड़ मामले में ज़मानत दे दी थी. साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने जब सोहराबुद्दीन केस को ट्रायल के लिए गुजरात से महाराष्ट्र स्थानांतरित किया, तब से वंज़ारा मुंबई जेल में थे. माना जाता है कि मुंबई जेल में रहने के कारण वंज़ारा काफ़ी निराश हो गए थे और इसी कारण उन्होंने सितंबर 2013 में इस्तीफ़ा दे दिया. हालाँकि सरकार ने तकनीकी कारणों का हवाला देते हुए कहा है कि जब तक वंजारा पर केस चल रहा है, तब तक वह इस्तीफा नहीं दे सकते.

नंबर छह पर आते हैं आईपीएस ऑफिसर जी एल सिंघल। इशरत एनकाउंटर मामले में शामिल जीएल सिंघल ने भी पत्र लिखकर इस्तीफ़ा दे दिया था. अपने पत्र में जीएल सिंघल ने भी यही कहा था कि सरकार उनका बचाव नहीं कर रही है और उन्होंने जो भी काम क्राइम ब्रांच में अपनी नौकरी के दौरान किए, वे सब सरकार के दिशा-निर्देशन पर किए. हालांकि नरेंद्र मोदी की सरकार बनने ही आसपास उन्हें बहाल कर दिया गया और उन्हें गांधीनगर में स्टेट रिजर्व पुलिस में ग्रुप कमांडेंट बना दिया गया। एक निजी वेबसाइट ने अमित शाह और सिंघल के बीच की निजी बातचीत को सार्वजनिक किया था. यह बातचीत अन्य कई दस्तावेज़ों के साथ सीबीआई के छापे में सिंघल के घर से बरामद हुई थी. स्नूपगेट' में मिस्टर मोदी एंड पार्टी पर जिस महिला की जासूसी का आरोप लगा था, उस मामले के केंद्र में भी सिंघल ही थे. इस मामले को लेकर मोदी सरकार पर काफ़ी तीखे हमले हुए थे

सातवें नंबर पर आते हैं गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी रजनीश राय। इसी साल यानी कि 2018 में तंग आकर आखिरकार इन्होंने भी इस्तीफा दे ही दिया। इन्होंने सोहराबुद्दीन फर्जी एनकाउंटर मामले में डीजी वंजारा और दूसरे पुलिसकर्मियों को ऑन ड्यूटी गिरफ्तार किया था।  गुजरात में रजनीश राय, राहुल शर्मा और सतीश वर्मा ये तीन ऐसे आईपीएस अधिकारी हैं जिन्होंने 2001 में मोदी सरकार के आने के बाद सरकार के काम का खुलकर विरोध किया था. 2014 में मोदी सरकार के केंद्र में आने के बाद रजनीश राय का ट्रांसफर आंध्र प्रदेश में सीआरपीएफ में कर दिया गया था. मोदी सरकार के आने के बाद रजनीश पिछले साल उस समय चर्चा में आए जब उन्होंने सीआरपीएफ के शीर्ष अधिकारियों को अपनी एक रिपोर्ट दी जिसमें बताया था कि कैसे सेना, अर्द्धसैनिक बल और असम पुलिस ने 29-30 मार्च चिरांग जिले के सिमालगुड़ी इलाके में फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दिया और दो व्यक्तियों को एनडीएफबी (एस) का सदस्य बताकर मार डाला था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, डिफें मिनिस्ट्री, असम सरकार और सीआरपीएफ से जवाब-तलब किया था. जिसके बाद बिना किसी वजह इस साल जून में रजनीश राय का ट्रांसफर आंध्र प्रदेश कर दिया गया.

आईपीएस पीपी पाण्डेय को पहले ही आ जाना था, लेकिन वह आए हैं आठवें नंबर पर। आजकल पाण्डेय जी आईएएस मेंस क्लियर करने वालों को इंटरव्यू की तैयारी कराते हैं। यह भी इशरत जहां सहित तीन दूसरे लोगों के फर्जी एनकाउंटर में फंसे थे, लेकिन सीबीआई की विशेष अदालत ने इन्हें बरी कर दिया।

नवें नंबर पर आते हैं आरबी श्री कुमार जो गुजरात में एडीजी (इंटेलिजेंस) थे। श्री कुमार का तबादला गुजरात दंगों के दौरान संजीव भट्ट के साथ ही किया गया था। कुमार का तबादला इसलिए किया गया, क्योंकि उन्होंने अल्पसंख्यक आयोग को मोदी के उस भाषण की क्लिप सौंप दी थी, जिसमें कथित तौर पर मोदी ने मुस्लिम समुदाय के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी।कुमार ने मोदी और बीजेपी के कई नेताओं के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण अभियान शुरू करने का आरोप लगाते हुए मानहानि और साजिश रचने का केस भी दर्ज कराया था।

