Friday, October 5, 2018

बीजेपी, फेसबुक और महान भारतीय लोकतंत्र का गैंगरेप- Part- 2

वैसे कई बार फेसबुक से पूछा गया कि वह अपनी ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स यूनिट में काम करने वालों की संख्या बता दे, लेकिन उसने कभी नहीं बताया। लेकिन फेसबुक के ऑफिस में खुद उसके कर्मचारी कंपनी की नीतियों से परेशान हैं तो वह गाहे बगाहे मुंह खोल देते हैं। ऐसे ही फेसबुक के एक एग्जीक्यूटिव ने नाम सामने न आने देने की शर्त पर बताया चुनावों के वक्त जब फेसबुक की ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स यूनिट काम करना शुरू करती है तो इसमें कंपनी के लीगल, सूचना सीक्योरिटी और पॉलिसी टीम से सैकड़ों लोगों का ट्रांसफर कर दिया जाता है। चुनाव भर ये सब इस यूनिट में काम करते हैं और चुनाव के बाद वापस इन्हें इनके विभागों में ट्रांसफर कर दिया जाता है। चुनावों में जब फेसबुक की ग्लोबल गवर्नमेंट एंड पॉलिटिक्स यूनिट अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए इकट्ठा होती है तो केटी हरबाथ की टीम फेसबुक के विज्ञापन और सेल्स विभाग के साथ ही बैठने लगती है। विज्ञापन और सेल्स विभाग के लोग फेसबुक समर्थित उम्मीदवार के लिए अधिक से अधिक रिजल्ट लाने में पूरी मदद करते हैं। ये सब लोग मिलकर नेताओं को इस बात की ट्रेनिंग देते हैं कि वह किस तरह से अपना विज्ञापन तैयार करें कि जिससे अधिक से अधिक लोग उल्लू बनें। या फिर कैसे फेसबुक का वह नीला निशान चुटकी बजाते ही हासिल करें, जिसे कोई भी आसानी से नहीं पा सकता। या फिर वे किस तरह के वीडियो बनाएं कि जिसे देखते ही हमारे आपके जैसे वोटर्स उल्लू बन जाएं। और फिर जैसे ही फेसबुक समर्थित उम्मीदवार जीतता है, केटी हरबाथ अपनी टीम लेकर उसकी चौखट पर पहुंच जाती हैं और तुरंत सरकारी अधिकारियों के बीच अपनी पैठ बनाने लगती हैं ताकि आने वाले दिनों में वे और उनकी टीम मार्क जकरबर्ग के लिए और भी अधिक कानून तोड़ सके और किसी भी देश के नियम कायदों को ठेंगा दिखा सके।

इसी तरह से फेसबुक की इस यूनिट ने सन 2015 में स्कॉटिश नेशनल पार्टी को जीतने में न सिर्फ मदद की, बल्कि अपनी कॉरपोरेट वेबसाइट पर बेशर्म अदाबाजी के साथ इसकी सक्सेस स्टोरी भी पब्लिश कर रखी है। और तो और, जो लोग इंग्लैंड छोड़कर स्कॉटलैंड नहीं जाना चाहते थे, उन्होंने भी फेसबुक की यह बदमाशी खुलेआम देखी।