10वें नंबर पर आते हैं गुजरात के पूर्व आईएएस कुलदीप शर्मा। कुलदीप शर्मा के खिलाफ पुलिस ने गुजरात भेड़ और ऊन विकास निगम (जीएसडब्ल्यूडीस) का महाप्रबंधक रहते हुए बिना उपयोग किया अनुदान वापस नहीं करने के आरोप में सन 2015 में चार्जशीट फाइल की थी। मामला 2010 11 का है। आईएएस रहते शर्मा और राज्य सरकार के बीच रिश्ता काफी खराब था। शर्मा ने वर्ष 2005 में सीआईडी (अपराध) के प्रमुख के तौर पर गुजरात के तत्कालीन मुख्य सचिव सुधीर मांकड को लिखे पत्र में गुजरात के पूर्व गृह राज्यमंत्री अमित शाह पर माधवपुरा मर्केंटाइल कोऑपरेटिव बैंक धोखाधड़ी मामले के अभियुक्त केतन पारिख से रिश्वत लेने का आरोप लगाया था. पदोन्नति न दिए जाने के खिलाफ शर्मा ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसके चलते राज्य सरकार के साथ उनके रिश्ते और खराब हुए थे। पिछले विधानसभा चुनावों में कुलदीप शर्मा ने कांग्रेस के बूथ मैनेजमेंट की कमान संभाली थी।

11वें नंबर पर आते हैं राजकुमार पांडियान। राजकुमार पांडियान भी सोहराबुद्दीन शेख और तुलसीराम प्रजापति की कथित फर्जी मुठभेड़ में मौत के मामले में फंसे थे जिन्हें सीबीआई की विशेष अदालत ने बरी कर दिया है। इंटेलिजेंस ब्यूरो में तैनात आईपीएस अधिकारी राजकुमार पांडियन को सोहराबुद्दीन केस में अप्रैल, 2007 में गिरफ्तार किया गया था. सात साल जेल में रहने वाले पांडियन को मई, 2014 में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी लेकिन उन्हें मुंबई छोड़ने की इजाजत नहीं मिली. इसके बाद गुजरात सरकार ने मुंबई स्थित गुजरात औद्योगिक विकास निगम पांडियन को संपर्क अधिकारी बनाया है. विशेष सीबीआई न्यायाधीश एमबी गोसावी ने इस आधार पर पांडियन को आरोपमुक्त किया कि उनके खिलाफ (अभियोजन के लिए) मंजूरी नहीं है. इसलिए उनके खिलाफ अभियोजन नहीं चलाया जा सकता. सीबीआई के अनुसार, पांडियान गुजरात एटीएस की उस टीम का हिस्सा थे, जिसने सोहराबुद्दीन और उसकी पत्नी कौसर बी को पकड़ा था. सीबीआई ने कहा कि उसने शुरुआती चरण से ही साजिश में सक्रिय भूमिका निभाई थी.

12वें नंबर पर आती हैं आईपीएस नीरजा गोत्रू। अहमदाबाद में एसपी (प्रोहिबिशन) नीरजा गोत्रू ने दाहोद और पंचमहल में हुए दंगों के केस की दोबारा जांच के लिए खुलवाया था। सितंबर, 2004 में उन्हें अपनी जांच बंद करने का आदेश देकर सीबीआई (डेप्युटेशन) में भेज दिया गया था। नीरजा से सितंबर 2004 में जांच खत्म करने को कहा गया था। जब नीरजा ने अंबिका सोसायटी नरसंहार मामले में 13 लोगों की बॉडी जलाने के आरोपी सब इंस्पेक्टर की गिरफ्तारी का ऑर्डर दिया तो सूबूत मिटाने के लिए उन्हें ही सीबीआई डेप्युटेशन पर भेज दिया गया।

13वें हैं आईपीएस सतीश चंद्र वर्मा। बीजेपी विधायक शंकर चौधरी की गिरफ्तारी का आदेश देने के बाद भुज के पूर्व डीआईजी वर्मा का तबादला हो गया था। चौधरी पर दंगों के दौरान दो मुस्लिम लड़कों की हत्या में शामिल होने का आरोप था। वर्मा ने गुजरात हाई कोर्ट में 80 पन्नो का एक ऐफिडेविट भी दिया था, जिसमें इशरत जहां एनकाउंटर केस को फर्जी बताया गया। सतीश ने भी प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाते हुए कैट का दरवाजा खटखटाया था।

14वें हैं आईपीएस एमडी अंतानी। 2002 के गुजरात दंगों के दौरान भरूच के एसपी रहते हुए अंतानी वीएचपी और बीजेपी ऐक्टिविस्टों से काफी मुश्किल से निपटे थे। उनका जल्द ही नर्मदा जिले में तबादला कर दिया गया। इसके बाद गोधरा और आखिर में उनकी नियुक्ति स्थानीय पासपोर्ट ऑफिसर के तौर पर कर दी गई, जहां उन्होंने कई साल काम किया।