पिछले साल यानी कि 2017 के अप्रैल में वियतनाम के अधिकारियों ने सीना ठोंककर कहा कि फेसबुक ने उनके लिए बाकायदा अलग से ऐसा चैनल तैयार किया है, जिससे कि वे सरकार की आलोचना करने वालों का मुंह बंद कर सकते हैं। कुछ दिन पहले स्क्रॉल डॉट इन ने खबर छापी थी कि भारत सरकार के दर्जनों विभाग हम लोगों के सोशल मीडिया पर गहरी निगाह रख रहे हैं। वैसे एक बात और है। फेसबुक पर अगर कोई भारत का कानून तोड़ने वाली पोस्ट अपडेट करता है तो भले वह भारत से हट जाती है, लेकिन बाकी दुनिया में वह दिखाई देती है। ऐसा फेसबुक दुनिया के हर देश में करता है और कानून की खुलेआम खिल्ली उड़ाता है। यह समस्या और भी गहरी हो जाती है, जब हमें पता चलता है कि दुनिया भर में फैले फेसबुक के दफ्तरों में पहले कभी जो लोकतांत्रिक माहौल था, अब वह पूरी तरह से तानाशाही में बदल चुका है। अमेरिका के राजनीतिक और मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था फ्रीडम हाउस ने 2017 के नवंबर में रिपोर्ट जारी करके बताया था कि कैसे दुनिया भर में ऐसे देशों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जो सोशल मीडिया का प्रयोग लोकतंत्र को गड्ढे में धकेलने के लिए करते हैं। फ्रीडम हाउस ने इसमें सबसे बड़ा उदाहरण पैट्रियॉटिक ट्रॉलिंग का दिया था। पैट्रियॉटिक ट्रॉलिंग यानि कि देशभक्तों की ट्रॉलिंग। राष्ट्रवादियों की ट्रॉलिंग। ऐसे लोग जो देश या राष्ट्र के नाम पर किसी को भी मा बहन की गालियां देने लगते हैं, किसी को भी बलात्कार की धमकी देने लगते हैं या किसी को सरेआम कुल्हाड़ी से काट डालते हैं या गाय के नाम पर इंसान का बीफ बना देते हैं, ये सभी पैट्रियॉटिक ट्रॉलर्स होते हैं। इनका काम असहमतियों को कुचलना होता है और जो असहमत हैं, उन्हें किसी भी तरह से देशद्रोही साबित करना होता है।

फेसबुक के अंदर उसके एग्जीक्यूटिव्स हमेशा इस तरह के लोगों को बचाने में लगे रहते हैं, ताकि वे धड़ल्ले से नफरत फैलाने वाली बातें फैला सकें। वैसे दुनिया को दिखाने के लिए फेसबुक कभी कभार, बोले तो सौ में से प्वाइंट पांच पर्सेंट बार नफरत फैलाने वालों पर रोक भी लगता है। मसलन वह ग्रीस की अल्ट्रा नेशनलिस्ट पार्टी गोल्डेन डॉन की एकाध पोस्ट कभी बैन कर देता है तो कभी अमेरिका में सफेद चमड़ी वाले नफरती चिंटुओं की पोस्ट बैन करता है तो कभी मिडल ईस्ट में आईसिस यानी कि आईएसआईएस की पोस्ट बैन करता है। लेकिन सौ में से मुश्किल से प्वाइंट पांच पर्सेंट या फिर उससे भी कम। आईएसआईएस के साथ गांठ जोड़कर काम करने के चलते यूरोपियन यूनियन में भी फेसबुक पर मुकदमा चल रहा है और कड़ी जांच हो रही है। फेसबुक के डाटा का गलत प्रयोग और अवैध राजनीतिक गठजोड़ कंक्रीट की तरह मजबूत हो चुका है। सन 2007 में हमने बराक ओबामा को अमेरिका का पहला फेसबुकिया राष्ट्रपति बनते देखा था। इसी साल फेसबुक ने वॉशिंटन में अपना पहला ऑफिस खोला था। ओबामा ने तब अपने वोटरों को रिझाने और भरमाने के लिए फेसबुक की मदद ली थी। सन 2010 से लेकर 2011 के बीच में मिडल ईस्ट में फेसबुक यूजर्स कई गुना बढ़ गए और हमने पाया कि ये वही वक्त था जब मिडल ईस्ट में इस्लामिक स्टेट यानी कि आईएसआईएस और उसके भाई बंधु तेजी से अपना कद बढ़ा रहे थे।

सन 2014 के पहले तक अपने यहां जो चुनाव होते थे, वह लगभग पहले की तरह सामान्य रूप से हुआ करते थे। लेकिन सन 2014 में जबसे मार्क जकरबर्ग ने ट्रंप के दाहिने हाथ कहे जाने वाले रूडी जुलियानी की खासमखास केटी हरबाथ तो नौकरी पर रखा और उसे इस यूनिट की जिम्मेदारी दी, तबसे चुनाव सोशल मीडिया पर लड़े जाने लगे हैं। दुनिया में होने वाले बड़े से बड़े आयोजनों से कहीं ज्यादा और कई गुना कमाई फेसबुक इन चुनावों से कर रहा है। जैसे कि अर्जेंटीना में सन 2015 के चुनाव में मॉरिसियो मैक्री ने अपनी रैलियां फेसबुक पर लाइव दिखाईं और जब वे वहां के राष्ट्रपति बने तो अपना पूरा मंत्रिमंडल ही हंसती-गाती, आंख मारती इमोजीज के साथ फेसबुक पर उतार दिया। 2015 में ही पोलैंड के राष्ट्रवादी राष्ट्रपति आंद्रेज डूडा दुनिया के पहले ऐसे नेता बने जिन्होंने अपना शपथ ग्रहण समारोह ही पूरी दुनिया को फेसबुक पर लाइव दिखाया। आंद्रेज डूडा साहब ने पोलैंड में प्रेस की आजादी की जमकर वाट लगाई है। पूरी बेशर्मी से फेसबुक अपनी कॉरपोरेट वेबसाइट पर यह कहता भी है कि वह चुनावों में होने वाली जीतों का स्थाई और ठोस हिस्सा है।

अमेरिका के बाद फेसबुक का सबसे बड़ा बाजार भारत है। यहां इसके यूजर्स अमेरिका की तुलना में दोगुनी रफ्तार से बढ़ रहे हैं। इसमें फेसबुक के दूसरे प्रोडक्ट व्हाट्सएप्प के दो सौ मिलियन से भी अधिक यूजर्स शामिल नहीं हैं। व्हाट्सएप्प पर जितने यूजर्स अपने यहां हैं, दुनिया के किसी भी देश में नहीं हैं। प्रतिष्ठित मीडिया हाउस ब्लूमबर्ग ने खुलासा किया है कि सन 2014 के चुनावामें में फेसबुक नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी के साथ महीनों सिर जोड़कर काम करता रहा था। इन तीनों ने मिलकर फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर काम करने के लिए आईटी सेल बनाई जिसका काम सोशल मीडिया पर तरह तरह की अफवाहें फैलाना है। आपको याद होगा कि इसका बड़ी जोर शोर से प्रचार भी किया गया था कि इस आईटी सेल में इंडियन इंस्टीट्यूट और टेक्नोलॉजी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से काफी लोगों की भर्ती की गई थी। यानि कि हमारे देश में जो कुछ भी सड़ा गला लोकतंत्र बाकी थी, इन्हीं आईआईटी और आईआईएम वालों ने उसे खत्म करने में काफी बड़ी भूमिका निभाई है। पता नहीं हम लोग किस मन से इन इंस्टीट्यूट में पढ़ने वालों पर गर्व करते हैं, जबकि दुनिया भर के शिक्षण संस्थानों की रैंकिंग में ये नाखून बराबर भी औकात नहीं रखते। सन 2014 में जब नरेंद्र मोदी चुनाव जीते थे, तब फेसबुक पर फॉलोअर्स की संख्या 14 मिलियन के आसपास थी। लेकिन चुनाव जीतने के बाद यह संख्या अब 43 मिलियन फॉलोअर्स तक पहुंच गई है। यानी कि ट्रंप से भी दोगुनी। यह सब यूं ही नहीं हो गया। आपको याद होगा कि नरेंद्र मोदी सन 2014 में जब फेसबुक के इसी फर्जीपने के चलते चुनाव जीते थे तो जकरबर्ग अपनी चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर शेरिल सैंडबर्ग को लेकर महज कुछ ही हफ्ते में उनसे मिलने पहुंच गया था। यह दोनों तो तब अपना फ्री बेसिक्स का ठगी का ठेला लेकर पहुंचे थे। फ्री बेसिक्स के नाम पर होने वाली धोखाधड़ी को वक्त रहते हम लोग पहचान गए और नरेंद्र मोदी को न चाहते हुए भी अंबानी और मार्क जकरबर्ग के उस मनचाहे गठजोड़ से हाथ जोड़ना पड़ा था, लेकिन उसी वक्त मार्क जकरबर्ग के साथ पहुंची कैटी हरबाथ ने तब सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए एक के बाद एक लगातार कई सारे ट्रेनिंग कैंप लगाए थे। इसमें उन्होंने छह हजार सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को इस बात की ट्रेनिंग दी थी कि कैसे नरेंद्र मोदी के झूठ को सच बनाकर या उनके मन की बात बनाकर हम लोगों के सामने परोसा जाए।