15वें नंबर पर आते हैं आईपीएस विवेक श्रीवास्तव। दंगों के दौरान विवेक कच्छ के एसपी थे और मुख्यमंत्री कार्यालय से मिले निर्देशों को नजरअंदाज करते हुए वीएचपी नेता को गिरफ्तार करना उनके लिए परेशानी का सबब बन गया। उन्हें रातों-रात जिले से बाहर शिफ्ट कर दिया गया था और फिर उन्हें डेप्युटेशन पर दिल्ली जाने के लिए बाध्य होना पड़ा।

16वें नंबर पर हैं अनुपम गहलोत। रिपोर्ट्स के मुताबिक मेहसाना के एसपी रहते हुए अनुपम ने दंगों के दौरान लगभग एक हजार लोगों की जान बचाई, जिसके बाद मेहसाना से उनका ट्रांसफर कर दिया गया था। इसके बाद लगातार गहलोत को दरकिनार किया जाता रहा और मुश्किल जगहों पर पोस्टिंग दी गई।

17वें नंबर पर हैं सीबीआई वाले आईपीएस एके शर्मा। कभी नरेंद्र मोदी एंड पार्टी के खास रहे एके शर्मा अब उनकी आंख की किरकिरी बन चुके हैं। हाल ही में मोदी सरकार ने आलोक श्रीवास्तव के साथ ही एके शर्मा पर भी अपना अवैध हथौड़ा चलाया है। एके शर्मा पर विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी को देश से भगाने के आरोप हैं। सूत्रों के मुताबिक जब राकेश अस्थाना को एके शर्मा का वरिष्ठ बनाकर बैठा दिया गया, तभी से वह अस्थाना की अपोजिट लॉबी में चले गए। पिछले दिनों जो रातों रात पीएमओ के जरिए तुगलकी फरमान निकला, उसके तहत सीबीआई के ज्वाइंट डायरेक्टर अरुण शर्मा को जेडी पॉलिसी और जेडी एंटी करप्शन हेडक्वार्टर से हटा दिया गया है।

18वें हैं अजय बस्सी। अजय बस्सी दिल्ली हेडक्वार्टर में डिप्टी एसपी के पद पर तैनात थे और राकेश अस्थाना घूसकांड की जांच कर रही टीम का नेतृत्व कर रहे थे. बस्सी का ट्रांसफर पोर्ट ब्लेयर किया गया है.

19वें हैं एसएस ग्रूम- सीबीआई के एडिशनल एसपी एसएस ग्रूम का ट्रांसफर जबलपुर किया गया है. इन पर डिप्टी एसपी देवेंद्र कुमार की गिरफ्तारी और उनसे जबरदस्ती कोरे कागज पर दस्तखत कराने का आरोप है.

20वें हैं ए साई मनोहर- सीबीआई में तैनात आईपीएस मनोहर को राकेश अस्थाना का करीबी कहा जाता है और इन्हें चंडीगढ़ में पोस्ट किया गया है.

21वें नंबर पर हैं वी मुरुगेसन। सीबीआई में तैनात आईपीएस वी मुरुगेसन को चंडीगढ़ में नियुक्त किया गया है.

22वें हैं अमित कुमार- अमित कुमार सीबीआई में डीआईजी की जिम्मेदारी संभाल रहे थे जिन्हें मोदी सरकार के बैठाए सीबीआई के कार्यवाहक निदेशक ने JD, AC-1 में ट्रांसफर कर दिया है।

23वें नंबर पर हैं मनीष सिन्हा- मनीष सिन्हा सीबीआई में डीआईजी का पद संभाल रहे थे और इनका ट्रांसफर नागपुर किया गया है.

24वें हैं जसबीर सिंह- ये सीबीआई में डीआईजी हैं और इन्हें बैंक धोखाधड़ी विंग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है.

25वें हैं सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा। आलोक वर्मा भी कभी नरेंद्र मोदी एंड पार्टी के खास माने जाते हैं, लेकिन अब हालात यह हैं कि नरेंद्र मोदी अजित डोवाल की मदद से उनके घर आईबी के लोगों को भेजकर जासूसी करा रहे हैं तो आलोक वर्मा के लोग भी कम नहीं हैं। वे नरेंद्र मोदी और अजीत डोवाल के भेजे जासूसों को सड़क पर घसीट घसीटकर पीट रहे हैं। अभी नरेंद्र मोदी एंड पार्टी और सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा के बीच रस्साकसी जारी है, जिसमें आलोक वर्मा का पलड़ा भारी पड़ता दिख रहा है। अगर आईपीएस लॉबी ठीक से काम करने लगे तो पिछले 17-18 सालों से जो नरेंद्र मोदी ने आईपीएस लॉबी का जीना दुश्वार कर रखा है, इसी एक मामले से उसे कुछ राहत मिल सकती है। आखिरकार आलोक वर्मा के पास जो फाइलें हैं, तोते की जान तो उसी में है।

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