सन 2014 के बाद जबसे नरेंद्र मोदी की सोशल मीडिया रीच बड़ी है, उनकी ट्रॉल आर्मी फेसबुक और व्हाट्सएप्प पर अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ लगातार हैरेस करने वाली कैंपेन चला रही है। सन 2014 के बाद से ही भारत पूरी दुनिया में फेक न्यूज और अफवाहों का सबसे बड़ा बाजार बन चुका है। इन अफवाहों और फेक न्यूज के चलते कहीं पर लोग गाय के नाम पर पीट पीटकर जान से मार दिए जा रहे हैं तो कहीं बच्चा चोरी के नाम पर तो कहीं डायन होने के नाम पर तो कहीं सिर्फ मुसलमान होने के नाम पर मार दिए जा रहे हैं। रॉयटर्स की रिपोर्ट है कि सन 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के महज छह महीने के अंदर गाय के नाम पर होने वाली हत्यायों में सीधे सीधे 75 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक बॉबी घोष ने जब मॉब लिंचिंग मीटर तैयार किया तो नरेंद्र मोदी ने उन्हें नौकरी से बाहर करा दिया। हिंदुस्तान टाइम्स की मालिका शोभना भरतिया ने अमित शाह और नरेंद्र मोदी के कहने पर बॉबी घोष को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया और बॉबी को इस्तीफा देना पड़ा। महाराष्ट्र से लेकर मणिपुर तक इन अफवाहों और फेक न्यूज का जाल ऐसा फैला कि एक दो नहीं, सात-सात लोग एक साथ पीट-पीटकर जान से मारे जाने लगे। कई पत्रकारों की हत्या कर दी गई। और यह सब सोशल मीडिया पर बाकायदा धमकी देकर किया गया और नरेंद्र मोदी के उन्हीं समर्थकों ने किया, जिन्हें फिलहाल एनआईए से लेकर सीबीआई तक से हर तरह का अपराध करके छूट जाने की छूट मिली हुई है। मसलन पिछले साल यानी 2017 के सितंबर की पांचवीं तारीख को बेंगलुरु में रहने वाली पत्रकार गौरी लंकेश जब अपने घर का दरवाजा बंद कर रही थीं, नरेंद्र मोदी के समर्थकों ने खुलेआम उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। गौरी लंकेश काफी समय से नरेंद्र मोदी और अमित शाह की फेसबुक समर्थित ट्रॉल आर्मी का निशाना बनी हुई थीं। यह ट्रॉल आर्मी एक महिला को भद्दी से भद्दी गालियां दे रही थी, बलात्कार की धमकियां दे रही थी, जान से मारने की और लाश घसीटने की धमकियां दे रही थी और फेसबुक की केटी हरबाथ इन धमकियों से आनंदित हो रही थीं। मरने से पहले गौरी लंकेश ने अपने अखबार के लिए जो आखिरी संपादकीय लिखा था, उसकी हेडिंग थी- झूठी खबरों के इस युग में। इस संपादकीय में उन्होंने बताया था कि किस तरह से सोशल मीडिया पर फैलाया जा रहा अफवाह और झूठ का प्रोपेगेंडा हमारे राजनीतिक वातावरण को जहरीला कर रहा है।

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